ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल-
ये बहाना वो बहाना
आपका अक्सर न आना
आप जिसमें कुछ नहीं हैं
वो फ़साना क्या सुनाना
बस मुझे महसूस करके
क्या लगा मुझको बताना
याद क्यों अक्सर रहा जो
चाहता हूँ भूल जाना
खा चुका हूँ आपसे जो
आप वो धोखा न खाना
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ग़ज़ल-
ख़र्च कबके हो चुके हो
और फिर भी बच गये हो
ख़ुद कभी के मर चुके हो
सिर्फ़ मुझमें जी रहे हो
ज़िन्दगी भर चुप रहे हो
अब नहीं हो, बोलते हो
ये रही मंज़िल तुम्हारी
रास्ते में क्यों रुके हो
आप मेरे क्या बनेंगे
क्या कभी ख़ुद के हुए हो
– विज्ञान व्रत
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