ख़बरनामा
त्रैमासिक पत्रिका ‘अनुगुंजन’ के साक्षात्कार अंक के लिए साक्षात्कार आमंत्रित
डॉ. लवलेश दत्त के संपादन में प्रकाशित अनुकृति प्रकाशन की चर्चित त्रैमासिक पत्रिका ‘अनुगुंजन’ का प्रकाशन जनवरी-मार्च 2020 अंक के बाद कोरोना के कारण रोक दिया गया था। अब स्थितियाँ सामान्य होने पर पत्रिका का पुनर्प्रकाशन आरंभ हो रहा है। विगत 2020 के अप्रैल-जून, जुलाई-सितंबर एवं अक्टूबर-दिसंबर 2020 अंकों को संयुक्तांक बनाने की योजना है तथा उसे ‘साक्षात्कार अंक’ के रूप में प्रकाशित किया जाना है।
आप सभी से निवेदन है कि विभिन्न क्षेत्रों में सराहनीय कार्य करने वाले व्यक्तियों, लेखकों, कलाकारों, चित्रकारों, समाजसेवियों आदि से अपने द्वारा लिए गए साक्षात्कार पत्रिका में प्रकाशन हेतु प्रेषित करें।
साक्षात्कार सही फार्मेट में टाइप करके निम्नलिखित ईमेल पर 31 जनवरी 2021 तक भेज सकते हैं-
anugunjanpatrika@gmail.com
डाक द्वारा रचनाएँ भेजने का पता-
डॉ. लवलेश दत्त
संपादक अनुगुंजन
अनुकृति प्रकाशन
165 ब, बुखार पुरा,
पुराना शहर, बरेली (उ.प्र.)- 243005
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‘बता दूँ क्या’ व्यंग्य-संग्रह का लोकार्पण समारोह राजभवन में संपन्न
महाराष्ट्र के राज्यपाल माननीय श्री भगत सिंह कोश्यारी ने मंगलवार, 15 दिसंबर 2020 को राजभवन, मुंबई में एक हिंदी व्यंग्य संकलन ‘बता दूँ क्या’ के लोकार्पण समारोह के अवसर पर अपनेे वक्तव्य में हिंदी के प्रचार-प्रसार के संदर्भ में कहा कि हिंदी न सिर्फ भारत के कोने-कोने में समझी और बोली जाती है, बल्कि सूरीनाम, फिजी, मॉरीशस सहित दुनिया के कई देशों में भी समझी और बोली जाती है। वास्तव में हिंदी अंतरराष्ट्रीय भाषा बनने की और अग्रसर है।
व्यंग्य के संदर्भ में उन्होंने कहा कि व्यंग्य लेख टॉनिक के समान होता है, जो हँसी और आनंद प्रदान करते हुए प्राणवायु प्रदान करता है। राज्यपाल जी ने महाराष्ट्र में हिंदी भाषी लोगों से मराठी सीखने की भी अपील की।
इस पुस्तक का संपादन डॉ. प्रमोद पांडेय द्वारा तथा प्रकाशन आर. के. पब्लिकेशन द्वारा किया गया है। इस संग्रह में कुल 14 व्यंग्यकारों के व्यंग्य सम्मिलित हैं। डॉ. वागीश सारस्वत ने माननीय राज्यपाल द्वारा किए गए कार्यों की सराहना करते हुए कार्यक्रम की प्रस्तावना प्रस्तुत की।
व्यंग्य लेखन सामाजिक विसंगतियों पर करारा प्रहार होता है। व्यंग्य, हिंदी साहित्य लेखन की एक ऐसी शैली है, जिसके द्वारा व्यंग्यकार जीवन की विसंगतियों, समाज के खोखलेपन व पाखंड को लोगों के समक्ष उजागर करता है। इस संग्रह में भी ऐसी ही विसंगतियों, पाखंडो व समाज के खोखलेपन को व्यंग्यकारों ने अपने व्यंग्य के माध्यम से उजागर किया है। इस संग्रह में राजनीतिक व धार्मिक बातों को शामिल नहीं किया गया है।
श्रीमती आभा सूचक जी ने कोरोना काल तथा लॉकडाउन में किए गए कार्यों का विवरण प्रस्तुत किया, श्री आलोक चौबे ने आभार प्रदर्शन के दौरान कहा कि संग्रह के संपादक डॉ. प्रमोद पाण्डेय ने ऐसे ही तारों की रचनाओं को एकत्र कर उन्हें प्रकाशित करने का सराहनीय कार्य किया है, जो बादलों में छुपे होते हैं तथा जिनकी चमक दुनिया को दिखायी नहीं पड़ती। अतः साहित्य पर किसी का एकाधिकार नहीं होना चाहिए। हर किसी का अपना विचार और भाव है, जो समाज को आगे बढ़ाने में मददगार होगा। संजीव निगम ने इस कार्यक्रम का सफल संचालन किया।
कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार और लेखक डॉ. वागीश सारस्वत, पुस्तक के संपादक डॉ. प्रमोद पांडेय, सह संपादक रामकुमार, श्रीमती आभा सूचक, आलोक चौबे, संजीव निगम, रमन मिश्र, अमरीश सिन्हा, पियूष शुक्ला, राम कुमार पाल, हास्य कवि मुकेश गौतम व हरीश चंद्र शर्मा, देवेंद्र भारद्वाज, एडवोकेट वी एल पाठक, सतीश धुरी, डॉ. महिमा, सुभाष काबरा, उमेश पाण्डेय आदि प्रतिष्ठित साहित्यकार और सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे।
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‘बहुमत सम्मान’ इस वर्ष दिव्यांग चित्रकार बसंत साहू को
कला, साहित्य और संस्कृति की पत्रिका बहुमत द्वारा छत्तीसगढ़ी लोक नाट्य के अग्रपुरुष दाऊ रामचंद्र देशमुख की स्मृति में प्रदत्त ‘बहुमत सम्मान’ इस वर्ष दिव्यांग चित्रकार बसंत साहू को
अपने जीवन के 23-24 वर्ष तक बसंत साहू एक मध्यवर्गीय गृहस्थ थे।एक छोटी सी दुकान थी कस्बे में।वहीं से लौट रहे थे कि एक ट्रक ने अपनी चपेट में ले लिया।दोनों हाथ और दोनों पैर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए ।लगभग निष्क्रिय । एक साल से ज्यादा समय तक परिवार वाले उन्हें लेकर छत्तीसगढ़ के विभिन्न अस्पतालों में दौड़ते- भागते रहे।जीवन बच गया।बसंत पूरी तरह बिस्तर और व्हील चेयर पर आ गए।समय ने उनके जीवन में गहरा जख्म दिया था।
बसंत के जीवन में अब कोई उत्साह नहीं बचा था।घोर निराशा के इन्हीं क्षणों में बसंत के मन में जीवन जीने और उसे सार्थक बनाने के प्रति ललक पैदा हुई।उन्होंने अपने अपंग हाथों में लकड़ी के सहारे कूंची बांधकर पेंटिंग बनाना शुरू किया।जीवन मे असमय ही उतर आए अंधेरे को उन्होंने अपनी जिजीविषा से चीर दिया ,एक खूबसूरत उजाले में तब्दील कर दिया।
आज व्हील चेयर पर बैठकर और थक गए तो बिस्तर पर लेटकर प्रतिदिन तीन-चार घंटे वे चित्र बना लेते हैं।उनके पिता और घर के छोटे बड़े सभी लोग समय-समय पर उनके साथ रहते हैं और उनकी जरूरत के मुताबिक रंग,कूँची आदि उन्हें देते रहते हैं।
पिछले 25 वर्षों से वे आइल पद्धति से चित्र बना रहे हैं।उनके चित्रों में छत्तीसगढ़ का ग्राम्य जीवन ,यहां का लोक समाज और जन जीवन की चहल पहल जीवंत होते हैं।उनके घर में दो सौ से अधिक केनवास पेंटिंग हैं।राष्ट्रपति भवन,विधानसभा,राजभवन, मुख्यमंत्री निवास में भी उनके चित्र संग्रहित किए गए। कुछ प्रदर्शनियां भी लगी। हालांकि शारीरिक तकलीफ के चलते वे भाग दौड़ नहीं कर पाते।
22 नवंबर1972 को छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के कुरूद कस्बे मे जन्मे बसंत साहू को लोक चित्र कला के प्रति अदम्य समर्पण और ग्रामीण जन जीवन में व्याप्त नैसर्गिक कला प्रतिभा के लिए वर्ष 2021 का “बहुमत सम्मान” प्रदान किया जाएगा।कोरोना के कारण निर्मित विशेष परिस्थितियों के चलते सम्मान समारोह को संक्षिप्त और सीमित किया जा रहा है।विस्तृत जानकारी जल्द ही आप सब से सांझा करेंगे।
• यह आयोजन #श्री चतुर्भुज मेमोरियल फाउंडेशन भिलाई # संस्कृति विभाग छत्तीसगढ़ शासन की संयुक्त मेजबानी में होगा।
– टीम हस्ताक्षर