The last film show (છેલ્લોશો)
निर्देशक पैन नलिन (मूल नाम:नलिन कुमार पंड्या)
गुजरात के अमरेली शहर में शिक्षक के पद पर कार्यरत दो मित्र शिवरात्रि मेला मनाने के लिए रेल मार्ग से जूनागढ़ जा रहे थे। अमरेली और जूनागढ़ के बीच खिजड़िया जंक्शन रेलवे स्टेशन है। ट्रेन यहाँ करीब आधे घंटे तक रुकती है। दोनों शिक्षक प्लेटफार्म पर लगी एक छोटी सी दुकान पर चाय पीने गए। बारह साल का एक लड़का प्याले और तश्तरी साफ कर रहा था। एक शिक्षक ने चाय की दुकान के मालिक से इस लड़के के बारे में पूछा। उसने कहा, ‘सा’ब, यह मेरा बेटा है, लेकिन उसे पढ़ना पसंद नहीं है, इसलिए यहाँ मेरी मदद कर रहा है।’
चाय पीने के बाद शिक्षक ने लड़के को बुलाकर पूछा, ‘बेटा, पढ़ाई में मन नहीं लगता तो क्या अच्छा लगता है?’
लड़के ने कहा, ‘सा’ब, मुझे चित्र बनाना अच्छा लगता है। मेरे द्वारा बनाए गए इन चित्रों को देखिए।’
सिगरेट की खाली पेटियों पर बनाए गए चित्रों को देखकर शिक्षक हैरान रह गए! उन्होंने चाय की दुकान वाले भाई से कहा, ‘यह लड़का बहुत आगे बढ़ सकता है। आप अनुमति दें तो जूनागढ़ से लौटने हुए हम उसे अपने साथ ले जाएंगे और अपने खर्चे पर उसे पढ़ायेंगे।’
लड़के के पिता ने इसके लिए अनुमति दी और शिवरात्रि मेले से लौटते हुए ये शिक्षक, लड़के को अपने साथ ले गए।
नलिन कुमार पंड्या नाम के इस लड़के को अपनी पसंद के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए हर तरह की मदद दी गई। वडोदरा से फाइन आर्ट्स (ललित कला) के अभ्यास के दौरान उसे विश्व सिनेमा से परिचित होने का अवसर मिला। उसने फ़िल्म निर्माण में रुचि लेना शुरू कर दिया।किताबें पढ़कर ही फ़िल्म निर्माण की तकनीक सीखी।वास्तुकला और डिजाइनिंग पर पुस्तकों के आधार पर फ़िल्म निर्माण की एक संरचनात्मक अवधारणा हासिल की।विज़ुअलाइज़ेशन सीखा।फिर अहमदाबाद में एन.आई.डी. में पढ़ाई के दौरान, उसने अपने दोस्तों के साथ विश्व प्रसिद्ध गुजराती वास्तुकार बालकृष्ण दोशी से मुलाकात की। उनसे वास्तुकला की संरचना पर चर्चा की।
कल्पनाशील युवा नलिन ने शुरुआत में विवाह प्रसंग की वीडियोग्राफी की। धीरे-धीरे फ़िल्मनिर्माण तकनीकों में कौशल हासिल किया। पुराने कैमरों से कुछ फ़िल्में बनाईं।अमेरिका जाने का अवसर मिला। यूरोप में कुछ समय रहे। भारत आकर डॉक्युमेंट्री फ़िल्में बनाने लगे, और उनके सपनों का सफर शुरू हो गया।
मुंबई में रहकर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। उन्होंने आर.के. लक्ष्मण के साथ मिलकर कार्टून सीरीज ‘वागले की दुनिया’ बनाई। डॉक्यूमेंटरी फ़िल्मों से शुरू हुई उनकी यात्रा पूर्ण लंबाई वाली फ़िल्मों तक पहुँची। ‘समसारा’, ‘वैली ऑफ फ्लावर्स’, ‘फेथ कनेक्शन्स’ जैसी कई फ़िल्मों ने विश्व में नाम कमाया। उन्होंने 2021 में “छेल्लो शो” (“लास्ट फ़िल्म शो”) नाम से एक गुजराती फ़िल्म बनाई और उनकी प्रतिभा भारत के बाहर भी पहुँच गई।
सौराष्ट्र के अमरेली शहर के पास अड़ताला नामक एक छोटे से गाँव का लड़का, जिसका सपना था फ़िल्म बनाना, एक अंतरराष्ट्रीय फिल्म निर्माता-निर्देशक के रूप में प्रसिद्ध हुआ। आज दुनिया उस लड़के को ‘पैन नलिन’ के नाम से जानती है। अमरेली के वे शिक्षक थे, डॉ. वसंतभाई परीख। (सौजन्य ब्लॉग- शब्द संपुट)
वर्ष 2021 में पैन नलिन द्वारा निर्देशित गुजराती फ़िल्म ‘छेल्लो शो’ ऑस्कर 2023 के लिए भारत की ओर से बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फ़िल्म कैटेगरी में आधिकारिक रूप से चुनी गई है। गुजराती-अमेरिकी ‘पैन नलिन’ ऑस्कर कमिटी में जगह पाने वाले पहले गुजराती बने हैं। इस फ़िल्म के निर्माता सिद्धार्थ रॉय कपूर हैं। फ़िल्म का प्रीमियर 2021 में न्यूयॉर्क में “ट्रिबेका फिल्म फेस्टिवल” में हुआ था। फिल्म का इंग्लिश में टाइटल ‘लास्ट फिल्म शो’ है।
“द लास्ट फ़िल्म शो” किसी अमेरिकी कंपनी द्वारा खरीदी जाने वाली पहली भारतीय फ़िल्म है। अमेरिकी फ़िल्म कंपनी ‘सैमुअल गोल्डविन फ़िल्म्स’ ने इस फ़िल्म को खरीद कर रिलीज़ कर दिया है। फिल्म को जापान में ‘शोचिकू फिल्म्स’ और इटली में ‘मेडुसा फिल्म्स’ ने खरीदा है।फ़िल्म फिल्म को जापान और इटली में भी रिलीज़ किया गया है। फ़िल्म को स्पेनिश में डब किया गया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फ़िल्म को पहले ही प्रशंसा मिल चुकी है।
फ़िल्म की कहानी-
‘छेल्लो शो’ फ़िल्म देखते हुए शिक्षा पर महर्षि अरविंद के विचार याद आ गए। उन्होंने ‘ए सिस्टम ऑफ नेशनल एजुकेशन’ नामक निबन्ध में अपनी शिक्षा की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए कहा, ‘प्रत्येक मानव के अन्दर कुछ ईश्वर प्रदत्त दिव्य शक्ति है,कुछ जो उसका अपनाहै, जिसे पूर्णता की ओर अग्रसर किया जा सकता है। शिक्षा का कार्य है इसे चिन्हित करना, विकसित करना एवं उपयोग में लाना। अपने एक दूसरे बहुचर्चित लेख में अरविन्द ने एक ऐसा वाक्य लिख जो शिक्षा का सूत्र वाक्य बन गया। उन्होंने लिखा ‘‘सही शिक्षा का प्रथम सिद्धान्त है कि कुछ भी पढ़ाया नहीं जा सकता है।’
फ़िल्म की कहानी गुजरात राज्य के सौराष्ट्र के एक गाँव चलाला में रहने वाले ‘समय’ नाम के एक नौ साल के बच्चे के इर्द-गिर्द घूमती है। चाय की एक छोटी सी दुकान की आय पर घर चलाने वाला समय का पिता परिवार को पास के शहर के थियेटर में लगी एक फ़िल्म दिखाने ले जाता है। समय परदे पर चल रही फ़िल्म देखकर अवाक रह जाता है। वह और भी ऐसी फ़िल्में देखना चाहता था, लेकिन उसके पिता ने पहले ही कह दिया था कि अब आगे और कोई फ़िल्म नहीं दिखाएंगे।
समय की दोस्ती फज़ल नाम के एक सिनेमा प्रोजेक्टर तकनीशियन से होती है। वह फज़ल को अपना टिफ़िन दे देता है। समय की माँ के हाथ का बना स्वादिष्ट खाना फज़ल को बहुत पसंद आता है। समय फज़ल की मदद से सिनेमा हॉल के प्रोजेक्शन बूथ में प्रवेश करता है और फ़िल्म देखता है। इसी तरह से समय कई फ़िल्में देखता है, और उसे सिनेमा के प्यार हो जाता है। कहानी जिस समय में सेट की गई है, उस वक्त प्रोजेक्टर के जरिए सिनेमा देखा जाता था।
एक मासूम बालक के असंभव से सपने को साकार करने की जद्दोजहद को यह फ़िल्म उत्कृष्ट तरीके से चित्रित करती है। समय कहता है, ‘मुझे प्रकाश बनना है। प्रकाश से कहानी बनती है, कहानी से फिल्म बनती है।’ वह दोस्तों की मदद से फ़िल्मों की रील चुराकर खंडहर में फिल्में देखता है, पुराने सामान से फ़िल्म प्रोजेक्टर बनाने की कोशिश में कामयाब भी होता है।
अचानक एक दिन नया प्रोजेक्टर आने से पुराना बिक जाता है। पुराना प्रोजेक्टर भट्टी में पिघलकर चम्मचों का रूप धारण कर लेता है और फिल्म की रीलें पिघलकर रंग-बिरंगी चूड़ियों में बदल जाती हैं। इन दृश्यों को देखकर बालक के मन में जो भाव उठते हैं, वे हमें भावुक कर देते हैं।
समय के किरदार में भाविन रबारी का अभिनय हर तरह से दिल को छू लेने वाला है। ऐसा लगता है जैसे वह असली चरित्र है। समय की माँ के किरदार में ऋचा मीणा की मूक अदाकारी और उनका शानदार खाना बनाना दिल को मोह लेता है। उनके पास मुश्किल से एक-दो डायलॉग होंगे लेकिन अपने बच्चों के साथ उनकी बॉन्डिंग कमाल की है। फ़िल्म के हर किरदार की अदाकारी अपनी जगह श्रेष्ठ है। समय और फ़ज़ल की दोस्ती धर्मों के बीच के अंतर को मिटा देती है।
फ़िल्म निर्देशक पैन नलिन की बचपन की यादों से प्रेरित, इस सेमी-ऑटोबायोग्राफिकल फ़िल्म की शूटिंग गुजरात के सौराष्ट्रइलाके के गाँवों और रेलवे स्टेशनों पर की गई है।चलाला गाँव और उसके चारों ओर बिछी हरियाली, तालाब, रेलवे स्टेशन, रेलवे ट्रैक्स, खंडहर बन चुकी ईमारतें, गैलेक्षी सिनेमा हॉल के दृश्य वास्तव में वे स्थान हैं जहाँ पैन नलिन बचपन में अक्सर जाया करते थे।
उन्होंने एक साक्षात्कार में बताया है कि फ़िल्म में दिखाया गई चाय की दुकान भी उनके पिता की है जब वे चाय बेचते थे। वे क्या थे और कितनी दूर आ गए हैं, फिर भी उनकी यादों मेंवतन के लिए उनका प्रेम आज भी जिंदा है।
फ़िल्म में भाविन रबारी, भावेश श्रीमाली, ऋचा मीणा, दीपेन रावल और परेश मेहता ने मुख्य भूमिकाएँ निभाई हैं। ये सभी वहाँ के स्थानीय लोग हैं। फ़िल्म का क्लाइमेक्स हमें पूरी तरहइमोशनल कर देता है, जो आप फ़िल्म मे देख सकेंगे। नीयत साफ़ हो और मनोबल मजबूत हो तो असंभव सपना भी साकार हो सकता है।फ़िल्म 14 अक्टूबर 2022 को भारत के सिनेमाघरों में रिलीज़ हो चुकी है। यह फ़िल्म भारत के अलावा जर्मनी, स्पेन, जापान, इजरायल और पुर्तगाल में भी रिलीज़हुई है।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक गुजराती फ़िल्म का जाना एक बड़ी घटना है। गुजरात और भारत के लिए गर्व की बात है। यह फ़िल्म मार्च 2023 में अमेरिका के लॉस एंजिल्स में होने वाले ‘ऑस्कर अवार्ड्स’ में भारत का प्रतिनिधित्व करेगी। दुनियाभर के 200 से अधिक क्षेत्रों में एबीसी पर इसका सीधा प्रसारण किया जाएगा।
हमारे देश में अब हिन्दी के सिवा कई प्रादेशिक भाषाओं में बेहतरीन फ़िल्में बन रही हैं। ऑस्कर नॉमिनेशन के लिए चुनी गई यह गुजराती फ़िल्म (अंग्रेजी सब टाइटल के साथ) हर भारतीय को देखनी चाहिए।