उभरते स्वर
उजड़ी बस्ती
बात बिगड़ी, फिर से बना ली जाएगी
उजड़ी बस्ती, फिर से बसा ली जाएगी
शहर में कोई भी, न हो मायुसो-ख्वार
जो सहर होगी, रात काली जाएगी
यूँ ही जाते-जाते, आज वो कहते गए
हाँ, तेरी हसरत भी निकाली जाएगी
उस बेवफा को बावफा कह देंगे हम
पर आबरु, सबकी बचा ली जाएगी
हैं गर राहों में, कोरा पतझड़ छाया
हौसलों से बहारें बिछा ली जाएगी
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पूछ रहा है
वो मुझसे खफा रहने का सबब पूछ रहा है
आज बरसों बाद ये सब क्यों पूछ रहा है
कुछ नहीं हो पाएगा, मालूम है लेकिन
बिसरी हुई चाहत से तलब पूछ रहा है
कैसे बिताएँ वो तन्हा रातों के लम्हे
कुछ नहीं बताएँ, पर सब पूछ रहा है
समय के भंवर से, निकल आई लेकिन
वो भूत, वर्तमान और भविष्य पूछ रहा है
बरसों रखा लबों पे, ख़ामोशी का ताला
अचानक वो ये सब क्यों पूछ रहा है
– कुसुम शर्मा