स्मृति
ज्ञानपीठ पुरस्कार और पद्मभूषण से सम्मानित हिन्दी के वरिष्ठ कवि कुंवर नारायण जी का 15 नवम्बर 2017 को निधन हो गया. वे 90 वर्ष के थे।
‘हस्ताक्षर परिवार’ की ओर से उन्हें नमन एवं भावभीनी श्रद्धांजलि!
कविताएँ – कुंवर नारायण
अजीब वक्त है –
बिना लड़े ही एक देश- का देश
स्वीकार करता चला जाता
अपनी ही तुच्छताओं के अधीनता !
कुछ तो फर्क बचता
धर्मयुद्ध और कीट युद्ध में –
कोई तो हार जीत के नियमों में
स्वाभिमान के अर्थ को फिर से ईजाद करता।
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मैं इस्तीफा देता हूं
व्यापार से
परिवार से
सरकार से
मैं अस्वीकार करता हूं
रिआयती दरों पर
आसान किश्तों में
अपना भुगतान
मैं सीखना चाहता हूं
फिर से जीना…
बच्चों की तरह बढ़ना
घुटनों के बल चलना
अपने पैरों पर खड़े होना
और अंतिम बार
लड़खड़ा कर गिरने से पहले
मैं कामयाब होना चाहता हूं
फिर एक बार
जीने में
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कविता वक्तव्य नहीं गवाह है
कभी हमारे सामने
कभी हमसे पहले
कभी हमारे बाद
कोई चाहे भी तो रोक नहीं सकता
भाषा में उसका बयान
जिसका पूरा मतलब है सचाई
जिसका पूरी कोशिश है बेहतर इन्सान
उसे कोई हड़बड़ी नहीं
कि वह इश्तहारों की तरह चिपके
जुलूसों की तरह निकले
नारों की तरह लगे
और चुनावों की तरह जीते
वह आदमी की भाषा में
कहीं किसी तरह ज़िन्दा रहे, बस
– कुँवर नारायण