यात्रा वृत्तांत / पर्यटन – स्थल
एक राजधानी जो खो गयी: झारखण्ड का राजमहल
धरती के इस भाग पर खड़े होकर आज यह अनुमान भी लगना मुश्किल है कि कभी यूनान का एक राजदूत मेगास्थनीज, चीन का एक यात्री व्हेनसांग, चैतन्य महाप्रभु का आगमन, शेर शाह और हुमायूँ की भिडंत, अकबर का इसे बंगाल की राजधानी घोषित करना और मानसिंह का यहाँ स्थापित होना, शाहजहाँ के दूसरे पुत्र शाहसुजा का इस स्थान का गवर्नर होना और प्लासी की लड़ाई के बाद अंग्रेजों द्वारा नबाव सिराजुद्दोला की गिरफ्तारी सब एक ही जगह पर हुई होगी!
यह इलाका राजमहल कहलाता है। यह गंगा के किनारे दो तरफ से पहाड़ों से घिरा झारखण्ड के एकदम पूर्वी भाग में रांची से लगभग 500 किलोमीटर दूर है। एक यही स्थान है झारखण्ड में जहाँ गंगा बहती है। गंगा आज भी चलायमान है; वर्षों हुए राजमहल बिखर चुका है। इसके वैभव अब समाप्त हो चुके हैं। अब यह झारखण्ड के साहेबगंज जिले का एक अनुमंडल मात्र है- यह एक लॉस्ट कैपिटल है!
यदि भारत के किसी मानव-विज्ञानी को प्राचीन मानव पर शोध करनी हो तो राजमहल की पहाड़ियों से बेहतर कोई स्थान नहीं; यह भारत का पुरातत्व विभाग भी स्वीकारता है। यहाँ जीवाश्म बिखरे पड़े हैं। इसके कुछ इलाके को एक घरोहर के रूप में सरकार ने घोषित किया, पर दिल्ली अभी दूर है। फिर यदि, किसी को गंगा के डाल्फिन पर शोध करनी हो तो राजमहल के पास इसके भंडार हैं। डॉल्फिन हमेशा साफ पानी में रहती हैं. इसका मतलब है कि इस इलाके की गंगा अभी मैली नहीं हुई है।
राजमहल आकर आप किसी एक वस्तु पर नहीं टिक पाते। सिकंदर जब भारत से वापस लौट गया तो उसने सैल्यूकस को अपना प्रतिनिधि यहाँ बनाया। उसी के दरबार में ईसा पूर्व 302 में मेगास्थनीज एक राजदूत बनकर आया था जिसने राजमहल की इन पहाड़ियों की यात्रा की और एक मानव जाति के बारे में लिखा जो प्राचीन समय से भारत के इस भाग में रहता आया है। उसने एक पहाड़िया जाति की खोज की जिसे उसने माली कहा जो अब माल और सौरिया पहाड़िया के रूप में जाना जाता है। ये राजमहल की पहाड़ियों में आज भी उसी तरह रहते हैं जैसे सिकन्दर के ज़माने में थे।
फिर चीनी यात्री व्हेनसांग 645 ई में राजमहल आया। वह प्राचीन तेलियागढ़ी के किले तक गया जो अपने उजड़े-बिखरे रूप में राजमहल की पहाडी पर आज भी विद्यमान है। यह किला दरअसल इतिहास में “गेट वे ऑफ़ बंगाल” कहलाता है। यहाँ शेरशाह और हिमायुं के भिड़ने की भी कथा है। यह किला कई बार उजड़ा और बना पर अब जिस प्रकार से पहाड़ों को तोड़ा जा रहा है; इसके दिन गिने चुने से लगते हैं। पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षण दे रखा है।
राजमहल ने अपना पहला वैभव अकबर के कल में पाया जब इसे बंगाल की राजधानी घोषित करते हुए अकबर ने 1592 में अपने सबसे भरोसे के सिपहसालार मानसिंह को यहाँ का गवर्नर नियुक्त कर दिया। मानसिंह ने यहाँ जमा मस्जिद, सिंघी दलाल और एक मुग़ल पुल का निर्माण कराया। मजेदार बात यह है कि इस मुग़ल पुल पर आज भी गाड़ियाँ चलती हैं।
लेकिन सामरिक और प्रशसनिक कारणों से जहाँगीर ने 1608 में बंगाल की राजधानी को राजमहल से हटा कर ढका कर दिया। लेकिन यह बहुत दिनों तक टिकने वाला नहीं था। शाहजहाँ ने 1639 में अपने पुत्र शाहसुजा को फिर राजमहल भेजा जिसने बंगाल के गवर्नर का पदभार ग्रहण किया। राजमहल फिर एक बार राजधानी बनी।
इसके दिन औरंगजेब के आने के साथ ही लदने लगे। सत्ता की लड़ाई में उसने अपने भाई शाहसुजा की हत्या कर दी। अब बंगाल मुर्शिदाबाद से शासित होने लगा था।
आधुनिक भारत के इतिहास में 1757 वह बड़ी घटना है जिसने ईस्ट इंडिया कंपनी को एक छोटी सी पर निर्णायक लड़ाई में बंगाल में पैर ज़माने का अवसर दिया था। बंगाल का नबाव सिराजुदोल्ला इस लड़ाई में पराजित होने के बाद जब भाग रहा था तो अंग्रेजों ने उसे राजमहल से गिरफ्तार कर लिया।
अब भारत में एक नई प्रशासनिक व्यवस्था का जन्म हो चुका था। अंग्रेजों ने राजमहल में अपने सिक्के ढलने के कारखाने बनाये पर राजधानी अब कलकत्ता जा चुकी थी।गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने 800 आदिम-जनजाति पहाड़ियों को अपनी सेना ने बहल कर लिया और 1772 के आसपास एक ऐसे अंग्रेज युवा पहले कलक्टर की बहाली राजमहल में की जिसने भारत के आदिम जन जातियों के बीच पहला सुधारवादी नींव डाली। वह था अगस्टस क्लीवलैंड, जो बाद में भागलपुर का भी का कलेक्टर बना। ईस्ट इंडिया कंपनी के इतिहास में इससे नामी कलेक्टर कोई नहीं हुआ, किन्तु उसकी मृत्यु मात्र 29 साल के उम्र में हो गयी।
कहते हैं कि अंग्रेजों ने पहली ट्रेन बम्बई से पूना और दूसरा राजमहल में ही लाई थी। दूसरे विश्वयुद्ध तक इस ट्रेन की कुछ निशानियाँ राजमहल में थीं। इसी समय इस इलाके में प्लेग फैला और राजमहल से प्रशासनिक अधिकार हटाकर साहेबगंज ले जाया गया, जो आजतक लौटकर वापस नहीं आया है। साहेबगंज अब एक जिला है और राजमहल मात्र उसका एक सब-डिवीजन।
दुनिया के अन्य इलाके में खड़े एक व्यक्ति को शायद राजमहल के दर्द का पता न चले, पर यहाँ हुआ यही है। यह एक खोया हुआ कैपिटल है।
यहाँ तक पहुचने का एकमात्र साधन रेल और रोड है; पर रहने के लिए कोई भी उत्तम होटल नही।
– ब्रजेश वर्मा