कहमुकरिया
कहमुकरिया
इत उत की ये सैर करावै,
इसका साथ मुझे है भावै।
हर पल चलने को तैयार,
क्या सखि साजन? ना सखि, कार।
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उसका मेरा गहरा नाता,
बिन उसके शृंगार न भाता।
रह न सकूँ मैं उससे दूर,
क्या सखि साजन? नहीं, सिंदूर।
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तकती रहती उसकी राहें,
भरती हूँ मैं दिन भर आहें।
पाऊँगी जब होगी किस्मत,
क्या सखि साजन? ना सखि, ख़त।
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देख उसे खुश होती रहती,
तकती हूँ पर कुछ नहिं कहती।
रैन दिवस सब उसे समर्पण,
क्या सखि साजन? ना सखि, दर्पण।
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रूप रँगीला कितना प्यारा,
लगता है वो सबसे न्यारा।
करता नृत्य मगन चितचोर,
क्या सखि साजन? ना सखि, मोर।
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सब उसके ही पीछे भागें,
वो न मिले तो रतियाँ जागें।
बिन उसके जीवन हो कैसा,
क्या सखि साजन? ना सखि, पैसा।
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पाकर उसको खुश हो जाती,
ख़ुद पर मैं कितना इतराती।
कंठ लगाऊँ बारम्बार,
क्या सखि साजन? ना सखि, हार।
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सखियों से मुझको मिलवाये,
जी भर कर बातें करवाये।
मनभावन है उसकी टोन,
क्या सखि साजन? ना सखि, फोन।
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हर दिन ये मेरे घर आता,
दुनिया भर की बात बताता।
नया कलेवर हो हर बार,
क्या सखि साजन? नहिं, अख़बार।
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होने नहीं दूँ उसको ओझल,
आँखों में रहता वो प्रतिपल।
कारा-कारा जैसे बादल,
क्या सखि साजन? ना सखि, काजल।
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वो चूमे तो मैं चिल्लाऊँ,
साथ न भाये, दूर भगाऊँ।
अक्सर करती ता ता थैया,
क्या सखि साजन? नहीं, ततैया।
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कितना प्यारा समय बिताया,
याद मुझे वो पल-पल आया।
कैसे उसको जाऊँ भूल,
क्या सखि साजन? ना सखि, स्कूल।
– अंजलि गुप्ता सिफ़र