ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल-
तू किस्ना है, मैं राधा हूँ, हमारा प्यार यमुनातट
मैं भूली हूँ यहाँ ख़ुद को, मेरा संसार यमुनातट
तेरी मुरली सुनी पहरों, यहाँ कण-कण में राधा है
असीमित प्रेम के जीवित पलों का सार यमुनातट
यहाँ राधा ने किस्ना की मुहब्बत को निभाया है
वही इज़हार यमुनातट, वही इक़रार यमुनातट
बिना शर्तों के युग-युग तक किसी को टूट कर चाहो
यही दर्शन है राधा का, है अपरंपार यमुनातट
तेरी राधा नसीबों के परे भी राह देखेगी
मेरे कान्हा मिलेंगे हम समय के पार यमुनातट
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ग़ज़ल-
क़तरा-क़तरा धरती सारी उसकी है
ये तो सारी कारगुजारी उसकी है
उसके हाथों जीने को मजबूर हैं सब
हम पर भारी दुनियादारी उसकी है
जिसने पहला इश्क़ किया हो वो जाने
दौड़ लगाती धड़कन भारी उसकी है
रेशम-रेशम उस के गेसू लगते हैं
प्यार में हम ने मांग सँवारी उसकी है
बीच भंवर में डूब के मरना पक्का था
किसने कश्ती पार उतारी उसकी है
वो सादादिल टूटी कलियाँ चुनता था
गुलशन-गुलशन खून से यारी उसकी है
– जावेद उल्फ़त