अच्छा भी होता है!
जहाँ जीवन की विषमताओं, समाज की कुरीतियों, व्यर्थ के दंगे-फ़साद, न्याय-अन्याय की लड़ाई, अपने-पराए, रिश्ते-नाते, ईर्ष्या, अहंकार और ऐसी ही तमाम विसंगतियों में उलझकर जीना दुरूह होता जा रहा है वहीं कुछ ऐसे पल, ऐसे लोग अचानक से आकर आपका दामन थाम लेते हैं कि आप अपनी सारी नकारात्मकता त्याग पुन: आशावादी सोच की ओर उन्मुख हो उठते हैं. बस, इसी सोच को सलामी देने के लिए हमारे इस स्तंभ ‘अच्छा’ भी होता है!, की परिकल्पना की गई है, इसमें आप अपने या अपने आसपास घटित ऐसी घटनाओं को शब्दों में पिरोकर हमारे पाठकों की इस सोच को क़ायम रखने में सहायता कर सकते हैं कि दुनिया में लाख बुराइयाँ सही, पर यहाँ ‘अच्छा’ भी होता है! – संपादक
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दुनिया अभी भी उतनी खराब नहीं हुई है, मानवता जिन्दा थी, जिन्दा है और जिन्दा रहेगी!
Thanks to IndiGo Airlines, Airport authority, Patna, Dr Talat Halim (Director, Paras Hospital, Patna) and Dr Anshu Ankit, Medical Incharge at Patna Airport and some others unknown but full of HUMANITY.
एक सप्ताह के बड़े कष्ट से उबर कर वापस मधेपुरा में अपने न्यूज रूम में हूँ और सबसे पहले इन सबका आभार व्यक्त किये बिना कुछ और करना कहीं से उचित नहीं समझता हूँ.
*29 जनवरी की शाम 5:50 पटना से दिल्ली की फ्लाईट से कुछ ही देर पहले अचानक एयरपोर्ट पर तबियत नियंत्रण से बाहर एवं खराब हो जाने के बाद का अनुभव शायद ही इस छोटी सी जिन्दगी में कभी भूल सकूं. न सिर्फ कुछ महिलाओं समेत अन्य लोगों ने संभाला, बल्कि डॉक्टरों और एक्सपर्ट्स की टीम ने भी पूरी मेहनत कर स्थिति को नियंत्रित कर लिया था. ये भी महज संयोग ही था कि अपनी बेटी को विदा करने आए Dr Talat Halim (Director, Paras Hospital, Patna) भी उस वक्त एयरपोर्ट पर ही थे. काफी देर तक वे भी न सिर्फ लगे रहे बल्कि एम्बुलेंस से पारस हॉस्पिटल एडमिट होना पड़ा और फिर अगले दिन ढाई बजे की फ्लाईट से दिल्ली जा सका.
वैसे तो एयरपोर्ट की तरफ से ही ऐसे हालात में मेडिकल की सुविधा होती है, पर इस अनुभव में कई बातें याद रखने लायक रहीं. जैसे पारस के डायरेक्टर साहब ने साफ़ तौर पर कहा कि आप लोग अस्पताल में या मेरे यहाँ रह सकते हैं, आपको कोई खर्च नहीं उठाना है, सब हमारी तरफ से. Indigo की तरफ से उसी समय कहा गया कि दोनों ही तरफ से फ्लाईट रि-शिड्यूल्ड का भी कोई कॉस्ट आपको नहीं लगेगा. अगले दिन फिर एयरपोर्ट पर डॉक्टर अंशु अंकित मुस्कुराते हुए साथ थे, हैप्पी जर्नी कहने के लिए तो दिल्ली से वापस 2 फरवरी को लौटते समय बोर्डिंग पास बनाने वाली स्टाफ ने भी हालचाल पूछा, ‘सबकुछ ठीक है न सर! टेक केयर’ (चूंकि फ्लाईट रि-शिड्यूल्ड की वजह में तबियत खराब का जिक्र था). मैंने तो इतना ही कहा कि शायद ऐसी तबियत ट्रेन या प्लेटफॉर्म आदि पर होती तो हालात से उबरना कठिन था. और अभी आपका हालचाल पूछना, मैं तो Indigo का फैन हो गया. उन्होंने इतना ही कहा, ‘हमारी सेवा भी तो सार्थक हुई, हैप्पी जर्नी सर…’
आम तौर पर सार्वजनिक जगहों पर ऐसी परिस्थितियों से गुजरना और भी कष्टदायक हो जाता है, जब लोगों का साथ सही तरीके से नहीं मिलता है. पर मेरे साथ तो अक्सर ही ऐसा हो जाता है कि जान-पहचान वाले जगह पर जहाँ मदद के सैंकड़ों हाथ आगे बढ़ जाते हैं, वहीं अनजाने जगह पर भी दर्जनों नि:स्वार्थ हाथ बढ़कर शायद ये बता रहे होते हैं कि दुनियाँ अभी भी उतनी खराब नहीं हुई है, मानवता जिन्दा थी, जिन्दा है और जिन्दा रहेगी…
– राकेश सिंह