मूल्यांकन
डोगरी, पंजाबी और हिंदी भाषाओं की खुशबू लिए काव्य संग्रह ‘घड़ी’
घड़ी संग्रह के मूल लेखक कवि मोहन सिंह हैं, जिसे यशपाल निर्मल ने डोगरी से हिंदी में अनूदित किया है। यूँ तो अनुवाद का काम ही अत्यंत दुरूह है परन्तु यदि काव्य को अनूदित करना हो तो अनुवादक की ज़िम्मेवारी और अधिक बढ़ जाती है और यह कार्य और अधिक दुरूह हो जाता है। काव्य का अनुवाद अन्य विधाओं से अधिक जटिल होता है। इसका कारण ये है कि काव्य में भाव प्रधान होते हैं और किसी अन्य के भावों को बनाये रखते हुए लय के साथ बिना भावों को बदले अनुवाद करना वास्तव में यशपाल सरीखे रचनाधर्मी ही कर सकते हैं।
यशपाल की एक प्रमुख विशेषता इस अनुदित पुस्तक में दिखाई देती है कि वे अत्यंत भाव प्रणव हैं। छंदबद्ध रचना का जहाँ आज के युग में प्रादुर्भाव हैं वही यशपाल न केवल अनुवाद करते हैं बल्कि छंद के नियमों का पूर्णतः पालन करते हैं:
आते-जाते को निहारती
एक वियोगन खड़ी-खड़ी।
घड़ी की तुलना वियोगन से करके यशपाल एकदम अलग खड़े प्रतीत होते हैं। वे पुन: कहते हैं-
आज तेरे यौवन की चर्चा
हर कविता की कड़ी कड़ी।
ये शब्द संयोजन ही है, जो उन्हें एक कवि के रूप में स्थापित करता है। तब वो एक अनुवादक नहीं रह जाते, पूर्ण रूपेण कवि में तब्दील हो जाते हैं, जहाँ भाव प्रधान हैं। जहाँ शब्दों की बाजीगरी नहीं, भावों की बाजीगरी चलती है। इस पूरी प्रकिया में वे मात्र अनुवादक नहीं रह जाते वरन् ऐसा प्रतीत होता है कि वे एक सम्पूर्ण रचनाकार हैं और ये सम्पूर्ण रचना उनकी स्वयं की है। वे ही इसके अभियंता हैं। पुस्तक के प्रारंभ में अर्चना केसर उन्हें आशीर्वचन में लिखती भी हैं-
“यशपाल ने अपने अंदर रहने वाले कवि को यथासंभव अनुवादक से पृथक रखा है।”
समाज की विसंगति पर भी यहाँ बहुत सलीके से कलम चलायी गयी है-
हमीं कहार थे और हमीं फिर
आये शोक मनाने।
हमीं समक्ष हुए अग्नि फेरे
जली हमारे हाथों।
यहाँ रचनाकार संवेदनाओं पर तीखा व्यंग्य करता प्रतीत होता है और अनायास ही रचनाकार के अन्दर का व्यंग्यकार चित्रित हो उठता है। शब्दों का संयोजन यहाँ बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। जहाँ जब जिस तरह के शब्दों की जरुरत होती है, यशपाल उसी तरह के शब्दों का संयोजन करते हैं। उनके आनुवाद को देखकर ऐसा लगता है कि जहाँ कहीं आवश्यकता होती है, वो डोगरी के शब्दों को यथावत रखने के हिमायती हैं। जैसे- धाम भोजड़ी मीटी।
यशपाल मूल रचना के फ्लेवर के साथ खड़े हैं, उन्हें इस तरह के शब्दों के लिए हिंदी शब्दों की आवश्यकता नहीं पड़ती। ये जो डोगरी हिंदी की मिली-जुली खुशबू है। ये काव्य की महक को बढ़ाती है। यशपाल जहाँ कहीं ज़रुरत होती है, आलंकारिक भाषा का प्रयोग भी करते हैं-
मन मेरा मौजी मतवाला, पढ़-पढ़ प्रीतम पाठ तेरा।
बकौल मूल लेखक मोहन सिंह घड़ी अस्सी के दशक का चर्चित काव्य संग्रह है, जिसे कवि-सम्मेलनों, मुशायरों में खूब प्रशंसा मिली है, लेकिन ये बेहद अफ़सोस की बात है कि एक लम्बे अरसे के बाद इसका अनुवाद हिंदी में आया है तथापि यशपाल निर्मल इस कार्य के लिए बधाई के पात्र हैं। ये भी एक विचित्र बात है कि हर राज्य की अकादमियां होने के बावजूद यशपाल को इस अनुवाद को निजी प्रयासों से प्रकाशित कराना पड़ा। हालाँकि ये एकदम अलग विषय है कि भारतीय भाषाओं के साहित्य को हिंदी में अनुदित कर हिंदी के वृहद पाठकों तक कैसे पहुँचाया जाए। इस कार्य के लिए यशपाल निर्मल निश्चित ही बधाई के पात्र हैं।
यदि काव्य के शिल्प और विधान की चर्चा की जाए तो वहाँ भी यशपाल एक कर्मठ योद्धा की तरह खड़े दिखाई देते हैं। इस काव्य संग्रह में छंदमय और छंदमुक्त दोनों तरह की काव्य शैली के दर्शन होते हैं। भाषा की दृष्टि से भी यशपाल अभिनव प्रयोग करते हैं। डोगरी, पंजाबी और हिंदी भाषाओं की खुशबू को इस पुस्तक में महसूस किया जा सकता है। काव्य में कलिष्ठता नहीं है, तथापि हिंदी का पाठक डोगरी के शब्दों में उलझ सकता है और अर्थ स्पष्ट न होने की स्थिति में काव्य उसकी समझ से बाहर होने का अंदेशा भी होता है, लेकिन यह बात कहीं-कहीं ही देखने को मिलती है। अधिकाश जगह जहाँ कहीं इस तरह का प्रयोग हुआ है, वहाँ उसके साथ अर्थ आसानी से स्पष्ट होता जाता है और पाठक खुद को काव्य से जुड़ा हुआ महसूस करता है। यह कवि और अनुवादक यशपाल की विशिष्टता भी है।
बतौर समीक्षक मैं इस तरह के कार्य की सराहना करता हूँ। अनुवादक यशपाल के इस महान कार्य के लिए उन्हें बधाई प्रेषित करना भी मैं अपना फर्ज समझता हूँ और बतौर कवि उन्हें शुभकामना देता हूँ। आशा है भविष्य में भी वो हिंदी पाठकों को डोगरी साहित्य से परिचित कराते रहेंगे।
समीक्ष्य पुस्तक: घड़ी
मूल लेखक: मोहन सिंह
अनुवादक: यशपाल निर्मल (yash.dogri@gmail.com)
प्रकाशन वर्ष: 2015
मूल्य: 270 रूपये
प्रकाशक: निधि पब्लिकेशन
524-माता रानी दरबार,
नरवाल पाईं, एयर पोर्ट रोड,
सतवारी, जम्मू-180003
– संदीप तोमर