कुण्डलिया छंद
(1)
अनुशासन की पालना, करने को मजबूर,
प्यार भरा बंधन कहे, मानो इसे जरूर |
मानो इसे जरूर, —- नहीं ये बंधन खारे
पंछी भरे उडान,– —-पंख फैला दे सारे
लक्ष्मण यही विधान,चले नियमों से शासन
चले तभी संसार, मानते जब अनुशासन ||
(2)
बंधन बांधे वक्त ने, तोड़ काल के गाल
उजियारे को रोकते, लगते वे जंजाल |
लगते वे जंजाल, लांघ न सके मर्यादा
माने यदि प्रतिबन्ध,विधा के बंधन ज्यादा
कह लक्ष्मण कविराय, भाग्य पर करे न क्रंदन
ईश्वर कर्माधीन, कर्म बिन कटे न बंधन ||
(3)
कठपुतली हम सब यहाँ, ईश हाथ में डोर
नाच नचाते जिन्दगी, गुजर रहा यूँ दौर
गुजर रहा यूँ दौर, चक्र सुख दुख का बीतें
कामचोर निकृष्ट, भाव से रहते रीतें
लक्ष्मण स्थिर हो चाल,सुदृढ़ जब धागा सुतली
नैतिकता के साथ, बने रहना कठपुतली |
(4)
मत का समझे अर्थ सब, तब आवे जनतंत्र,
जन जन के संकल्प से, आ जावे गणतंत्र ।
आ जावे गणतंत्र, योग्य को चुनकर लाओ
अर्ज करे कर जोड़,योग्य हो उन्हें जिताओं
कह लक्ष्मण कविराय, टटोले मन तो सबका
वोटर करे न बात,मूल्य सब समझे मत का ||
(5)
नेता सदा सही चुने, यहाँ राष्ट्र की बात
जिनके नहीं उसूल है, करे देश से घात |
करे देश से घात, सदा अपना घर भरते
सदा रहे सुख चैन, दुखी औरों को करते
ठगना जिसका काम, सदा आश्वासन देता
रख गुण्डों को संग, कमाते रहते नेता |
– लक्ष्मण रामानुज लडीवाला