जयतु संस्कृतम्
ग्रथितं मया
प्रत्नवर्षमौक्तिकम्
अब्दमालायाम्||1||
गूंथा है मैंने
पुराने साल के मोती को
वर्षमाला में
स्थापितं मया
स्मृतिकक्षे प्रत्नाब्दं
पुनश्चर्वणाय नु||2||
रख दिया है मैंने
पुराने साल को यादों के कमरे में
जुगाली करने के लिये
अर्पितं मया
पुराणवर्षपुष्पं
जीवपादयो:||3||
चढ़ा दिया मैंने
पुराने वर्ष के पुष्प को
जिंदगी के चरणों में
जीवनमूर्तौ
कालगलन्तिकाया:
स्रवत्यब्दोsयम् ||4||
जिंदगी की मूर्ति पर
समय की जलहरी से
टपक रहा है यह साल
निक्षिपे पदं
वर्षसीमस्थितोsहं
स्वप्नान् गृहीत्वा||5||
रख रहा हूँ पैर
वर्ष की सीमा पर खड़ा हुआ मैं
सपनो को लेकर
प्रत्नाब्दं त्यक्त्वा
नवीनाब्दं गृह्णाति
खलु कालोsयम्||6||
पुराने साल को छोड़कर
नए साल को ग्रहण करता है
यह काल
जीवनग्रन्थे
कुत्रचिन्न्यस्तं मया
प्रत्नाब्दपक्षम्||7||
जिंदगी की किताब में
कहीं रख दिया है मैंने
पुराने साल के पंख को
संवत्सरोsयं
प्रस्थितरेलयान-
मिव धावति||8||
यह साल
दौड़ रहा है
छूट गई ट्रेन की तरह
कालवर्षभस्
त्यजति वर्षचिह्नान्
जीवनमार्गे||9||
काल रूपी वृषभ
छोड़ता है साल के चिह्नों को
जिंदगी के रास्ते पर
वत्सरप्रश्नो
बत! अनुत्तरोsहं
प्रत्येकं काले||10||
साल का प्रश्न
खेद है अनुत्तरित रह जाता हूँ
हर बार की तरह
– डाॅ. कौशल तिवारी