अच्छा भी होता है
केसर
बस से रतलाम जाते समय मुलाकात हुई केसर से। एक सीधी-सादी सी, ग्यारह-बारह साल की बिल्कुल साधारण बच्ची, किसी गाँव से बस में चढ़ी। हाथ में स्कूल बैग था। मेरे बगल वाली सीट पर बैठी थी।
वैसे ही बच्चों से अपनी अच्छी बनती है। बस केसर से भी बात शुरू हो गयी।
केसर पांचवी क्लास में पढ़ती है और रोज सुबह नौ बजे की बस से, पास के शहर कंप्यूटर सीखने जाती है, फिर वहां से लौटकर बारह बजे से स्कूल। इस बच्ची को ये मौका किसी परीक्षा में अव्वल आने पर मिला है और खूब अच्छे से केसर सीख रही है। अभी ms excel चल रहा है। खूब सारी बातें की हमने। केसर ने अपनी कॉपी भी दिखाई।
आने-जाने के रोज दस रुपये लगते हैं। केसर के माता-पिता बेहद गरीब हैं। पिता, चाय की दुकान पर काम करते हैं। फिर भी केसर रोज कम्प्यूटर सीखने जाती है। केसर, उस जाति समाज से है जहाँ इस उम्र की अधिकांश बच्चियों की शादी कर दी जाती है।
बड़ी होकर केसर टीचर बनना चाहती है। ये कहते हुए उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में उम्मीद की चमक साफ़ दिखती है।
मैं केसर से फिर मिलने का वादा करके उसका पता नोट करता हूँ…
दो दिन बाद मैं केसर के घर पर था। केसर के कंप्यूटर क्लास जाने-आने की जिम्मेदारी मेरी और केसर के लिए कुछ उपहार।
इंडिया बदल रहा है..है न!
खूब पढ़ो, केसर। आगे बढ़ो!
– शशांक शेखर