छंद-संसार
चौपाई छंद
ताल कूप अरु नदी भराये।
धरा तृप्त मेघा हरषाये।।
वर्षा लगती है कन्या सी।
एक जगह ठहरे संन्यासी।।
सावन की रुत आय गयी है।
मन में पीर जगाय गयी है।।
सभी जगह फैली हरियाली।
पींग बढावे मिलकर आली।।
दादुर मोर पपीहा बोले।
विरहन का जिय डगमग डोले।।
भोर भई फैली अरुणाई।
सूर्य रश्मि ने ली अँगडाई।।
चीं चीं चिड़िया लगी चहकने।
फूल अनेकों लगे महकने।।
अलसाई सी दुनिया जागी।
निशा डरी पश्चिम को भागी।।
खेतों को चल दिये किसाना।
मेहनत को ही धरम है जाना।।
जीवन में जब भोर जु आती।
तम को हर खुशियाँ फैलाती।।
वर्षा ने प्रमुदित किये, जग में सभी समाज।
तपन धरा की बुझ गयी, शांति मिली है आज।।
भोर सुहानी जगत में, सबके मन को भाय।
खुशियाँ सबको बाँटती, दुख हरके ले जाय।।
– आशा रानी जैन आशु