उभरते-स्वर
कविता- जल बचाओ
ना व्यर्थ बहाओ जल
जल से ही है कल
जल धरती पर अमृत जैसा
इससे ही है जीवन हरपल
सूख रही ये धरती अपनी
सूख रहा है पानी का तल
बूँद बूँद जब बचा सकेंगे
तब होगी कठिनाई हल
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कविता- हाथी दादा
हाथी दादा मुझे बताओ
तुमने शैतानी की थी क्या
सूँड़ बनी है कैसे बोलो
अपनी नाक के राज़ तुम खोलो
पंखे जैसे कान तुम्हारे
इतने बड़े हुए हैं कैसे
होमवर्क न करने पर
टीचर ने खींचे हों जैसे
पूँछ तुम्हारी इतनी छोटी
और तुम इतने मोटे-से
कुछ भी तला भुना बाहर का
जंक फूड खाते थे क्या
हाथी दादा तुम्हीं बताओ
तुमने शैतानी की थी क्या
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कविता- सूरजमुखी
सुन्दर-सा इक फूल खिला है
मेरे आँगन की बगिया में
चटक सुनहरा पीला रंग
देख सभी हो जाते दंग
सुबह सुबह मुस्काता है
हँसना हमें सिखाता है
सूरज के मुख के जैसा
सूरजमुखी नाम है ऐसा
सूरज के संग-संग ही रहता
संग उसी के ये सो जाता
– सुहानी यादव