पुस्तक-समीक्षा
समीक्ष्य कृति- लू लू की सनक (कहानी)
लेखक- डॉ. दिविक रमेश
प्रकाशक- राष्ट्रीय पुस्तकन्यास, भारत,
नेहरू भवन, 5, इंस्टीट्यूअनल एरिया, फेज,
वसंत कुंज, नई दिल्ली- 110070,
पृष्ठ संख्या- 52
मूल्य- रु. पचहत्तर मात्र
समीक्ष्य कृति लू लू की सनक ख्यातिलब्ध कवि, कहानीकार, अनुवादक की विधि सेठी, प्रेरणा और मिट्ठू, डोरथी और दयाना को समर्पित अभिनव कृति है। यह छह अध्यायों में विभक्त है।
इसका प्रधान नायक लू लू एक छोटा बालक है। माँ, अध्यापिका और साथियों के माध्यम से लू लू में मनोवैज्ञानिक ढंग से उसमें सुधार का प्रयोग स्वागत योग्य रचना है।
लू लू की माँ, लू लू की सनक, लू लू बड़ा हो गया, लू लू की बातें, लू लू का गुस्सा, लाल बत्ती पर इसके प्रमुख अध्याय हैं।
प्रस्तुत कृति के माध्यम से शैक्षिक-जगत से जुड़े अग्रणी लेखक ने अभिभावकों को बच्चों की आदतों, स्वभाव में बदलाव के नये तरीके सुझाये हैं। उनके नये- नये अभिनव प्रयोग बाल-संसार को स्वच्छ और निर्मल बनाने में पूर्ण सफल हैं।
कृति सचित्र है। अतुल वर्धन जी के चित्र मोहक और बोलते हैं। पुस्तक की भाषा सहज, सरल, सुबोध, भावपूर्ण और प्रवाहमयी है।
आलोच्य कृति शिक्षाप्रद, प्रेरक, पठनीय और ज्ञानवर्द्धक है। मूल्य सामान्य है।
आशा है कि प्रस्तुत कृति का हिन्दी बाल-संसार में पर्याप्त स्वागत होगा।
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एक सौ एक बाल कविताएं (बालकाव्य)
कवि- डॉ. दिविक रमेश
प्रकाशक- मैंटिक्स पब्लिशर्स, आत्माराम बिल्डिंग,
1376 भू तल, कश्मीरी गेट, दिल्ली- 6,
मूल्य- रु. 300
पृष्ठ सं.- 144
आलोच्य कृति ‘एक सौ एक बाल काविताएं’ हिंदी के वरिष्ठ कवि, कहानीकार, समालोचक, वैश्विक भाषाओं के अनुवादक डॉ. दिविक रमेश की बाल कविताओं का रोचक और मनोरंजक संग्रह है। भूमिका लेखक डॉ. प्रकाश मनु ने सही लिखा है कि “दिविक बेशक उन शक्तिशाली और लोकप्रिय बाल कवियों में से हैं, जिन्होंने मौजूदा दौर में न सिर्फ हिंदी कविता के पाट को चौड़ा करके उसे ‘आधुनिक’ बनाया बल्कि साथ ही उन्होंने बहुतेरे नए नए जंगम प्रयोंगों से गुजरी नए नए मूड्स वाली बाल कविताएं लिखकर इधर की हिंदी बाल कविता को अधिक दिलचस्प, मनोरंजक और सयाना बनाया है।” उनकी यह मनोधारणा यथार्थपरक है। पुस्तक डोलू (डोलू /डोरथी) को समर्पित है।
संग्रह में कुछ कविताएं कार पंक्तीय हैं। ‘जागो’, ‘जलेबी’, ‘रसगुल्ला’, ‘चोरी-चोरी’, ‘राहें’ आदि इसी कोटि की रचनाएं हैं, जो शिशुओं के कंठस्थयोग्य हैं तथा उनकी कल्पना का विस्तार करती हैं, संग्रह की पहली कविता ‘जागो’ में देर तक सोने पर ‘छनछन-छनछन तली पूड़ियां, झनझन-झनझन बजी चूड़ियां, माँ की जगी रसोई है, तू क्यों अब तक सोई है’ कवि ने प्रश्न लगाया है।
‘सुंदर मां का सुंदर गाना’ में तारों द्वारा कविता झरने तथा माँ द्वारा उन्हें सुनाने का अभिनव प्रयोग बालभावना के अनुकूल है। संग्रह की सबसे मनोहारी कविता ‘घर’ है, जिसमें बालमनोविज्ञान की झलक दृगत होती है। उदधारण सादर प्रस्तुत है-
पापा क्यों अच्छा लगता है
अपना प्यारा प्यारा घर
घूम-घाम लें, खेल-खाल लें
नहीं भूलता लेकिन घर
पर पापा इक बात बताओ
नहीं न होता सबका घर
क्या करते होंगे वे बच्चे
जिनके पास नहीं है घर?
संग्रह की ‘बम’ कविता में कवि ने उसकी शक्ति और भयावहता से बच्चों को परिचित कराया-
जिससे पूछो वह ही कहता
बुरी चीज़ है बम
सबकुछ होगा राख अगर जो
गिरा कहीं पर बम
जिंदा ही हम भुन जाएंगे
अगर चला जो बम
बच्चे हों या मम्मी-पापा
खा जाता है बम। (कविता ‘बुरी चीज़ है बम’, पृ.- 142)
कवि की ‘पुस्तक’ शीर्षक कविता में जो सहजता और आकर्षण है, वह बच्चों में ममत्व भाव का जागरण करता है। कुछ पंक्तियां उदाहरण स्वरूप-
एक पते की बात बताऊं
पुस्तक पूरा साथ निभाती
छूटे अगर अकेले तो यह
झटपट उसको मार भागाती
मैं तो कहता हर मौके पर
ढेर पुस्तकें हमको मिलतीं
सच कहता हूं मेरी ही क्या
हर बच्चे की बांछे खिलतीं
नदिया के जल सी ये कोमल
पर्वत के पत्थर सी कड़ियल
चिकने फर्श से ज्यादा चिकनी
खूब खुरदरी जैसे दाढ़ी।
‘घूम घूम घूम’ संग्रह की अंतिम तथा ‘जागो’ प्रथम रचना है। ‘समझदारी शेर की‘, ‘मेरी बात’, ‘शैतान चिड़िया’, ‘सूरज आता है’, ‘बादल पागल’, ‘जादूगर’, ‘मच्छर भाग गए पटियाला’, ‘सवारी’, ‘खुशी लुटाते हैं त्योहार’, ‘दादा जी की मूंछ’, ‘सबका कैसे एक ही मामा’, ‘खूब जोर से बारिश आई’, ‘मामा का घर’ संग्रह की उत्कृष्ट रचनाएं हैं।
संग्रह की सभी कविताएं सचित्र हैं। आवरण पृष्ठ सजिल्द, रंगीन और प्रभावी है। कविताओं की भाषा सरल, सुगम, बोधमयी और प्रवाहमयी है। रचनाएं पठनीय, रोचक और उपयोगी हैं। मूल्य अधिक नहीं है।
आशा है कि बच्चे, अभिभावक और अध्यापक इसे पसंद करेंगे।
– डॉ. चक्रधर नलिन