जाओ मुझे क्या है?
खुद ही रोयेगी
ढूंढेगी मुझे
पूछेगी पता मेरा
कभी पड़ोस की काकी से
तो कभी पूरे मुहल्ले से
पर मैं पास नहीं अब आऊँगा
जाओ मुझे क्या है?
क्यों नही आई तुम
पिछले दो दिनों से
जब मैं बहुत रोया था
और रोता ही रहा रातभर
कि तुम आओगी
और लगाओगी गले से
लेकर बलैयाँ और चूमके माथा
बोलोगी मेरा राजा बेटा सॉरी!
जाओ मुझे क्या है?
मैं तो खुश हूँ अपना
एक काकी यहाँ भी है
जो देती है खिलौने
पिलाती है दूध
बोल रखा है उसने
कि तुम गयी हो
भगवान के पास
आ जाओगी कुछ दिनों में
पर मैं बहुत गुस्सा हूँ तुमसे
सबजगह तो मेरे बिना जाती न थी
आज अकेली क्यों गयी छोड़के
जाओ मुझे क्या है?
देखो, इससे पहले कि
मैं और नाराज हो जाऊँ
तुम आ जाना
और लगा के गले से
फिर वही प्यारी लोरी सुनाना
बहुत दिनों से सोया नही हूँ
फिर अबकी हम भी चलेंगे
और डाँटेंगे भगवान को
कि माँ भूल गयी
पर आपको तो
याद रखना था
कि एक भोला बच्चा
हो ही नही सकता
दूर कभी अपनी माँ से
जाओ मुझे क्या है?
– यू एस मिश्रा स्वप्निल