ख़बरनामा
जनसरोकारों की पत्रिका ‘मणिका’
लखनऊ। “लघु पत्रिकाओं ने हिन्दी साहित्य को वैचारिक दृष्टि से समृद्ध किया है। इस कारण साहित्य इन पत्रिकाओं का ऋणी है।”
यह बातें वरिष्ठ साहित्यकार लक्ष्मण केडिया जी ने कही। श्री केडिया लखनऊ प्रेस क्लब में व्हाट्सअप ग्रुप ‘मणिका’ द्वारा आयोजित ‘सामाजिक जड़ता और समकालीन साहित्य के बीच लघु पत्रिकाओं की भूमिका’ विषयक संगोष्ठी और पत्रिका विमोचन समारोह को बतौर मुख्यअतिथि सम्बोधित कर रहे थे।
संगोष्ठी की शुरुआत करते हुये युवा आलोचक अजीत प्रियदर्शी ने कहा – ‘ हिन्दी साहित्य का गंभीर पाठक लघु पत्रिकाओं की ओर ललचाई दृष्टि से देखता है। इन पाठकों की खुराक इन्हें पढ़ने के बाद ही पूरी होती है।’
साहित्यकार बृजेश नीरज ने कई गम्भीर मुद्दे उठाते हुये कहा कि बाजार के खतरों को बाजार के हथियार से ही पराजित किया जा सकता है।
सुलतानपुर के युवा साहित्यकार ज्ञानेन्द्र विक्रम सिंह ‘रवि’ ने कहा – ‘लघु पत्रिकायें न उच्च वर्ग की जड़ता को प्रभावित कर सकती हैं न निम्न वर्ग की जड़ता को तोड़ सकती हैं। मध्यवर्ग इनका कार्य क्षेत्र है यहां ये सफल हैं।’
बांदा के आलोचक उमाशंकर परमार ने कहा कि ‘हिन्दी साहित्य के अधिकांश बड़े साहित्यकार लघु पत्रिकाओं की उपज हैं।’
इससे पूर्व आरा (बिहार) से आये ‘मणिका’ के सम्पादक सिद्धार्थ वल्लभ ने आगंतुकों का स्वागत करते हुये ‘मणिका’ के बारे में जानकारी दी। उपस्थित अतिथियों ने जनसरोकारों की पत्रिका मणिका के प्रवेशांक का विमोचन किया।
संचालन युवा कवि मनोज शुक्ल ने तथा अध्यक्षता मधुकर अस्थाना ने की। आभार ज्ञापन गोरखपुर की कवयित्री और मणिका की सह सम्पादक प्रियंका पांडेय ने किया।
समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार कैलाश निगम, मंतव्य के सम्पादक हरेप्रकाश उपाध्याय, निकट की संपादक प्रज्ञा पाण्डेय, रेवान्त की संपादक अनिता श्रीवास्तव, उत्तर प्रदेश के चर्चित युवा साहित्यकार सौरभ श्रीवास्तव, प्रद्युम्न कुमार सिंह समेत अनेक प्रमुख साहित्यसेवी उपस्थित रहे।
– आज़र ख़ान