उभरते-स्वर
कठोर कौन है
‘पत्थर दिल’ के सम्बोधन से
पत्थर और पहाड़ को
ठेस पँहुचाना बन्द करो
यह कहने को है महज़
निर्जीव और कठोर
वरना चोटी के रूप में
केंद्र बिंदु है सफलता का
अनगिनत के लिए
ऊर्जा और प्रेरणा का उद्गम है
एड़ी से चोटी लगाते हैं
चोटी तक पहुँचने को
आधारशिला रखने को
पहाड़ के रूप में
विकट समय में भी
स्थिर और अडिग होने का
छाप छोड़ जाता है
देवघरों में अद्वितीय,
ईश्वर रूप अवतरित होकर
आस्था का विषय बन जाता है
महापुरुषों जैसा तराशे जाने पर
संघर्ष का पैग़ाम और
इबारत लिख जाता है
आदिमानव के आकर्षण से
आपस में घर्षण से
अग्नि का आविष्कार कर जाता है
स्थिर होकर बताओ
कठोर कौन है?
तुम इंसान या फिर पत्थर
बहरा कौन है?
सकारात्मक ऊर्जा का द्योतक या
स्वार्थ से पिरोया मानव
जो ग़रीबी, भूख, मदद की गुहार
सुनकर अनसुना कर देता है
अंधा कौन है?
परिस्थितियों का मार्गदर्शक या
अँधेरे से कतराता मानव
जो देखकर भी अनदेखा कर देता है।
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पल में बदल गया
तिनका जुटाया था
आशियाना बनाने को
बवंडर की रार से
पल में बिखर गया
समय की तब्दीली से
पल में बदल गया।
रेत के घरौंदे से भी
ख़ुद को तस्सली थी
लहर के झोकों से
साहिल बदल गया
समय की तब्दीली से
पल में बदल गया।
लहर की झोकों में
चंचल नज़ाकत थी
क़ुदरत के इशारे से
सुनामी बन गया है
समय की तब्दीली से
पल में बदल गया।
खोजता हूँ यादों को
काग़ज़ के पन्नों में
याद का बिछौना था
नींद में निकल पड़ा
समय की तब्दीली से
पल में बदल गया।
नाज़ुक है दौरे-ए-जहाँ
परों में परवान बाकी
आँखों में चाहत अधूरी
हौसलों में जान बाकी
समय की तब्दीली से
पल में बदल गया।।
– ज़हीर अली सिद्दीक़ी