आलेख
त्रिपुरा के पर्यटन स्थल- वीरेन्द्र परमार
त्रिपुरा पूर्वोत्तर का छोटा पर सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण राज्य हैI त्रिपुरा नाम के संबंध में विद्वानों में मत भिन्नता है। इसकी उत्पत्ति के संबंध में अनेक मिथक और आख्यान प्रचलित हैं। कहा जाता है कि राधाकिशोरपुर की देवी त्रिपुर सुंदरी के नाम पर त्रिपुरा का नामकरण हुआ। एक अन्य मत है कि तीन नगरों की भूमि होने के कारण त्रिपुरा नाम दिया गया। विद्वानों के एक वर्ग की मान्यता है कि मिथकीय सम्राट त्रिपुर का राज्य होने के कारण इसे त्रिपुरा अभिधान दिया गया। कुछ विद्वानों का अभिमत है कि दो जनजातीय शब्द ‘तुई’ और ‘प्रा’ के संयोग से यह नाम प्रकाश में आया, जिसका शाब्दि्क अर्थ है ‘भूमि और जल का मिलन स्थल’।
त्रिपुरा एक प्राचीन हिन्दू राज्य था और 15 अक्टूबर 1949 को भारत संघ में विलय से पहले 1300 वर्षों तक यहाँ महाराजा शासन करते थेI राज्यों का पुनर्गठन होने पर 01 सितम्बर 1956 को त्रिपुरा को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गयाI 21 जनवरी 1972 को इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गयाI लगभग 18 आदिवासी समूह त्रिपुरा के समाज को वैविध्य्पूर्ण बनाते हैं, जिनमें प्रमुख हैं- त्रिपुरी, रियड; नोआतिया, जमातिया, चकमा, हालाम, मग, कुकी, गारो, लुशाई इत्यादि। इस प्रदेश के पास उन्नत सांस्कृतिक विरासत, समृद्ध परंपरा, लोक उत्सव और लोकरंगों का अद्धितीय भंडार है। बंगला और काकबराक इस प्रदेश की प्रमुख भाषाएं है। हिंदी भी व्यापक रूप से यहाँ बोली जाती हैI इसका क्षेत्रफल 10486.00 वर्ग किलोमीटर तथा कुल जनसंख्या 3,671,032 है, जिनमें 1,871,867 पुरुष एवं 1,799,165 महिला हैंI जनसंख्या का घनत्व 350 प्रति वर्ग किलोमीटर और लिंग अनुपात ( प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या) 961 हैI त्रिपुरा में साक्षरता 87.75 प्रतिशत हैI राज्य के प्रमुख शहर अगरतला, अमरपुर, अम्बासा, धर्मनगर, आनंदनगर, बेलोनिया, कैलाशहर, उदयपुर, विशालगढ इत्यादि हैI
त्रिपुरी लोकसाहित्य में प्रत्येक प्राकृतिक घटना की व्याख्या मौजूद हैI देवी-देवता, भूत-प्रेत, दानव, मानव, सूर्य, वनस्पति, पशु-पक्षी, तारे इत्यादि सभी की उत्पत्ति के सम्बन्ध में मिथक विद्यमान हैI भूकंप, आकाशगंगा,आकाश, बादल, बिजली, पर्वत, झील आदि से सम्बंधित मिथकों में रोचकता के साथ-साथ कल्पनाशीलता भी हैI गीत-संगीत त्रिपुरी समाज के लिए हवा-पानी और श्वास के समान है। वे हर्ष और विषाद दोनों स्थितियों में गाते हैं। वर्षा हो या धूप, वसंत हो या शरद, सुख हो या दुख- वे सभी स्थितियों में गीतों द्वारा अपनी भावनाएँ संप्रेषित करते हैं। वे समूह में भी गाते हैं और अकेले भी। समाज के अधिकांश लोकगीत अभी भी मौखिक परंपरा में ही विद्यमान हैं, जो पुरानी पीढ़ी के पास सुरक्षित हैं। कहानियाँ सुनाना और गीत गुनगुनाना त्रिपुरी समाज के लिए मनोरंजन और समय व्यतीत करने के साधन हैं। इन लोकगीतों में जीवन के सभी पहलू शामिल होते हैं I यहाँ संस्कार गीतों, उपासना गीतों, त्योहार गीतों, फसल गीतों आदि की उन्नत परंपरा हैI यहाँ के लोकगीतों में विषय विविधता हैI प्रेम, विवाह, संस्कार, प्राकृतिक घटनाएँ आदि इन लोकगीतों के विषय होते हैंI लोकगीतों में त्रिपुरा का सांस्कृतिक परिदृश्य प्रतिबिंबित होता है, स्थानीय भूगोल साँसें लेता है, देवी-देवता सम्बन्धी संकल्पनाएँ आकार ग्रहण करती हैं तथा वन्य-जीव प्रेमालाप करते हैंI नृत्य और त्योहारों के दौरान लड़के-लड़कियों में प्रेम संबंध विकसित होते हैं और वे अपनी भावनाओं को प्रकट करने के लिए गीतों का सहारा लेते हैं। खेतों में काम करते समय लोग गीत गाते हैं, जो उनकी थकावट को दूर करने का काम करते हैं। लोरी गीतों में माँ की ममता होती है। त्रिपुरा में अनेक पौराणिक व ऐतिहासिक स्थल हैं, जो पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैंI
अगरतला- अगरतला त्रिपुरा की राजधानी हैI यह गुवाहाटी के बाद पूर्वोत्तर भारत का दूसरा सबसे बड़ा शहर हैI ‘अगरतला’ दो शब्दों ‘अगर’ और ‘तला’ के संयोग से बना हैI ‘अगर’ का अर्थ है ‘एक मूल्यवान सुगन्धित वृक्ष’ और ‘तला’ का अर्थ है ‘भंडार गृह’I इस प्रकार अगरतला का अर्थ है ‘सुगंधित पेड़-पौधों के बाहुल्य वाला स्थान’I अगरतला हावरा नदी के तट पर बांग्लादेश की सीमा पर अवस्थित हैI यह शहर 76.504 वर्ग किलोमीटर में फैला हैI अगरतला का स्वर्णिम अतीत पर्यटकों को आकर्षित करता हैI ‘अगर’ वृक्ष का वर्णन महान राजा रघु के संदर्भ में बार-बार आता है, जो लोहित नदी के तट पर स्थित अगर वृक्ष में अपने हाथी के पैरों को बांधते थे। ईसा पूर्व 1900 में अगरतला के आरंभिक राजाओं में पतरदन की चर्चा मिलती हैI चित्ररथ, दृकपति, धर्मफा, लोकनाथ जीवनधरण अगरतला के महत्वपूर्ण राजा थे। अगरतला के लिए गुवाहाटी, कोलकाता और दिल्ली से हवाई सेवा उपलब्ध हैI अगरतला के लिए गुवाहाटी से प्रतिदिन ट्रेन चलती हैI यह शहर सड़क से भी अच्छी तरह जुड़ा हुआ हैI अगरतला गुवाहाटी से 587 किलोमीटर, कोलकाता से 1645 किलोमीटर, शिलोंग से 487 किलोमीटर, सिलचर से 250 किलोमीटर और बांग्लादेश की राजधानी ढाका से मात्र 150 किलोमीटर दूर हैI
त्रिपुरा राज्य संग्रहालय- त्रिपुरा राज्य संग्रहालय दुर्लभ कलाकृतियों और पांडुलिपियों का भंडार है, जो पूर्वोत्तर के समृद्ध इतिहास पर रोशनी डालता है। वास्तव में यह संग्रहालय राज्य की सांस्कृतिक विरासत का एक अभिन्न अंग है। इस संग्रहालय का राज्य स्तरीय संग्रहालय के रूप में 22 जून 1970 को उद्घाटन किया गया था। यह संग्रहालय राज्य की अनमोल धरोहरों का भंडार घर है, जो त्रिपुरा की उत्कृष्ट कला और शिल्प का साक्ष्य प्रस्तुत करता है। अगरतला शहर में चौमोहानी डाकघर के निकट स्थित इस संग्रहालय में चार दीर्घा हैं: पुरातत्व गैलरी, आदिवासी संस्कृति गैलरी, चित्रकारी गैलरी और भारतीय मूर्तिकला गैलरीI इन दीर्घाओं में 1645 से अधिक ऐतिहासिक यादगारों के अद्भुत संग्रह को प्रदर्शित किया गया है। विद्वान और इतिहासकार इन सोने, चांदी और तांबे के सिक्कों के माध्यम से ऐतिहासिक साक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। यहाँ अनेक बर्तन, मिट्टी, कांस्य की मूर्तियां और ताम्र शिलालेख हैंI संग्रहालय के अभिलेखागार में कुछ क़ीमती पांडुलिपियों में बंगला और संस्कृत महाकाव्य का इतिहास शामिल हैं। संग्रहालय में एक समृद्ध पुस्तकालय भी है, जिसमें त्रिपुरा के इतिहास, पुरातत्व, वास्तुकला और नृविज्ञान पर केन्द्रित दुर्लभ पुस्तकें उपलब्ध हैंI
हेरिटेज पार्क- बारह एकड़ भूमि में फैले हेरिटेज पार्क शहर के केंद्र में स्थित है, जो राजभवन के उत्तर में अगरतला-जीबीपी अस्पताल रोड पर स्थित है। इस पार्क का उद्घाटन 30 नवंबर 2012 को त्रिपुरा के माननीय मुख्यमंत्री द्वारा किया गया था। पार्क के प्रवेश द्वार पर आदिवासी और गैर-आदिवासी दोनों की सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित किया गया है।
उजयंत पैलेस- यह अगरतला शहर के बीच में स्थित हैI यह पैलेस दो मंजिला हवेली है, जिसमें तीन गुंबद हैंI इस राजमहल का निर्माण कार्य 1899 में आरंभ हुआ और 1901 में पूरा हुआI इस पर दस लाख रुपए खर्च हुए थेI इसके दोनों तरफ दो बड़े तालाब और बीच में रास्ता हैI इसमें मुगल स्थापत्य कला की तर्ज पर बगीचा, जलमार्ग एवं फव्वारे हैंI पैलेस का मुख्य भाग लगभग 80 एकड़ में फैला हैI इस भाग में सिंहासन कक्ष, दरबार हॉल, पुस्तकालय, अध्ययन कक्ष और स्वागत कक्ष है जो कलाकृतियों से सुसज्जित हैंI स्वेत महल, लालमहल और दावतखाना का निर्माण बाद के वर्षों में किया गयाI इस पैलेस में अब त्रिपुरा सरकार की विधानसभा एवं कुछ अन्य कार्यालय स्थित हैंI नदी किनारे बसे हुये उज्जयंत महल की खूबसूरती देखते ही बनती है। यह महल भारतीय-अरबी स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है। इसके विशालकाय गुम्बद तथा लम्बे-लम्बे बरामदे, नक्काशीदार दरवाजे तथा फव्वारे किसी का भी मन मोह लेते हैं। यह महल 1947 तक अगरतला पर राज करने वाले माणिक्य राजवंश का आवास था। महल के एक भाग में आज भी उनके वंशज रहते हैं। महल में हाथी दांत से बना विख्यात राज सिंहासन भी है। इसमें एक संग्रहालय भी स्थापित किया गया है।
कुंजवन पैलेस- उज्यंत पैलेस के उत्तर में एक खूबसूरत पहाड़ी है, जिसे कुंजवन के नाम से जानते हैंI यहाँ कलाविद महाराज वीरेंद्रकिशोर माणिक्य ने पैलेस एवं बगीचे की रुपरेखा बनायीं थीI यह महल महाराजा और उनके अतिथियों का विश्राम स्थल थाI त्रिपुरा की सातवीं यात्रा के दौरान वर्ष 1926 में रवीन्द्रनाथ टैगोर इस महल के पूर्वी खंड में ठहरे थेI अब यह पैलेस राज्यपाल का निवास हैI
जगन्नाथ मंदिर- जगन्नाथ मंदिर कुंजवन पैलेस के निकट स्थित हैI जगन्नाथ मंदिर अपने अनूठे स्थापत्य के लिए विख्यात हैI यह हिन्दू पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुख केंद्र हैI इसका आधार अष्टभुजाकार है, जिसके चारों ओर एक प्रदक्षिणा पथ हैI अष्टभुजा के प्रत्येक खम्भे पर वर्गाकार पिरामिड बना हैI जगन्नाथ मंदिर का वास्तुशिल्प दक्षिण भारतीय मंदिरों से प्रेरित है। शहर से 14 किलोमीटर दूर पुराने अगरतला में चतुर्दश देवता मंदिर स्थित है। यहाँ 14 देवियों की पूजा होती है। त्रिपुरी भाषा में इन देवियों के नाम हैं- लाम्प्रा, अखत्रा, बिखत्रा, बुरासा, थुमनाईरोक, बोनीरोक, संग्रोमा, मवताईकोतोर, त्विमा, सोंग्राम, नोकसुमवताई, माइलूमा, खुलूमा और स्वकलमवताई।
तीर्थमुख- यह अगरतला से 117 किलोमीटर दूर अमरपुर अनुमंडल में स्थित हैI यह गोमती नदी के उद्गम स्थल डाम्बूर जल प्रपात के निकट अवस्थित हैI यहाँ हर वर्ष संक्रांति के अवसर पर हजारों हिन्दू श्रद्धालु धार्मिक स्नान करने के लिए आते हैंI इस अवसर पर एक मेला भी लगता हैI यहाँ एक जलविद्युत उत्पादन संयंत्र स्थापित किया गया हैI इसका जलाशय 40 वर्गकिलोमीटर में फैला है, जिसमें छोटे-छोटे द्वीप हैंI चांदनी रात में झील की सैर अत्यंत मनोहारी होता हैI
सुकांत अकादमी- यह एक विज्ञान संग्रहालय है, जो अगरतला शहर के केंद्र में स्थित है। छात्रों, शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों को आकर्षित करने के लिए परिसर में एक छोटा तारामंडल भी स्थापित किया गया है। अगरतला स्थित चिल्ड्रेन पार्क में बच्चों की सक्रिय भागीदारी के माध्यम से विज्ञान, कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से त्रिपुरा सरकार ने सुकांत अकादमी का विकास किया है।
ब्रह्मकुंड- यह अगरतला से 48 किलोमीटर दूर सिमना के रास्ते में स्थित हैI यहाँ स्थित शिवमंदिर और तालाब पर्यटकों के आकर्षण के प्रमुख केंद्र हैंI यहाँ वर्ष में दो बार अप्रैल एवं नवंबर में मेला लगता हैI ब्रह्मकुंड जाने के रास्ते में दोनों ओर चाय के बागान पर्यटकों की यात्रा को आनंददायक बनाते हैंI त्रिपुरा के पर्यटन मानचित्र पर ब्रह्मकुंड ने अपनी विशिष्ट पहचान बना ली हैI
त्रिपुरसुंदरी मंदिर- उदयपुर अगरतला से 55 किलोमीटर की दूरी पर गोमती नदी के किनारे स्थित है। इसे राज्य का तीसरा सबसे बड़ा शहर माना जाता है। उदयपुर का दूसरा नाम झील सिटी भी है। शहर के प्रमुख आकर्षण पुराने महल, नज़रूल ग्रन्थागार, भुवनेश्वरी मंदिर, त्रिपुरसुंदरी मंदिर, गुणवती मंदिर समूह, कल्याण सागर हैं। उदयपुर में स्थित त्रिपुरेश्वरी मंदिर देश की 51 शक्तिपीठों में से एक है। इसे कूर्म पीठ कहा जाता है क्योंकि मंदिर का आकार कछुए के समान है। इस मंदिर का निर्माण 1501 में महाराजा धन्य माणिक्य ने करवाया थाI एक बार बिजली गिरने से मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया था तो महाराजा राम माणिक्य ने 1681 में इसकी मरम्मत करवायी थीI राधाकिशोर माणिक्य ने भी वर्तमान शताब्दी के आरम्भ में मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया थाI त्रिपुरेश्वरी राज परिवार की कुलदेवी हैंI इसे माताबाड़ी भी कहते हैंI यहाँ दीपावली के अवसर पर भव्य मेला लगता हैI उदयपुर के आसपास कुछ अन्य मंदिरों के खंडहर भी देखे जा सकते हैंI इसमें भुवनेश्वरी मंदिर, गुणवती मंदिर, दतिया समूह के मंदिर और गोविंद माणिक्य महल प्रमुख हैंI इनमें से अधिकांश मंदिरों का निर्माण 16 वीं और 17 वीं शताब्दी में हुआ हैI मंदिर के निर्माण काल को लेकर विद्वानों में मतभेद हैI मंदिर पर खुदे अभिलेख के अनुसार 1661 में इस मंदिर का निर्माण कराकर महाराजा गोविंद माणिक्य ने इसे भगवान विष्णु को समर्पित कर दिया थाI दूसरे मत के अनुसार इसका निर्माण महाराजा विजय माणिक्य (1529 -60) के शासनकाल में हुआ थाI गोमती नदी के दाहिने तट पर गोविंद माणिक्य का महल और भुवनेश्वरी मंदिर का खंडहर हैI उदयपुर में ही गुणवती मंदिर स्थित है, जिसका नामकरण गोविंद माणिक्य की पत्नी गुणवती के नाम पर किया गया हैI
भुवनेश्वरी मंदिर- भुवनेश्वरी मंदिर उदयपुर का प्राचीन मंदिर है। 17 वीं सदी में निर्मित यह मंदिर गोमती नदी के तट पर पुराने शाही महल के निकट है। यह महल अब खंडहर में बदल गया है। महान लेखक रवीन्द्रनाथ टैगोर भी इस शक्तिपीठ से काफी प्रभावित थे। उन्होंने अपने उपन्यास तथा नाटक में इसका वर्णन किया है।
धर्मनगर- यह त्रिपुरा का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। राज्य की राजधानी की तरह धर्मनगर भी अपने समृद्ध इतिहास के लिए जाना जाता है। प्राचीन स्थल इस शहर की कहानी का बयान करते हैं। रोवा वन्यजीव अभयारण्य, अफलांग, जाम्पुई हिल्स और कालीबारी मंदिर इस शहर के प्रमुख आकर्षण हैं।
अम्बासा- यह त्रिपुरा के सबसे सुंदर शहरों में से एक हैI यह शहर उल्लेखनीय मंदिरों की वजह से ध्यान आकर्षित करता है। इस शहर के प्रमुख आकर्षण हैं- कमलासागर काली मंदिर, गोमती वन्यजीव अभयारण्य, पिलक, कमलेश्वरी मंदिर, डुम्बोर झील आदि। कमलासागर काली मंदिर को कस्बा काली बारी के रूप में भी जाना जाता हैI कमलासागर काली मंदिर अगरतला से लगभग 27 किलोमीटर दूर स्थित है। यह बांग्लादेश की सीमा पर स्थित है और त्रिपुरा के सबसे लोकप्रिय पिकनिक स्थलों में से एक है। मंदिर में रखे देवता की प्रतिमा महिषासुरमर्दनी जैसी दिखती हैI
ऊनाकोटि- उत्तरी त्रिपुरा में अवस्थित ऊनाकोटि पर्वतमाला देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का एक प्रमुख केंद्र हैI यह अगरतला से 177 किमी दूर कैलाशहर अनुमंडल के निकट स्थित हैI यहाँ शिला पर उकेरे गए विभिन्न देवी-देवताओं के चित्र एवं भगवान शिव, गणेश, माँ दुर्गा, नंदी बैल की पत्थर की मूर्तियाँ देखने लायक हैंI यहाँ पर शिव और विशालकाय गणेश की मूर्ति विशेष रूप से उल्लेखनीय हैI शिव के सिर को उन्नकोटिश्वर काल भैरव कहा जाता हैI ज़मीन में आधी धंसी नंदी की तीन बड़ी मूर्तियाँ हैंI केन्द्रीय शिव के आस-पास देवी की दो मूर्तियाँ हैंI पहाड़ी पर विष्णु पंचमुख, रावण, नरसिम्हा, गणेश और हनुमान की मूर्ति हैI पुरातत्ववेत्ताओं का मानना है कि ये मूर्तियाँ 11-12 वीं शताब्दी की बनी हैंI यहाँ पर वसंत ऋतु में अशोक अष्टमी मेला लगता हैI
नीरमहल- अगरतला से 52 किलोमीटर दूर स्थित नीरमहल अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करता हैI इस महल के चारों तरफ रुद्रसागर झील हैI ऐसी मान्यता है कि वीर विक्रम किशोर माणिक्य (1927-47) झील के सौन्दर्य से इस कदर अभिभूत हो गए कि झील के मध्य में उन्होंने महल बनवा दिया और उसे नीरमहल नाम दे दियाI यह महल अब जर्जर हो चुका हैI इस महल का जीर्णोद्धार कर एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता हैI
गुमती वन्यजीव अभयारण्य- गुमती वन्यजीव अभयारण्य त्रिपुरा का प्रसिद्ध वन्यजीव अभयारण्य है, जो राज्य के दक्षिणी भाग में स्थित है। यह अभयारण्य 389.59 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। यह अभयारण्य मुख्य रूप से हाथी, भौंकने वाले हिरण, सांभर, बाइसन के लिए प्रसिद्ध हैI यहाँ घरेलू के साथ-साथ विविध प्रजातियों के प्रवासी पशु-पक्षी भी पाए जाते हैंI
रोवा वन्यजीव अभयारण्य- त्रिपुरा के उत्तरी किनारे पर स्थित रोवा वन्यजीव अभयारण्य राज्य का प्रमुख अभयारण्य है। यह छोटा अभयारण्य 85.85 वर्गकिलोमीटर में फैला है I इस अभयारण्य में विभिन्न प्रजातियों के वन्य जीव और पेड़-पौधे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। यह अभयारण्य वनस्पति विज्ञानियों, पक्षी विज्ञानियों और जीवविज्ञानियों के लिए प्रमुख गंतव्य है। यह अभयारण्य औषधीय जड़ी-बूटियों और ऑर्किड के लिए भी प्रसिद्ध है।
सिपाहीजाला वन्यजीव अभयारण्य- अगरतला से 35 किमी की दूरी पर सिपाहीजाला वन्यजीव अभयारण्य स्थित है। यह अभयारण्य एक आदर्श स्थल है, जो त्रिपुरा की जैव विविधता को संरक्षित करता है और राज्य में पर्यावरण पर्यटन को बढ़ावा देता है। सिपाहीजाला वन्यजीव अभ्यारण्य 18.53 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हैI त्रिपुरा की जैव विविधता को संरक्षित करने में इस अभयारण्य की महत्वपूर्ण भूमिका हैI जनसंख्या वृद्धि के के कारण वन क्षेत्र सिमटता जा रहा है और जैव विविधता पर भी संकट बढ़ता जा रहा है। क्षेत्र की जैव विविधता को संरक्षित और प्रसारित करने के लिए वर्ष 1972 में सिपाहीजाला जैव परिसर अस्तित्व में आया। एक बॉटनिकल गार्डन, एक हिरण पार्क और एक चिड़ियाघर भी इस वन्यजीव अभ्यारण्य के अंग हैं। अभयारण्य में पौधों की 456 से अधिक प्रजातियां, कई प्रकार के बांस और विभिन्न प्रकार की घास और औषधीय पौधे मौजूद हैं। नम और पर्णपाती जंगल में रेसस मकाक, पिग्टाइल मैकाक, कैप्ड लंगूर, स्पेकटेक्लेटेड बंदर और कई अन्य जंगली जानवर जैसे तेंदुए, क्लाउडेड तेंदुए, जंगली मुर्गी, हिरण, जंगली सूअर आदि विभिन्न प्रजातियों का निवास है। पर्यटकों के लिए अतिरिक्त आकर्षण का केंद्र कॉफी और रबड़ के बागान हैंI झील में नौकायन की सुविधा भी उपलब्ध है। अभयारण्य में कुछ आरामदायक पर्यटक कॉटेज हैं।
– वीरेन्द्र परमार