ग़ज़ल की बात
ग़ज़ल की बात- 07
साथियों नमस्कार!
आपके स्नेह की प्रेरणा के फलस्वरूप ‘ग़ज़ल की बात’ का सातवां अंक प्रस्तुत है।
आज हिंदी ग़ज़ल में विशेष लोकप्रिय बह्र, बहरे–मीर पर चर्चा करेंगे। इसे सबसे छोटी बह्र भी कहते हैं, क्योंकि सबसे छोटे रुक्न ‘फेलुन’ के सतत दोहराव से यह बनी है।
फेलुन= गाफ़ + गाफ़= 2 2 या 211 के दोहराव में फेलुन या गाफ़ लगातार अग्रसर होता जाता है, यानि गाफ़ आगे बढ़ने वाला सरदार होता है। इसी कारण इसे बहरे–मीर कहते हैं।
देखें-
22 22 22 2 (फेलुन फेलुन फेलुन फ़ा) यानि सात (07) गाफ़= 14 मात्रा।
साये को अपना समझा
क्यों हमने ऐसा समझा
इसमें फेलुन x N और अंत में फ़ा अथवा फेलुन रहते हैं। मोटे तौर पर इसमें फेलुन फ़ा की क्रमिक आवृत्ति रहती है, इस कारण हर बार 2 मात्रा बढ़ जाती है —
फेलुन फ़ा = 6 मात्रा
फेलुन फेलुन = 8 मात्रा
फेलुन फेलुन फ़ा = 10 मात्रा
फेलुन फेलुन फेलुन = 12 मात्रा
फेलुन फेलुन फेलुन फ़ा = 14 मात्रा
फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन = 16 मात्रा
फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फ़ा = 18 मात्रा
फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन = 20 मात्रा
फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फ़ा = 22 मात्रा
फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन = 24 मात्रा
फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फ़ा = 26 मात्रा
फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन = 28 मात्रा
फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फ़ा = 30 मात्रा
फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन = 32 मात्रा
देखा आपने 2 मात्रा की सतत वृद्धि हो रही है यानि गाफ़ (गुरु/बड़ी बूंद) अग्रसर रहकर नेतृत्व कर रहा है, गाफ़ के मीर (leader) रहने के कारण इसे बहरे–मीर कहा गया है।
इतनी सरल बह्र होने पर भी नये अदीब सबसे ज्यादा इसी में गच्चा खा जाते हैं। आगे हम इस सरल बह्र (लहर) की पेचीदगी पर चर्चा करते हैं।
इस बह्र में भ्रम की स्थिति तब बनती है जब ‘फेलुन’ की जगह ‘फ़ऊल’ या ‘फेलुन फ़ा’ की जगह ‘फ़ेल फ़अल’ रखा जाता है। तब यह रूप देखने को मिलता है–
2 2= 211= 121
22 2= 21 12= 121 2
देखें—-
रात कली इक ख़ाब में आई= 21 12 2 21 12 2
और गले का हार हुई= 21 12 2 21 12
यहाँ अगर 21 12 को 2 (1+1) 2= 2 2 2 करें यानि (1+1)= 2 मानें तो यह रूप होगा–
रा तक ली इक ख़ा बमें आ ई औ रग ले का हा रहु ई
2 2 2 2 2 2 2 2 2 2
यहीं पर भ्रम पैदा होता है, और हिंदी वाले इसे चौपाई वर्ग का अष्टक आधृत छंद समझ बैठते हैं। इसी संशय के निवारण हेतु मैंने दो नियम तय किए है—
*हिंदी का अष्टक नियम
*फ़ऊलुनयगण नियम
हिंदी का अष्टक नियम– इस नियम के अनुसार हम इस ‘छोटी बह्र’ को ‘बड़ी बह्र’ बना लेते हैं। यानि ‘फेलुन’ के दोहराव की जगह ‘फेलुन फ़ऊल’ या ‘फ़ऊल फेलुन’ का दोहराव मानते हैं–
फेलुन फ़ऊल= फ़ऊल फेलुन= चार गाफ़= 8 मात्रा
अब तक की सभी बहरें/लहरें पाँच या सात मात्रिक थी (122 2 आदि), यह बह्र 8 मात्रिक हो गई अतः इसे सबसे बड़ी बह्र कहेंगे। यहाँ हमें कुछ बातें ध्यान रखनी हैं–
1) फेलुन फ़ऊल या फ़ऊल फेलुन का दोहराव इस तरह हो कि फेलुन + फ़ऊल का जोड़ 8 आए और अलग–अलग जोड़ 4 आए। देखें—
फेलुन + फ़ऊल= 22 121= 4 + 4= 8
फ़ऊल + फेलुन= 121 22= 4 + 4= 8
हिंदी छंदों के हिसाब से तो
फ़ेल + फ़ेल + फ़ा= 21 21 2= 8 मात्रा
फ़ऊल फ़ऊल= 121 121= 8 मात्रा
फ़अल + फ़ेल + फ़ा= 12 21 2= 8 मात्रा
लेकिन उपरोक्त तीनों रूप ग़ज़ल के अष्टक में स्वीकार्य नहीं हैं।
यानि ग़ज़ल के अष्टक के लिए निम्न तीन रूप ही मान्य हैं–
फेलुन + फेलुन= फेलुन + फ़ऊल= फ़ऊल + फेलुन= आठ मात्रा
22 22= 22 121= 121 22= 8 मात्रा
अगर इस बड़ी बह्र को 8 लिखें यानि इसकी हिलोर/रुक्न को 8 से इंगित करें तो बह्र होगी–
8 + 8 8 + 8
2) जैसे हम सभी सालिम/ मूल लहरों के अंतिम रुक्न (हिलोर) की एक मात्रा गिराकर आधी सालिम लहर बनाते थे, ऐसा यहाँ भी करे तो हमें निम्न रूप मिलते हैं–
8 + 8 8 + 8= चार कड़ी= 16 गाफ़= 32 मात्रा
8 + 8 8 + 6= साढ़े तीन कड़ी= 15 गाफ़= 30 मात्रा
8 + 8 8= तीन कड़ी= 12 गाफ़= 24 मात्रा
8 + 8 6= ढाई कड़ी= 11 गाफ़= 22 मात्रा
8 + 8= दो कड़ी= 8 गाफ़= 16 मात्रा
8 + 6= डेढ़ कड़ी= 7 गाफ़= 14 मात्रा
उदाहरण–
रा तक ली इक + ख़ा बमें आ ई औ रग ले का + हा रहु ई
8 + 8 8 + 6= 15 गाफ़= तीस मात्रा
फ़ऊलुन यगण नियम– इस नियम के अंतर्गत हम अष्टक का अंत ‘फ़ऊलुन= 122’ से मानते हैं इसके अनुसार दो तरह से विषम अष्टक बनेगा–
1) फ़ेल + फ़ऊलुन = 21 + 122
2) फ़अल + फ़ऊलुन= 12 + 122
यानि विषम अष्टक की शुरुआत लाम से करें (12) या गाफ़ से करें (21) से करें , बस अंत में 122 रख दें , 122 रखने के बाद जोड़ आठ आना चाहिए।
कहीं + कहीं से हर चहरा तुम जैसा लगता है
12 + 122 22 22 22 22 2
8 8 8 2 = फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फ़ा= 26 मात्रा
अर्थात तीन तरह के अष्टक ग़ज़ल में मान्य हैं
*सम अष्टक= 22 22= फेलुन फेलुन= 22 211
तुमको भूलन पाएंगे हम ऐसा लगता है
*विषम अष्टक= 12 122= फ़अल + फ़ऊलुन= 21 122= फ़ेल + फ़ऊलुन
कहीं कहीं से अथवा रात कली इक
*मिश्र अष्टक= 22 121= 121 22
तुमने सवाल हजार पूछे
मुझको ज़वाब न एक सूझा
अष्टक आधारित हिंदी के कुछ छंद यहाँ दिए हैं , जिनको बहरे–मीर के समतुल्य माना जा सकता है। इनमें हिंदी के चौपाई वर्ग के छंदों (यानि अष्टक एवं उसके अग्रगामी पद) को, उर्दू की बहरे–मीर (यानि गाफ़ की सदारत वाले अर्कान) की तरह प्रयोग किया है | यानि उर्दू की छोटी बह्र की ग़ज़लें शामिल हैं | यथा–
महानुभाव = 8 + 4 = छह गाफ़ = फेलुन फेलुन फेलुन
हाकली = 8 + 6 = सात गाफ़ = फेलुन फेलुन फेलुन फ़ा
चौपाई = 8 + 8 = आठ गाफ़ = फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन
माली = 8 + 8 + 2 = नौ गाफ़ = फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फ़ा
रास = 8 + 8 + 6 = 11 गाफ़ = फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फ़ा
रोला = 8 + 8 + 8 = 12 गाफ़ = फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन
कुकुभ / ताटंक = 8 + 8 + 8 + 6 = 15 गाफ़ = फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फ़ा
समान सवैया = 8 + 8 + 8 + 8 = 16 गाफ़ = फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन
हिंदी छंदों का प्रयोग यति–बंधन से मुक्ति के साथ गाफ़ की समप्रवाहता ( मुसल्सल गाफ़ ) के अनुसार किया गया है।| हिंदी छंदों की यति–भंग का दोष यहाँ नहीं गिना गया है।
आशा है यह सामग्री आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
– ख़ुर्शीद खैराड़ी