मूल्याँकन
एक अनूठा ग़ज़ल संग्रह ‘एक बह्र पर एक ग़ज़ल’
– के. पी. अनमोल
‘एक बह्र पर एक ग़ज़ल’ विद्वान ग़ज़लकार डॉ. ब्रह्मजीत गौतम का चर्चित और अनूठा ग़ज़ल संग्रह है। इस संग्रह का ग़ज़ल जगत में खुले दिल से स्वागत हुआ। मैंने कई माह पहले, शायद इसकी आमद पर इस पुस्तक के बारे में काफ़ी कुछ सुना-पढ़ा था और इसी वज्ह से इसे पढ़ने की चाह थी। अचानक आदरणीय गौतम जी का स्नेहाशीष प्राप्त हुआ और उन्होंने मुझे यह संग्रह सस्नेह भेज दिया। जब मैं इस संग्रह से होते हुए गुज़रा तो जाना कि इसकी लोकप्रियता का कारण क्या रहा!
दरअस्ल यह संग्रह इसलिए अपने आप में कुछ अलग है क्योंकि इसकी समस्त ग़ज़लें अलग-अलग बह्रों में हैं। ग़ज़ल का चूँकि अपना एक अनुशासन होता है, एक विधान होता है सो उसका पालन करना हर ग़ज़लकार के लिए आवश्यक है। अमूमन हर ग़ज़लकार कुछ ख़ास लोकप्रिय 15-20 बह्रों पर ही लेखन करते हैं, जिन पर उनकी बहुत अच्छी पकड़ होती है। लेकिन इस किताब में कुल पैंसठ ग़ज़लें हैं और सभी एक-दूसरे से अलग बह्रों पर लिखी गयी हैं। यानी पुस्तक अपने नाम ‘एक बह्र पर एक ग़ज़ल’ को पूर्णत: सही सिद्ध करती है।
अनूठेपन की बात इतने भर से ख़त्म नहीं होती! डॉ. ब्रह्मजीत ने अपने अच्छे छन्दशास्त्री होने का भरपूर लाभ उठाते हुए उसका फ़ायदा तमाम ग़ज़लकारों तक पहुँचाने के लिए इस किताब की हर ग़ज़ल की बह्र के अरकान (गणों) का उल्लेख करने के साथ ही प्रयुक्त बह्र से मिलते-जुलते हिन्दी के किसी मात्रिक अथवा वर्णिक छन्द की भी जानकारी दी है और इसकी वज्ह से इस पुस्तक का महत्व कई गुना बढ़ गया है।
यह अपनी ही तरह का एक अलहदा कार्य है, जिसकी बदौलत ग़ज़ल लेखन की ओर अग्रसर युवा रचनाकारों को बह्र और उसी की तरह के हिन्दी छन्दों की उपयोगी जानकारी आसानी से प्राप्त हो सकती है। साथ ही डॉ. ब्रह्मजीत की ग़ज़लें उनमें प्रयुक्त बह्रों के उदाहरण के रूप में अत्यधिक उपयोगी रहती हैं। पुस्तक की भूमिका में ख्यात अरूज़ी और ‘ग़ज़ल के बहाने’ पत्रिका के सम्पादक डॉ. दरवेश भारती के शब्दों में “उन्होंने (डॉ. ब्रह्मजीत) संग्रह की ग़ज़लों को कुछ निश्चित बह्रों तक सीमित न रखकर सभी प्रचलित बह्रों में एक-एक ग़ज़ल कहकर ग़ज़ल-लेखन के जिज्ञासु रचनाकारों का मार्ग प्रशस्त किया है।”
गद्य और पद्य में समान रूप से लेखन करने वाले डॉ. ब्रह्मजीत गौतम की अब तक आठ पुस्तकें प्रकाशित हैं। इनका नाम साहित्य-जगत में ससम्मान लिया जाता है। इनकी ग़ज़लें आसान भाषा में सामाजिक और सांस्कृतिक सरोकारों को प्रमुखता से उकेरने के लिए जानी जाती हैं। सामान्य शब्दों में ग़ज़लियत को बनाए रखते हुए शेरों में आसपास के परिवेश को किस तरह समाहित किया जाता है, यह इनसे सीखा जा सकता है।
शलभ प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित इस महत्वपूर्ण पुस्तक को डॉ. ब्रह्मजीत, स्मृति शेष स्वामी श्यामानन्द सरस्वती ‘रौशन’ को समर्पित करते हुए उन्हें इस कार्य की प्रेरणा बताते हैं। पुस्तक से कुछ शेर प्रस्तुत करते हुए इसके रचनाकार डॉ. ब्रह्मजीत गौतम को इस अनूठे कार्य के लिए साधुवाद सहित शुभकामनाएँ अग्रेषित करता हूँ।
बैठें कुछ देर अन्तस में ईश्वर के पास
शब्दशः है यही अर्थ उपवास का
कोशिशें हमेशा ही क़ामयाब होती हैं
और हर मुसीबत का वे जवाब होती हैं
कृष्ण! अपने ब्रज का भी तो हश्र देख लो ज़रा
दूर तक यहाँ कदम्ब है न अब तमाल है
रंग भी है, रूप भी है किन्तु है खुशबू से दूर
हो गया है आज का इंसान सेमल के समान
धूल, पसीना, धूप, तपन, मिट्टी से जो बचती फिरे
उस पीढ़ी से बात करें क्या खेतों की, खलिहान की
समीक्ष्य पुस्तक- एक बह्र पर एक ग़ज़ल
विधा- ग़ज़ल
रचनाकार- डॉ. ब्रह्मजीत गौतम
प्रकाशक- शलभ प्रकाशन, 199/ गंगा लेन, सेक्टर- 5, वैशाली, ग़ाज़ियाबाद- 201010
मेल- gieetikal@gmail.com
पृष्ठ- 144
मूल्य- 200 रूपये (पेपरबैक)
किताब के लिए डॉ. ब्रह्मजीत गौतम से भी संपर्क किया जा सकता है- 9760007838
– के. पी. अनमोल