स्मृति
यतीन्द्रनाथ राही ने यह गीत हाल ही दिवंगत स्वर्गीय देवेंद्र शर्मा ‘इंद्र’ की स्मृति को समर्पित किया है। दोनों बालसखा रहे और इंद्र जी अपने अंतिम समय तक राही जी के नियमित संपर्क में बने रहे। राही जी की जन्मतिथि 31 दिसम्बर, 1926 है यानी वह इंद्र जी से कुछ वर्ष आयु में बड़े हैं और दोनों की मित्रता करीब 80 वर्ष की रही। अर्थात वह करीब 93 वर्ष की आयु में भी कविताकर्म में निरंतर सक्रिय हैं और इसका श्रेय वह इंद्र जी को देते रहे कि उन्हीं की प्रेरणा से उनकी लेखनी में जीवंतता बनी रही। यह भी उल्लेखनीय है कि राही जी ने पिछले कुछ सालों में आये अपने सभी काव्य संग्रह इंद्र जी को ही समर्पित किये और मुखर घोषणा की कि उनके काव्यकर्म की प्रेरणा इंद्र जी का स्नेह एवं अनुजवत आदेश ही रहा। पढ़िए इंद्र जी की समृति में लिखी उनके सखा यतीन्द्रनाथ राही की एक रचना-
महामौन धरकर तुम सोये
शब्द हमारे अधर धर गये
यह कैसा अंधेर कर गये?
पंथ दिखाये थे तुमने ही
तुमसे मर्म राह के जाने
शब्दों के ककहरे पढ़े थे
अर्थ तुम्हीं से तो पहचाने
मेरे गीत यज्ञ के, प्रियवर
तुम याज्ञिक थे, तुम होता थे
विधि के धर्म-कर्म अर्पण के
तुम्हीं प्रणेता थे, द्योता थे
अभी अग्नि प्रज्ज्वलित कहाँ थी?
समिधाओं के ढेर धर गये।
अग्निपंथ मेरा था, तुमने
वरण कर लिया पहले बढ़कर
भरी भीड़ हम रहे देखते
निकल गये कन्धों पर चढ़कर
गीतों के सिन्दूरी दिन वे
डूबे मंत्र, स्वस्ति का वाचन
हुए छिन्न रेशम के धागे
अंतर दंश, वक्ष पर पाहन
उजड़े पीठ, भग्न खंडहर में
घटाटोप अंधियार भर गये।
हारे नहीं कभी थे ऐसे
टूटे पंख डाल से छूटे
भीतर रही चीखती पीड़ा
लेकिन बाहर बोल न फूटे
खंडित स्वप्न, ज्वलित यह मरुथल
हवा कटखनी, चुभती फांसें
दूर-दूर तक खुली न खिड़की
अपने ही स्वर, गिनती सांसें
जड़ें हिल गयीं, बुनियादों की
संस्कारों के सूत्र जर गये।
यह कैसा अंधेर कर गये।
– देवेन्द्र शर्मा इन्द्र