छंद-संसार
दोहा छंद
मानवता का धर्म ये, देता है पैगाम।
धर्म नहीं छोटे-बड़े, सारे धर्म समानll
चाहे जीवन में मिले, जितने भी व्यवधानl
जो कष्टों से जूझता, वो ही है इंसानll
अंगदान हम सब करें, बढ़कर एक समानl
किसी ज़रूरतमंद को, दे दें जीवनदानll
पंचतत्व से है बना, होगा इनमें लीनl
ब्राह्मण क्षत्रिय वर्ग हो, या हो शूद्र कुलीनll
शिक्षा के व्यापार में, कहाँ मिलेगा ज्ञानl
सरस्वती से होड़ कर, लक्ष्मी बनीं महानll
मैं मेरा मत कीजिये, अच्छा नहीं गुरूरl
खाली हाथों ही गये, राजा रंक हुज़ूरll
राजनीति की हो गई, देखो गन्दी नस्लl
जनता के विश्वास का, नेता करते क़त्लll
मोबाइल पर हो रही, चैट-कॉल से बात।
मोबाइल ने कर दिया, चिट्ठी पर आघातll
मद-माया के मोह को, मूढ़ मनुज अब छोड़।
सद्कर्मों की राह पर, अपना रुख तू मोड़।l
भ्रष्टाचारी हो गया, अपना जगत समाजl
कल से पहले जा रहा, अँधेरे में आजll
– शिवम खेरवार