दिल के हर कोने को छूती कहानियाँ: बुभुक्षित: काक:
– डॉ. अरुण कुमार निषाद
र्वाचीन संस्कृत साहित्य में अपने नये प्रयोगों के लिए प्रसिद्ध लेखक कवि और नाटककार डॉ.हर्षदेव माधव का नाम संस्कृतज्ञों के लिए अनजान नहीं है। गुजरात (अहमदाबाद) निवासी डॉ. हर्षदेव माधव एच.के. आर्ट्स कालेज में प्रोफेसर हैं। बुभुक्षित: काक: भी इन्हीं नवीन प्रयोगों की श्रृंखला में एक बाल कथासंग्रह है, जिसमें कुल 13 कहानियाँ हैं। इसमें पशु-पक्षियों आदि के माध्यम से लेखक ने जीवनोपयोगी शिक्षा दी है।
‘त्रिस: पिपीलिका:’ कहानी सरला, कमला, विमला नामक तीन चीटियों की कथा है, जो आम खाने के लिए तब तक उद्यम करती हैं जब तक की उन्हें आम प्राप्त नहीं हो जाता। यह कहानी बच्चों को यह शिक्षा देती है कि जब तक हमें हमारा लक्ष्य प्राप्त न हो जाए तब तक हमें निरन्तर प्रयत्न करते रहना चाहिए।
सर्वदा यत् वाञ्छितं तत् प्राप्तुं प्रयत्ना: कर्तव्या:।1 (पृष्ठ- 13)
‘तपस: सिद्धि:’ कहानी के नायक सुतपा नामक ऋषि हैं, जो अपनी तपस्या के बल पर ईश्वर का साक्षात्कार करते हैं और ईश्वर द्वारा प्रदान की गयी समस्त वस्तु (वरदान) जन कल्याण में लगा देते हैं। डॉ. हर्षदेव माधव लिखते हैं कि जितेन्द्रिय व्यक्ति को कभी भी भौतिक वस्तुओं की अभिलाषा नहीं होती।
‘बुभुक्षित: काक’ का चतुर कौआ रोटी प्राप्त करने के लिए कितना परिश्रम करता है। ‘प्राणिनां तीर्थस्य यात्रा’ कहानी के पात्र नीरव (चूहा), धवला (बिल्ली), गजराज (कुत्ता), नीलेश (हाथी), वनराज (सिंह) आदि हिंसा छोड़कर अहिंसा का मार्ग अपना लेते हैं। अपने पाप का प्रायश्चित करने के लिए वे सब काशी गंगा स्नान के लिए जाते हैं। ऋषि जाबाल की कृपा से उन सबका मार्ग सुगम हो जाता है। इस कहानी में बताया गया है कि जब हम कोई नेक कार्य करेंगे तो ईश्वर किसी न किसी रुप में हमारी मदद अवश्य करेंगे। ‘मन्त्राणां शक्ति:’ शिवशर्मा नामक एक ब्राह्मण की कहानी है, जो अग्निदेव द्वारा प्रदान की गयी एक अद्भुत पुस्तक से ऐसे-ऐसे चमत्कार उत्पन्न करते हैं कि राजपुरुषों को उनसे ईर्ष्या होने लगती है। फलस्वरुप वे वह ग्रन्थ पुन: अग्निदेव को सौंप देते हैं तथा पुन: कभी भी राजदरबार में न आने का प्रण करते हैं। वे कहते हैं-
अहिंसार्थम् अहं मन्त्रदेवताम् आह्वयामि।2 (पृष्ठ- 74)
शिवपण्डित: अवदत् ‘महाराज! अहं तव ग्रामाणां शतं वा सहस्रं वा न कामये। ब्राह्माणा: धनलोलुपा: न सन्त । ते राज्यं तृणं इव मन्यते। मम मति: मन्त्रिणां सदृशी छलकपटमयी नास्ति। अद्यपर्यन्तं अहं मन्त्राणां प्रयोगं कदापि स्वार्थाय न अकरवम्। विद्या एव मम धनं वर्तते।3 (पृष्ठ- 75 व 76)
‘क्रोधालु: ऋषि:’ सुदर्शन नामक एक ऋषि की कहानी है, जिन्हें लोग उनके क्रोध के कारण क्रोधदर्शन कहने लगे थे। कहानी के अंत में भगवान उनसे कहते हैं कि हमें किसी भी प्राणी पर हिंसा, क्रोध आदि नहीं करना चाहिए क्योंकि प्रत्येक जीव-जन्तु में ईश्वर विद्यमान है।
इयं सृष्टि:मम रचना अस्ति। एते सर्वे प्राणिन:, पक्षिण:, मनुष्या:, जलचरा:, सर्वे वृक्षा:, पर्वता: मया रचिता: सन्ति।4 (पृष्ठ- 92)
‘दुर्ललित: शक्तिसिंह:’ कहानी में लेखक कहता है कि हमें सदैव अपने बड़ों की आज्ञा का पालन करना चाहिए। नहीं तो इस कथा के शक्तिसिंह की तरफ बाद में पछताना पड़ता है।
गुरु: प्रवचने अवदत्, ‘तिस्र: देवता वर्तन्ते, माता, पिता गुरुश्च। अत: तेषाम् आज्ञा सदैव शिरोधार्या कर्तव्या। सदैव तेषां वचनानि श्रोतव्यानि। जीवने सदैव कल्याणं भविष्यति युष्माकम्।5 (पृष्ठ- 124)
‘दयावान् राक्षस:’ कहानी में डॉ. हर्षदेव माधव कहते हैं कि व्यक्ति अपने कर्मों से देवता की पदवी को भी प्राप्त कर लेता है। दयाराम नामक राक्षस के जैसे।
पुत्रक दयाराम! उतिष्ठ। त्वम् अनेकानि शुभकार्याणि अकरो:। अत: अधुना त्वं राक्षस: न असि। अहं तुभ्यं देवत्वं ददामि।6 (पृष्ठ-138 व 139)
लोगों को हराम का नहीं हलाल का खाना चाहिए यह लेखक ने ‘बुद्धिमान गोपाल:’ कहानी में दिया है।
‘गोकुल: मृत्युमुखात् प्रत्यागच्छति’ इस कहानी में लेखक कहता है कि सभी मनुष्यों को अपनी सामर्थ्य के अनुसार एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए। उसका प्रत्यक्ष नहीं अपितु परोक्ष लाभ मिलता है। अपने सत्कर्मों के कारण ही गोकुल नामक युवक मृत्यु के मुख से बच जाता है।
वत्स! स्मर, त्वं धर्मरहस्यम्। तृषार्तेभ्य: जलम्, बुभुक्षितेभ्य: अन्नम्, पित्रो: शुश्रूषा, अतिथिनां स्वागतं, जीवनस्य औदार्यम्-एतत् सर्वं महते पुण्याय कल्पते। मनुष्य: सुकृतै: मृत्यो: मुखात् अपि स्वात्मानं रक्षितुं क्षम:-इति धर्मस्य रहस्यम् अस्ति। त्वं न कमपि प्रमादं कृतवान्। किन्तु भगवत: प्रसादेन सर्वमपि भवति-न भवति अन्यथा वा भवति। गच्छ, तव कर्त्तव्यं कुरु।7 (पृष्ठ- 187 व 188)
इसी प्रकार ‘रात्रिदिवसौ कथम् अभवताम्’, ‘भूतस्य शिखा’, ‘केशव: धीवर: राजकुमार: अभवत्’ आदि कहानियों में लेखक ने बच्चों (पाठकों) कुछ न कुछ नैतिक शिक्षा प्रदान की है।
प्रसाद गुण युक्त इस कथासंग्रह की भाषा इतनी सरल और सहज है कि बच्चे इसे आसनी से समझ जायेंगे। यह कथासंग्रह हिन्दी और गुजराती दो भाषाओं में प्रकाशित हुआ है। इसका अनुवाद डॉ. श्रद्धा त्रिवेदी ने किया है। पुस्तक की छपाई, कलेवर और प्रस्तुतिकरण सुरुचिपूर्ण है और मात्र 240 रुपये में इसे संस्कृत प्रेमियों के लिए एक उपहार ही कहा जा सकता है।
समीक्ष्य पुस्तक- बुभुक्षित: काक:
भाषा- संस्कृत
विधा- बालकथा
रचनाकार- डॉ. हर्षदेव माधव
प्रकाशक- संस्कृति प्रकाशन, अहमदाबाद (गुजरात)
संस्करण- प्रथम, 2020
पृष्ठ संख्या– 198
मूल्य- 240 रू.
– डॉ. अरुण कुमार निषाद