ज़रा सोचिये
इंसानियत का बीजारोपण
कभी सोचा है हमारे आसपास कितने भूखे और जरूरतमंद लोग घूमते रहते हैं? हम इन सबको नज़रअंदाज़ करते हुए अपना ही जीवन जीते चले जाते हैं लेकिन जब कभी परिवार समाज और देश की बात होती है, हम मुखिया बनकर बड़ी-बड़ी बातों में आगे रहते हैं।
उच्चवर्ग अधिकतर मंच और नाम तलाशता हुआ पहुंचता है जरुरतमंद की देहरी पर, मध्यमवर्ग पंहुचता है अपने दर्द का राग अलापता हुआ और निम्न वर्ग अपने हाथ-पैरों को कष्ट से बचाने के चक्कर में बेचारगी पर आंसू बहाता हुआ, पर वास्तव में आपूर्ति के वास्तविक हक़दार तक कोई नहीं पहुँच पाता।
सिर्फ गरीब ही जरुरतमंद हो ये भी कतई जरुरी नहीं है। गरीब अगर मेहनत से दाल-रोटी भी खाता है तो वो जरुरतमंद नहीं है क्योंकि उसके पास मेहनत का खज़ाना है, मध्यम वर्ग अपनी आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने की जद्दोजहद में उलझा हुआ है तो भी वो दया का पात्र नहीं है क्योंकि उसके पास साधन है और उच्चवर्ग यदि अपनी विलासिता की वस्तुओं के उपभोग से भी संतुष्ट नहीं है तब भी वो सहानुभूति का पात्र नहीं है।
तो वास्तव में जरूरतमंद है कौन?
जरूरतमंद वो बच्चा है, जिसे रोज हम ट्रेन में अपने छोटे-छोटे भाई बहनों के साथ करतब दिखाते और गाने गाते सुनते हैं, जरुरतमंद वो है जो आंखो से नज़र न आते हुए भी रोटी की तलाश में भटकते, टटोलते हुए सड़क पार करने की कोशिश करते हुए गिर पड़ते हैं, जरूरतमंद वो है जो ऊंची ऊंची डिग्रियों को जेब में रखकर लोगों के घरों में नालियां साफ़ करता है, जरूरतमंद वो है जो बस या रेलवे स्टेशन के सामने रिक्शा लेकर धूप और बारिश में सवारी के इंतजार में खड़े होकर अपने सामने से गुजरती महंगी गाड़ियों में जाती हुई उम्मीदों को देखता है, जरूरतमंद वो है जिसके बच्चों के बंगलों में उनके लिए ही जगह नहीं है। जरुरतमंद हैं वो जिन्हें कुदरत ने दिया है कला और हुनर का उपहार और वो सड़को पर नुमाईश कर रहे हैं रोटी के टुकड़ों की खातिर, जरुरतमंद वो है जो दस बच्चों को पालने का दम रखता हो पर उसकी गोद सूनी हो, जरूरतमंद वो है जो पैसे न होने के कारण हॉस्पिटल के बाहर जमीन पर दम तोड़ रहा हो।
ये सब तो चंद उदाहरण मात्र हैं और ऐसे ही उदाहरणों से भरा पड़ा है हर परिवार, समाज और देश,..जरूरत है जरुरतमंदों को पहचानने की।
आज देश को जरुरत है पर्यावरण की सुरक्षा की, पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए क्या सिर्फ पेड़ लगाना काफी है? नही,..! आज जरुरत सिर्फ पेड़ों की सुरक्षा और पेड़ लगाने की ही नहीं बल्कि इस जानकारी की भी है कि कौनसा पेड़, कौनसी फसल कब, कहां और कैसे लगानी है। सच ये है जरूरत सिर्फ पेड़ों की ही नहीं बल्कि इंसानियत, खुशियों और सद्भावनाओं के बीजारोपण की भी है। सुना देखा और पढ़ा भी है कि जो बोओगे वही पाओगे, इसलिए आज मेरे मन में भी ये विचार आया है कि-
अगर आम बोने से आम मिलते हैं
और नीम बोने से नीम
आओ लगाएँ फसल दुआ की
न कोई भूखा रहे न यतीम
– प्रीति सुराना