यात्रा वृत्तांत
एलीफेंटा गुफाएँ, मुम्बई
यात्राएँ कभी अनायास भी हो जाती हैं, जिनका औचित्य इतना भर होता है कि फलाँ जगह घूमना है, गर्मियों की छुट्टियाँ मनानी हैं। बिना वैचारिक उथल-पुथल वाली यात्राएँ बचपन से किशोरवय तक सीमित होती हैं, जिनमें मंथन तो कतई शामिल नहीं होता है। परंतु जब हम स्मृतियों के झरोखों से विचरण करते हुये उस स्थान के पुन: यात्री बनते हैं तब प्रारंभ होता है दर्शन, वैचारिक मंथन, आंकलन, लेखन। ऐतिहासिक स्थल हों या कि मंत्रमुग्ध करता प्रकृति का सानिध्य, मुझे सब अपनी ओर खींचता है, उनमें बंधी कहानियों, रोचक किस्सों और शिल्प के नेपथ्य की ओर।
मुम्बई नगरिया यूँ तो सपनों का शहर है। जहाँ रात अपने घूँघट में जुगनू छिपाये रखती है और दिन लोकल ट्रेन की पटरियों पर भागता जाँबाज खिलाड़ी होता है। कक्षा नवीं में थी तब मुम्बई गर्मियों की छुट्टियों के लिये चुना गया। किशोरवय लड़की तब पंख फैलाने के सपने बुनती है उम्र का ठीक वही पड़ाव। ग्वालियर से ट्रेन से जाना हुआ जिसका नाम आज याद भी नहीं है मुझे। मुम्बई करीब आता जाता रहा था तो दिमाग में ढ़ेरों सवाल गूँज गये…जिसमें एक सवाल इनवर्टेड कॉमा में था कि…क्या कोई फिल्म अभिनेता/अभिनेत्री यूँ ही सड़क पर,स्टेशन या कहीं टकरा जायेंगे जैसे हिन्दी फिल्मों में टकराते हैं। पगलाई कभी किसी भी उम्र में नहीं रही किसी भी अभिनेता या अभिनेत्री की सो…’नहीं मिले तो मलाल क्या ‘ वाली धुन पर बंशी बजाते रहे हैं।
मेरा मानना है कि- ऐतिहासिक स्थलों की ढ़ेरों विशेषताओं में से एक ये भी होती है कि…वो इतिहास की शिला पर बैठकर तथ्यों की गोदी में हमें वैचारिक थपकियाँ
देकर किस्सों की लोरियाँ सुनाकर शिल्प के पालने में झुला देते हैं। इसी नींद के घंघेले में मैंंने अजन्ता-एलोरा और ऐलीफेंटा अर्थात घारापुरी गुफाओं का फेरा किया था। इष्टदेव शिव का गढ़ सा प्रतीत हुआ यहाँ प्रतिमाओं के दर्शन कर के।
यात्रा के उपरांत अत्यधिक समय का बीत जाने के बाद उस स्थल पर लिखना ठीक वैसे ही है जैसे मटमैले पानी से मछली पकड़ना। लेकिन लिखने का हौसला संस्मरण की कलम संग गोताख़ोर बना देता है ।
तो चलिये हरे सूट पर सुनहरी कशीदा-किनारी वाली, स्पोर्ट शूज और गले में कैमरा लटकाये लड़की के संग।उन अभूतपूर्व अनुभवों से होकर लिये चलती हूँ आप सबको
ऐलीफेंटा गुफाओं तक।
घारापुरी अर्थात् एलिफेंटा गुफाओं तक जाना मेरे जैसे पानी से डरने वाले के लिये सहमा देने वाला था क्योंकि – मेरी यात्रा का आरम्भ ही पानी के रस्ते था, हमें बड़ी सी नाव से जाना था जो कि एक जहाज के मिनियेचर रूप जैसी थी। जिसे हमने मुम्बई के ताज होटल के सामने सुप्रसिद्ध प्राचीनतम स्मारक गेटवे ऑफ़ इंडिया से नक्की किया था। मुम्बई के इस जाने-माने लैंडमार्क गेटवे ऑफ़ इंडिया से लगभग 11-12 किलोमीटर दूर एलीफेंटा गुफाऐं अरबसागर में स्थित हैं। इस नाव पर मेरे साथ मेरे चाचा का परिवार और उनके एक घनिष्ठ मित्र का परिवार था और उनकी पत्नी की बहन संगीता जी भी थीं। संग ही बहुत से अजनबी चेहरे । मुझे सागर में खड़े विशालकाय जहाज उत्साहित कर रहे थे। इस टापू पर पहुँचकर उस नौका ने एक संकरी सीमेंटेड सड़क पर उतार दिया तेज़ हवा और उछलती लहरों से वो सड़क भीग रही थी और शायद इसी कारण काई जमने से उस पर फिसलन थी। मैं गले में कैमरा लटकाये उसे लहरों के छीटों से बचाती फिसलन पर पैर गड़ाए चल रही थी। सरपट कदम चाल लिये उस टापू की ज़मीन पर पैर रखे और यूनेस्को विश्व धरोहर में उल्लेखित एलिफेंटा गुफाऐं अर्थात् घारापुरी गुफाऐं मेरे सामने थीं ।
(सुना है अब यहाँ छोटी सी लाल-पीली रेलगाड़ी है )
यहाँ कुल सात कलात्मक गुफाऐं अपनी भव्यता खड़ी हैं । पहाड़ियों को काटकर उत्कीर्णित इन गुफाओं में दक्षिण भारतीय शिल्प से टाँकी गयीं भगवान शिव की
ढ़ेरों मूर्तियाँ स्थित हैं। मूल नाम अग्रहारपुरी से जन्मा ‘गुफाओं का नगर’ घारापुरी प्रचलित हुआ। गुफाओं की दीवारों पर उकेरी गयी मूर्ति शिल्प भगवान शिव के रूपों और उनकी कथाओं की छटा को बिखेर रही थी। शिवपुराण मानो प्रस्तर शिल्प से लिखा गया हो।
वैसे आपको बता दूँ कि एलिफेंटा गुफाओं के उत्खनन की सही कालावधि को लेकर पुरातत्वविदों में एक विवाद है, कुछ इन्हें चौथी एवम् कुछ इन्हें छठवीं ईसवी
का मानते हैं। बहरहाल मतभेद भले ही कितने हों पुरातत्ववेत्ताओं में लेकिन मनभेद कदापि नहीं है वो सभी इस बात से एकमत हैं कि…ये प्रस्तर शिल्प अद्भुत
और अलौकिक है ।
एलिफेंटा की ये सात गुफाऐं एक ही पहाड़ी को काटकर रची गयी हैं। इनकी संरचना को देखकर मन हतप्रभ रह जाता है कि…पहाडियों को काटकर कितनी ही विषमताओं को सुगम बनाकर उन बेनाम शिल्पकारों ने इस धरती के रहने तक वाला आश्चर्यजनक इतिहास रच दिया। कला के ऐसे उपासकों को जितना सराहा जाये वो कम ही रहेगा! शत्-शत् नमन उनको।
इन गुफाओं में हिन्दू धर्म के अनेक देवी- देवताओं की मूर्तियों,गणनायक गणेश,देवी पार्वती, लंकापति रावण सहित भगवान शंकर की नौ विशाल मूर्तियाँ हैं। यहाँ स्तम्भों पर भी शिल्प व्याप्त है। ये मूर्तियाँ शिवजी से जुड़े अध्यायों,रूपों और कथाओं को आकार देती हैं। कहते हैं कि…वर्तमान में महज़ एक पर्यटन स्थल बन कर रह गयी इन गुफाओं में पुरातनकाल में नियमित पूजा-स्थल की तरह स्थापित किया गया था। वैसे महाशिवरात्री के दिन यहाँ पूजा अर्चना आज भी की जाती है।
देश के विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों की मानिन्द यहाँ की मूर्तियाँ भी खण्डित हैं। खण्डित होने पर भी ये मूर्तियाँ पर्यटकों को अपने आकर्षण में भींच ही लेती हैं। ये शिल्पकार का किया हुआ वशीकरण होगा.. शायद से।
नटराजा :
शिव जब नटराज बन ताण्डव करते हैं तब पंचतत्वों में भी बबंडर छा जाता है…वैसी ही अस्थिरता शिव के नटराजा अर्थात् नटों के राजा का रूप लिये मूर्ति से जुड़ी आँखों और मन ने महसूस की। नृत्य साधकों की कला का प्रथम आराध्य प्रणाम भी इसी रूप से उपजी मुद्रा द्वारा किया जाता है। नृत्य साधना करने वाले या कि शिवजी को इष्टदेव मानने वाले भलीभाँति जानते हैं कि ताण्डव सृष्टि सृजनानंद और विनाश दोनों ही परिस्थितियों (आनन्द व रौद्र) के अंतर्गत किया जाता है। यह मूर्ति भी खण्डित है इसका निचला भाग पूर्णतः भंग है। चार हाथों में केवल एक ही हाथ की पूरी संरचना है। शिव के ताण्डव को देखते देवी- देवताओं की प्रतिमाओं पर भी ध्वस्तीकरण के संकेत व्याप्त हैं, ब्रम्हा की प्रतिमा में उनके तीन शीषों दिखाई दे जाते हैं।
अंधकासुर वध :
भगवान शिव का यहाँ त्रिकाल भैरव का रूप उकेरा गया है। हर तरफ खण्डित मूर्तियाँदेख मन दुखता है । कैसी विकृत मानसिकता होती है ये कि धरोहर को नष्ट कर उसका अपमान कर ख़ुशी पाते होंगे वे लोग?
त्रिकाल भैरव शिव का रौद्र रूप है । शिल्प में शिव के शीष पर चन्द्र व नागदेवता, गले में हार धारण कर क्रोधमयी मनोभावों से लिप्त आक्रामक मुद्रा में विचरते दर्शाया गया है। इसके हाथों सहित निचला धड़ भंग कर दिया गया है। अन्धक राक्षस वध के समय क्रोधमयी छवि को शिल्पकारों ने बख़ूबी उकेरा है। दाहिने हाथ में तलवार और बाम में मृतक राक्षस का झूलता शव, उनकी चढ़ी हुई भृकुटियाँ, अंगारों सी धधकते नेत्र एवं पैने दाँतों की भाव-भंगिमायें देखते ही बनती हैं। एक में लिपटे हुये नाग, दूसरे में एक पात्र है जिसमें वे अन्धक का रक्त एकत्र करते दर्शाए गए हैं। इस वध के पीछे भी पौराणिक कथा छिपी है।
कैलास विराजे शिव- पार्वती :
इस प्रतिमा में कैलास पर बैठे भगवान शिव एवम् देवी पार्वती को चौपड़ खेलते उकेरा गया है। शीष पर मुकुट व कंधे पर जनेऊ धारण किये भगवान् शिव ने घुटनों
तक वस्त्र धारण किये हुए हैं। सुन्दर वस्त्र एवं आभूषण धारण किये देवी पार्वती के कंधे से लटकते हुए केश हैं। शिव द्वारा चौपड़ के खेल में छल पराजित किये
जाने के कारण उन्होंने रुठकर मुँह फेर लिया है। दोनों की प्रतिमाओं के मध्य, शिशु कार्तिकेय को हाथों में उठाये उनकी पालक माँ हैं। भगवान शिव के चरणों में उनके परम भक्त ऋषि भृंगी का कंकाल है। कहा जाता है कि सिर्फ़ शिवजी का भक्त होने के कारण, रुष्ट देवी पार्वती द्वारा दिये गये श्राप से वह माँसपेशियों व रक्तहीन हो गया था। यह भी खण्डित मूर्ति है।
बाकी की मूर्तियों से आपका परिचय अपने अगले लेख में कराऊँगी….
क्रमशः — एलीफेंटा गुफाऐं
– प्रीति राघव प्रीत