देशावर
कहाँ है मेरा प्यारा वतन?
बचपन की दहलीज लांघकर
यौवन के आँगन में
जब रखे क़दम,
मन में मुस्कुरा उठे
कई सपने।
हर मोड़ पर लगा,
मंज़िल है आसपास।
पता नहीं कैसे, कब छूट गया
प्राणों से प्रिय
मेरे वतन का साथ!
परदेश में मैं प्रवासी,
थके हुए क़दमों से,
घटनाओं के बवंडर संग
मिला रहा हूँ ताल।
बीत रही है उम्र…..!
क्या मिलेंगी कभी फिर तुक,
शब्दों को मिलेंगे अर्थ?
बनेगा कोई गीत वतन का,
सजेगी कोई धुन?
साथ धड़कती यादें हैं,
टूटा दिल, तड़पता मन;
कहाँ है मेरा प्यारा वतन?
– अश्विन मॅकवान
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