बालगीत
चलो पिताजी गांव चलें हम
चलो पिताजी गांव चलें हम
दादाजी के पास
बहुत दिनों से दादाजी का
नहीं मिला है साथ
वरद हस्त सिर पर हो उनका
भीतर मेरे साध
पता नहीं क्यों हृदय व्यथित है
मन है बहुत उदास
चलो पिताजी गांव चलें हम
दादाजी के पास
दादी के हाथों की रोटी
का आ जाता ख्याल
लकड़ी से चूल्हे पर पकती
सोंधी-सोंधी दाल
अन्नपूर्णा दादी माँ में
है देवी का वास
चलो पिताजी गांव चलें हम
दादाजी के पास
घर के पिछवाड़े का आँगन
अक्सर आता याद
दादाजी पौधों में देते
रहते पानी खाद
गाँव की मिट्टी से आती
है मीठी उच्छ्वास
चलो पिताजी गांव चलें हम
दादाजी के पास
जब जब भी हम गांव गए हैं
मिला ढेर सा प्यार
दादा-दादी, काका-काकी
के मीठे उद्गार
हंसी ठिठोली मस्ती देती
खुशियों का अहसास
चलो पिताजी गांव चलें हम,
दादाजी के पास
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भैया मुझको पाठ पढ़ा दो
भैया मुझको पाठ पढ़ा दो
गणित समझ में मुझे न आती
रोज रात को पढ़ती हूँ मैं
सुबह भूल सारा जाती हूँ
शाला जाने पर शिक्षक से
भैया हाय मार खाती हूँ
भय के कारण बाबूजी से
कुछ भी नहीं बता मैं पाती
भैया मुझको पाठ पढ़ा दो
गणित समझ में मुझे न आती
आज गणित न समझाओगे
तो मैं शाला न जाउंगी
घर के किसी एक कोनों में
जाकर मैं तो छुप जाऊँगी
बार बार तुमसे कहने में
मुझको शर्म बहुत अब आती
भैया मुझको पाठ पढ़ा दो
गणित समझ में मुझे न आती
भैया ने समझाया बहना
सीखो कठिन परिश्रम करना
काम कठिन कितना भी आये
रहना निडर कभी न डरना
जो पढता है समय, नियम से
उसे सफलता मिल ही जाती
– प्रभुदयाल श्रीवास्तव