छंद-संसार
कुंडलियाँ छंद
कैसा कलयुग आ गया, देखो यारों आज।
खुद अपने ही अंश की, हत्या करे समाज।।
हत्या करे समाज, बना है अत्याचारी।
कैसी है ये रीत, हुई कैसी लाचारी।
करने को ये पाप, लोग लुटा रहे पैसा।
कन्या है इक बोझ, समाज भला यह कैसा।।
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खोने का भय भी वहाँ, जहाँ बसा हो प्यार।
डांट लगाते हैं वही, दें जो हमें दुलार।।
दें जो हमें दुलार, वही कहलाते अपने।
पाकर उनका प्यार, हकीकत बनते सपने।
खुद को देते कष्ट, हमें नहिं देते रोने।
चाह यही बस आज, नहीं ये रिश्ते खोने।।
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रोगी जब से मैं बना, मन है बड़ा अधीर।
चलता फिरता ही रहे, ये जो मिला शरीर।।
ये जो मिला शरीर, बड़ा नाजुक-सा पुतला।
कष्ट जरा सा पाय, चले हो उथला पुथला।
दर्द इसे जो होय, बने नहिं कोई भोगी।
दुआ यही है आज, न हो कोई भी रोगी।।
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जीवन करना जो सफल, जपो राम का नाम।
राम जपन से हैं बने, सबके बिगड़े काम।।
सबके बिगड़े काम, मिटे इस मन की कटुता।
ध्यान किये यह नाम, दूर हो जाये चिंता।
कहत सोनिया आज, राम का कर लो सुमिरन।
सत्य यही है नाम, शेष मिथ्या यह जीवन।।
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चिंता काहे को करे, चिंता चिता समान।
भूत भविष्य छोड़ परे, सिर्फ आज को मान।।
सिर्फ आज को मान, जान ले अपनी क्षमता।
आगे बढना सीख, छोड़ दे मन की कटुता।
कहत सोनिया आज, लाइए मन में समता।
अटल रखो विश्वास, मिटाओ मन की चिंता।।
– डॉ. सोनिया गुप्ता