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कथेसर का ‘महिला लेखन अंक’
कथेसर का ‘महिला लेखन अंक’ मिला। आदरणीय रामस्वरूप किसान एवं श्रद्धेय डॉ. सत्यनारायण सोनी ने सम्पादक के रूप में अपने कार्य को बखूबी निभाया है। राजस्थानी साहित्य में ‘कथेसर’ पत्रिका का अपना अलग रुतबा है, अलग मुकाम है। राजस्थानी साहित्य में कथेसर को ‘हंस’ की उपमा दी जाती है। कथेसर हमेशा से अपनी तब्दीली के लिए मशहूर रही है। राजस्थानी साहित्य में ‘दलित विशेषांक’ निकालकर साहित्य की दिशा और दशा तय करने वाली कथेसर पत्रिका ने इस बार ‘महिला विशेषांक’ निकालकर एक बार फिर साहित्यक जगत में अपनी लोकप्रियता को जग जाहिर कर दिया है। पुरुषवादी समाज में महिलाओं की स्थिति किसी से छुपी हुई नहीं है। चूल्हा-चोकी, गोबर-भारी, टाबर टोली तक ही उनको सीमित रखा गया है। ऐसे माहौल में बेलन की जगह कलम उठाने की हिमाकत करने वाली उन वीरांगनाओ (वीरांगना ही कहूँगा क्यूंकि ऐसे समाज में महिलाओं का कलम उठाना वीरता और साहस का ही तो काम हैं) को साहित्यक पटल पर प्रदर्शित करने का अनूठा काम कथेसर ने किया है।
वरिष्ठ साहित्यकार रामस्वरूप ‘किसान’ का सम्पादकीय ‘सुंडै पच्योड़ी गुलामी’ उनकी एक-एक पंक्ति स्त्रियों के दर्द को उकेरती हुई मालूम पडती है। किसान जी के शब्दों में स्त्री से बढ़कर इस दुनिया में कोई दलित हैं ही नहीं। उनकी एक पंक्ति मेरे ज़ेह्न में घर कर गई, वो कुछ इस तरह से है कि “म्हैं गवाह हूँ किसान अर स्त्रमिक वर्ग में इण मसीनी जुग मांय ई लुगायां काले बळद ज्यूँ कमावै” वहीं हाड़ोती आंचल की ख्याति प्राप्त रचनाकार ‘कमला कमलेश’ जी से अतुल जी की बातचीत की में कमला जी के साहित्यक प्रेम की वजह उनके पति कमलेश जी रहे। माने किसी स्त्री को सुशिक्षित जीवनसाथी मिल जाए तो वो अपनी प्रतिभा को निखार सकती है। मगर कमलेश जी सरीखे जीवनसाथी विरले ही मिलते है।
प्रेमलता जैन से ओम नागर की बातचीत में उनके घर का माहौल साहित्यक रहा, इसी वजह से उन्हें लेखन का शौक बचपन से ही रहा था। निर्मल बंजारन से सतपाल पंवार जी की बातचीत में इस बात की जानकारी मिलती है कि महिलाएँ वास्तविक रूप से एक साहित्यकार ही होती हैं क्यूंकि ब्याह शादी, काण मोखाण उनके द्वारे गाये जाने वाले लोकगीत किसी कालजयी साहित्यक कृति के समतुल्य होते हैं। बस उनके साहित्य को समाज के सामने लाने की दरकार शेष है।
वरिष्ठ रचनाकार सावित्री चौधरी की ‘आसीस’ कहानी एक बेटे की नौकरी लग जाने पर अपने माँ-बाप को छोड़ देने की करुणामयी कहानी है। कितनी अबखायों से उसको पढाते हैं और उनके त्याग के बदले उन्हें केवल दुत्कार ही मिलती है। डॉ. जेबा रशीद की कहानी ‘रिस्तो अर उदास मौसम’ एक बेटे द्वारा अपनी माँ को वृद्ध आश्रम में भेज देने की यथार्थ पूर्ण मार्मिक कहानी है।
हाड़ी रानी बटालियन में कार्यरत मशहूर रचनाकर बंशी सहारण की कहानी ‘द्रोपती बणनो पड़सी’ वर्तमान समाज की छवि को बख़ूबी उकेरती है। निरंतर कन्या भ्रूण हत्या जेसे जघन्य अपराधों से लिंगानुपात में गहरा अंतर आ गया है। जिससे एक स्त्री को जाने कितनो की पत्नी बनने तक की नोबत आ सकती है।
बंशी जी उम्दा लिखती है। तमाम तरह के प्रोटोकॉल के बावजूद उनकी साहित्यिक समझ बेहद बेहतरीन है। शारदा कृष्ण का संस्मरण भी कथनी और करनी की सार्थकता को बयान करता है तथा एक महिला की बात एक महिला से बेहतर कोई नहीं समझ सकता है।
डॉ. कृष्णा जाखड. ने किसान की आवाज उठाने वाले कवि की सराहना की, जिन्होंने हमेशा किसान को अपनी सृजनता से ज़िन्दा रखा है। बड़ी बहन प्रियंका भारद्वाज की ‘माँ’ और ‘सुपणा’ कविताएँ सीधी हिवड़े भीतर उतरती हैं। युवा रचनाकरों में प्रियंका का नाम सर्वोच्च हैं। ऋतुप्रिया की दो कविताएँ एक किशोरी की कल्पनाओं को उड़ान देती नजर आती हैं।
राजस्थानी साहित्य में अपनी लेखनी से धूम मचाने वाली प्रतिष्ठित साहित्यकार संतोष चौधरी की तीन कविताएँ- ‘इजत’, ‘कुण गंडक कूँण मिनख’ और ‘सुरजी उग्या म्हारे आंगनै’ एक से बढ़कर एक कविताएँ हैं। संतोष जी की कहानियाँ बेहद ही उम्दा और समाज की पीड़ाओं को शब्दों में बड़ी सावचेती से अंकित करती हैं।
कथेसर के तमाम प्रबुद्ध लिखारों को इस नाचीज की तरफ से अकूत बधाइयाँ। आपकी सर्जनात्मकता और रचनात्मकता हमेशा हमें प्रेरणा देती रहें। पुनः आदरणीय सोनी जी और किसान जी को अशेष मंगकामनाएँ।
समीक्ष्य पत्रिका- कथेसर (महिला लेखन अंक)
आवृति- तिमाही
भाषा- राजस्थानी
सम्पादक- रामस्वरूप किसान एवं डॉ. सत्यनारायण सोनी
कार्यालय- कथेसर प्रकाशन,
गाँव- परलीका, वाया- गोगामेड़ी,
ज़िला- हनुमानगढ़ (राजस्थान)- 335504
ई-मेल: editor@kathesar.org
वेबसाइट- http://www.kathesar.org
– पवन अनाम