रेनू ‘शब्दमुखर’
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1.
तुम बिन क्षण भी लगे युगों सा,
पल-पल बहुत कठोर।
दिन भी तुम बिन लगे रात सा,
कोई न जिसकी भोर।
तुम से रौनक मन-उपवन में,
तुम से सदा बहार।
फूलों में खुशबू है तुमसे,
तुम से मन्द बयार।
जीवन में हर रंग तुम्हीं से,
तुम से हर्ष अपार।
जन्नत जैसा सुकूँ तुम्हीं से
तुम से मस्त मल्हार।
तुम बिन गीत लगे बिन लय सा,
ताल रहे कमजोर।।
दिन भी तुम बिन लगे रात सा,
कोई न जिसकी भोर।
नयनों में रौशनी तुम्हीं से,
तुम से हर दीदार।
चलती मेरी धड़कन तुमसे,
तुम से प्रीति खुमार।
मन में भरी उमंग तुम्हीं से,
तुम से घर-संसार
राग और अनुराग तुम्हीं से,
तुम से हर गुंजार।
तुम बिन पायल बिन घुंघरू सी,
कोई न जिसका शोर।
दिन भी तुम बिन लगे रात सा,
कोई न जिसकी भोर।
झरनों में कलकल है तुमसे,,
तुम से है झंकार।
सपनों में रिमझिम है तुमसे,
तुम से मदिर फुहार।
मन की हर हिलोर तुमसे है,
तुम से मन में ज्वार।
तुम से यौवन भरी चाँदनी,
तुम से ही श्रृंगार।
तुम बिन है निष्प्राण देह यह,
मन में नहीं हिलोर।
दिन भी तुम बिन लगे रात सा,
कोई न जिसकी भोर।
-ज्ञानवती सक्सैना ‘ज्ञान’, जयपुर (राजस्थान)
2.
मेरे जीवन की पटकथा के सबसे
कविताओं में नित ढलता मेरे मन
धड़कन का संगीत मेरी मन-वीणा की
उतना प्यार कहाँ से लाऊँ जितने
तूफ़ानों से लड़ती मेरी कश्ती
सूखे पतझड़-से जीवन में जैसे
मन के तपते मरुथल में बारिश की
उतना प्यार कहाँ से लाऊँ जितने
साथ नहीं कोई तो क्या ग़म मेरा
और खुदा से माँगू भी क्या सबसे
एक जनम न काफ़ी मुझको सात जनम
उतना प्यार कहाँ से लाऊँ जितने
सर से पाँव तलक मैं गिरवी ऐसे
साँसें देकर भी न उतरे दिल पर
जितनी बार मैं ‘खुदा’ पुकारूँ
उतना प्यार कहाँ से लाऊँ जितने
-स्वीटी सिंघल ‘सखी, बैंगलोर, कर्नाटक
3.
मेरे अन्तः में तुम्हारा
चुपचाप ही-
भीगे-भावों को लिए
घुसपैठ कर जाना…
और तेरे भावों की बारिश में
मेरे अन्तः का
इन्द्रधनुषी चादर को ओढ़
सूर्य की हल्की गर्म
किरणों के संग-संग,
कल्पनाओं में उतर जाना..
ज्यों उतर आता है इंद्रधनुष
इस अनंत आकाश से धरा पर
एक छोर से दूजे छोर तक
मानो-
निरख रहा हो कहीं ऊपर से
अपनी प्रतीक्षारत प्रिय धरा को,
कर अनुपम-सा श्रृंगार..
धरा हो या हो अम्बर
मेरी इंद्रधनुषी कल्पनाओं ने भी
इत-उत बिखरे रंगों के संग-संग
फैला लिए हो पंख पसार,
और बन गई हूं मैं
इस सृष्टि की सुंदरतम कृति
जिस पर उड़ेलकर
किया हो प्रेम प्रियतम ने
एक-एक कर हर रंग से सराबोर.
5.
सिर्फ तुम
तुम्हारा प्रेम
मानो मेरे आस पास
अपना सामीप्य
बिखेरता है
पता है कैसे
हर पल तुम्हारी स्मृतियों
की महक मुझमें महकती है
और जो तुम
मेरे लिए दुआ का कवच
बुनते हो न
जिसके भीतर
मैं महसूसती हूँ
तुम्हारा साथ
तुम्हारा एहसास
जो मुझमें
एक नव स्फूर्ति संचित कर
प्राणों में उल्लास भर देता है
और उसी से उल्लसित हो
मैं सारे गम को तिलांजलि दे
मंजिल की ओर
अविराम गति से
कदम बढ़ाती हुई
सोचती जाती हूँ कि
तुम्हारे जैसा पाक हृदय
कोई और हो ही नहीं सकता
भले ही तुम अलग हो
मगर हो तो मुझमें ही
हाँ मेरे भीतर हो
मेरी हर सांस-सांस में
मेरे हर रोम-रोम में
तुमको ही मैं तो पाती हूँ
मेरे हर शब्द में
हर अहसास में
मेरी कविता के हर भाव में
सिर्फ़ तुम ही तुम हो
सच कहूँ तो
तुम और तुम्हारे पाक प्रेम ने
अपना आधिपत्य जमा कर
मेरे स्नेहिल संसार को रच
प्रीत की बंसी के
सम्मोहन से बांध लिया।
– रेनू शब्दमुखर, जयपुर (राजस्थान)
7.
जज़्बात
समझो, समेटो,
फिर मुझे दो
रूप इक ऐसा
जिससे प्यार कर बैठो |
हथेली के सहारे
उँगलियों के छोर से
मुझको तराशो,
भाव दो ऐसे
जिनसे प्यार कर बैठो |
नज़र भर प्यार से देखो
कि मुझमें जान आ जाए,
जिसे तुम,
जान अपनी मान करके
प्यार कर बैठो |
किसी रंजिश को
अपने दिल के आले में
सजाओ मत,
जगाओ सोए से जज़्बात
मुझसे प्यार कर बैठो |
मेरे बिन
तुम अधूरे हो,
तुम्हारे बिन
अधूरी मैं,
मेरे जज़्बात पहचानो
मुझसे प्यार कर बैठो |
–कविता पन्त, अहमदाबाद (गुजरात)
बारिश
बारिश तो बहुत हुई
पर मैं भीगी ही नहीं
मैं डरती थी भीगने से,
डरती थी तूफानी बारिश के थपेड़ों से,
उन काले डरावने बादलों की
गड़गड़ाहट से मैं डरती थी,
मैं डरती थी बिजली की कौंधती तेज रोशनी से
पर उम्र के इस मोड़ पर
एक कसक सी लगती है
लगता है कि
जुटा लिया होता हौसला
कर लिया होता एतबार आंखें मूंदकर
सुनी होती दिल की आवाज़
कर ली होती जुर्रत
भीगी होती काश
कुछ तो यादें होती
हमारे भीगे जज्बातों की
भीगने को कोई साथ भी था
हाथ थामने का वादा लिए
कोई हाथ भी था
पर मेरे डर के चलते
भरी बारिश में कोरी रह गई
अछूती रह गई
अंजान रह गई एक अनमोल एहसास से
जिसे मुहब्बत कहते हैं।
– दिव्या वीधाणी, अहमदाबाद (गुजरात)
तुम्हीं से हैं सारी खुशियाँ मेरी,
कदम मिलाकर मेरे साथ चल।
प्रीत के रंग में रंग जाएँ
एक दूजे के हम हो जाएँ।
विश्वास की नन्हीं कलियों से
जीवन की बगिया महकाएँ |
प्यार ही प्यार भरा हो बस
ना हो किसी के दिल में छल।
तुम्हीं से हैं सारी खुशियाँ मेरी
कदम मिलाकर मेरे साथ चल।
कभी धूप आए जो जीवन में,
तो छाया हम बन जाएँगे ,
विश्वास कभी न तोड़ेंगे
उसे उम्र भर हम निभाएँगे।
सच्चे अपने प्रीत के धागे
मन है गंगा -सा निर्मल।तुम्हीं से हैं सारी खुशियाँ मेरी,
कदम मिलाकर मेरे साथ चल।
चारों तरफ़ तन्हाई हो ,
या गर्दिश में ठोकर खाई हो।
हर उलझन हम सुलझाएँगे,
एक दूजे से ना रुसवाई हो।
मिलकर करेंगे संघर्ष दोनों
हो जाएगी हर मुश्किल हल।
तुम्हीं से हैं सारी खुशियाँ मेरी,
कदम मिलाकर मेरे साथ चल।
– बंदना पंचाल, अहमदाबाद (गुजरात)
મને ભીંજવે એ વાત જ્યારે કુદરત વરસે મેઘ બની ધરતી પર,
એ સાચો પ્રીતનો રંગ,
મને હસાવે એ વાત જ્યારે કોઇ બાળ
સમજાવે કાલું તોફાન એની માને,
એ સાચો પ્રીતનો રંગ,
મને કરે મદહોશ એ વાત
જ્યારે પ્રેમી કોઇ
ભીનું વ્હાલ કરે રૂઠેલી પ્રેમિકાને,
એ સાચો પ્રીતનો રંગ,
મને મળે સંતોષ જ્યારે કોઇ યાચક
ખુશીથી પાછો વળે ગરીબને ત્યાંથી,
એ સાચો પ્રીતનો રંગ,
મારી આંખો વહે કે જ્યારે શહીદની એ
મા ચૂમે તેને વીંટેલા તિરંગાને,
એ સાચો પ્રીતનો રંગ,
મને ગમે બહુ કે એક દોસ્ત ખાલી ખિસું કરે પ્યારી દોસ્તીની લાજ રાખવા હરખતે હૈયે,
એ સાચો પ્રીતનો રંગ,
મને એવું થાય કે આ દુનિયાનો દરેક વ્યક્તિ કરે બસ પ્રીત સૌ સાથે મૂકીને અહમ તો કેવો રેલાય
સમગ્ર જગતમાં સાચો પ્રીતનો રંગ!!!
–નૃતિ શાહ…अहमदाबाद (गुजरात)
Through fields of wild flowers
Let’s chat some more
Late Past midnight hours!
Let’s laugh together
On our silly jokes so unique,
Let’s be strong together
Even when we’re tired and weak!
Let’s understand each other’s words
Even when they are just whispers
Let’s chill together in summer
And cosy up during tough long winters!
It’s been a great ride
Better than the words can say ever
Now the twilight zone is upon us
Let’s step into it merrily together!
– नीना शैलेंद्र, रुड़की, हरिद्वार
Experiencing an eternal bliss,
The wind blew Her hair,
A sight He never failed to miss.
He asked,
“What if you are left with nothing, Radhe?”
She thought and thought,
Until she found the answer in her aurae.
She said, “Even if I have nothing,
I’d still have you,
That is all I need,
To start my life anew.”
Pleasured with Her answer,
And admiring Her certainty,
Krishna pondered upon Her beauty,
A moment which felt like infinity.
– Dron Kanabar,राजकोट
– कर्मभूमि अहमदाबाद