दुर्मिल सवैया
1.
तुम जीवन हो तुम प्राण प्रिये, बुझते मन की तुम आस प्रिये।
हिय पे करती तुम राज प्रिये, तुम दूर रहो तुम पास प्रिये।।
झरता जब सावन साँस प्रिये, चुभती हिय में तब फाँस प्रिये।
मन में उपजा अहसास प्रिये, लगता तब है मधुमास प्रिये।।
2.
हिय दीपक सा कुछ यूँ जलता, सुधियाँ हुलकी मनवा तरसे।
चढ़ता जब सूरज आस बँधी, ढलता तब है तनवा सरसे।।
अब आन मिलो तुम तो सजना, विरहा मन है नयना बरसे।
तन ताप चढ़े हियरा सुलगे, तुम दूर गए जब हो घर से ।।
दोधक छंद
पीर धुली हँसती धरती है, वैद्य बनी बरखा झरती है।
साजन आ नयना तरसे हैं, सावन देख जरा बरसे हैं ।।
भीग गई अब दामन चोली, देख रही अँखियाँ सब भोली।
ये दिल ने कर दी न मुनादी, गूँज रही अब है हर वादी।।
मल्लिका छंद
ऐ सखी! सहा न जाय, मेघ बूँद जी जलाय।
सावनी चली फुहार, प्रीत की बहे बयार।।
रूप है गया निखार, यूँ सताय कण्ठ हार।
साजना बगैर पीर, भीग जाय नैन नीर।।
मेघ दामिनी डराय, हूक प्रीत की जगाय।
प्रेम की बुझे न प्यास, आ पिया जिया उदास।।
तोटक छंद
अब आ मनभावन सावन रे।
मन भीग गया तन पावन रे।।
इतने अब तू न दिखा नखरे।
तरसा न हमें बरसो अब रे।।
नित ख्वाब रचूँ सजना तुम रे।
तुम दूर गए जब से हम रे।।
सुलगे मनवा पिघले तन रे।
छुप धूप गयी न दुखा मन रे।।
– गुंजन अग्रवाल