आलेख
आधुनिक हिन्दी कवियों की राष्ट्रीय चेतना
– रीत चौधरी
आधुनिक हिन्दी काव्यधारा की राष्ट्रीय परम्परा में कवियों की सूची लम्बी है लेकिन कुछ विशेष कवियों की राष्ट्रीय चेतना को प्रस्तुत किया गया है। इन कवियों ने राष्ट्र के स्वर्णिम अतीत के चित्रण द्वारा उज्ज्वल भविष्य के निर्माण का संदेश दिया है। प्राधीनता के बन्धनों को काटना इनके काव्य का लक्ष्य है और राष्ट्र का सर्वोमुखी उत्थान ही इनका प्रतिपाद्यय है। इन कवियों ने अपने काव्य के माध्यम से समाज को राष्ट्रीय जनजागरण तथा विश्वबन्धुत्व की भावना की वाणी प्रदान की। आधुनिक हिन्दी राष्ट्रीय काव्यधारा में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है।
पंडित श्रीधर पाठक:
पंडित श्रीधर पाठक जी राष्ट्रीय कवि हैं। पाठक जी हिन्दी ;खड़ी बोली में भारत दैवत के प्रथम महागायक हैं। उनके ‘भारत गीत’ में भारत एक देव-मूर्ति के रूप में वर्जित हैं। आधुनिक हिन्दी राष्ट्रीय काव्यधारा में सर्वप्रथम उन्होंने ही राष्ट्र का दैवीकरण कर उसका जयगान किया है। हिमाच्छादित उत्तुंग शिखरों से सुशोभित हिमालय, पवित्र सागर कलकल निनाद करने वाली गंगा आदि के सौंदर्य पर कवि विभुग्ध है-
उन्नत-माल-विराजित-चारु हिमाचल है
प्रनत-पयोधि-पसर्थित-पद-चल अंचल है
धृत-उज्ज्वल-सरिता-सर-हीर-हार-उर है
जय रवि-प्राय-प्रभासित-तप-या-भासुर है
जय जय भारत है।1
पाठक जी के काव्य में जातीय एकता और सद्भाव का स्वर है। वे सभी जातियों के उत्थान में देश का कल्याण देखते हैं उनकी दृष्टि में सभी धर्मों के पवित्र स्थल पावन है। पाठक जी ने आर्यनारी के श्रेष्ठता का गुणगान किया। कवि नारी समाज में उच्चतम आदर्शों की स्थापना का स्वप्न देखता है। वह अपने उज्ज्वल जीवन के अशोक से सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करने वाली लक्ष्मी तथा सरस्वती सरूपा देवियों की झांकी आज की नारियों में देखना
चाहते हैं-
अहो पूज्य भारत-महिला गण आटे आर्य कुल प्यारी।
अहो आर्य गृह लक्ष्मी सरस्वती आर्य लोक उजयारी।
आर्य जगत् में पुनः जननि निज जीवन ज्योति जगाओं।
आर्य हृदय में पुनः आर्यता का शुचि स्त्रोत बहाओ।।2
राष्ट्रकवि कवि मैथिलीशरण गुप्त:
आधुनिक हिन्दी राष्ट्रीय काव्य धारा में मैथिलीशरण गुप्त का विशिष्ट स्थान है। उनके अनुसार राष्ट्र का स्वर्णिम अतीत राष्ट्रवासियों में जागरण का शंखनाद फूँकने का सशक्त आधार है। अतीत के महापुरुषों के प्रेरणप्रद चरित्र राष्ट्र की पीढ़ी को शौर्य और बलिदान का पाठ पढ़ाते हैं-
संसार में जो कुछ जहाँ फैला प्रकाश विकास है।
इस देश की ही जाति का उसमें प्रधानाभास है।।3
गुप्त जी के संस्कारों में भारतीय संस्कृति जल और लवण की भाँति घुल मिल गयी है। संस्कृति प्रेम उनके समस्त काव्यों में व्याप्त है। उनकी धारणा है कि अन्तः में समस्त संस्कृतियाँ, भारतीय संस्कृति मंे विलीन हो जायेगी-
आर्य भूमि अन्त में रहेगी आर्य-भूमि ही
आकर मिलेगी यही संस्कृतियाँ सबकी
होगा एक विश्व तीर्थ भारत की भूमिका।।4
संतकवि सियाराम शरण गुप्त:
सियारामशरण गुप्त जी के हृदय में राष्ट्रभक्ति दिखाई देती है। वे कहते हैं कि जय-जय भारतवासी जय जय जय भारत दुर्गम गिरि, वन, अग्नि और प्रबल जलधारा भी उनका गतिरोध नहीं कर सकती। सम्राट चन्द्रगुप्त की सेना के वीरांे की वाणी के रूप में कवि मानो तत्कालीन भारत में राष्ट्रीय जागरण को ध्वनि कर रहा है-
आओ वीरों! आज देश की कीर्ति दें,
सबके सम्मुख मातृभूमि को शीश चढ़ा दें।
संसार दे ले हमें तुच्छ नहीं है हम कभी।।5
पंडित रामनरेश त्रिपाठी:
त्रिपाठी जी आधुनिक हिन्दी राष्ट्रीय काव्यधारा के महत्त्वपूर्ण स्तम्भ है। त्रिपाठी जी को अपने स्वर्णिम अतीत पर अभिमान है। अतीत के तपोनिष्ठ ऋषि मुनियों, धर्मरक्षक सम्राटों और रणकुशल योद्धाओं का कविवर ने श्रद्धापूर्वक स्मरण किया है। त्रिपाठी जी द्वारा राष्ट्र की पराधीनता पर व्यक्त क्षोभ अत्यन्त मार्मिक हैं। अन्यथा कातर हृदय पुकार उठतर है-
पर-पद दलित, पर मुखापेक्षी, पराधीन, परत्रत, पराजित
होकर कहीं आर्य जीते हैं? पामर, पशु सम पतित पराजित।।6
त्रिपाठी जी के उद्बोधन गीत अत्यन्त मनोरम है। जिन्हें स्वत्व प्राप्ति का पावन संदेश निहित है। कवि ने भारतीयों की आर्थिक दशा का मर्मस्पर्शी चित्रण किया है। दरिद्रता तो जैसे उनकी जीवन संगिनी है-
अन्न नहीं है, वस्त्र नहीं है, उद्यम कौन उपाय।
बन भी नहीं ठौर टिकने को, कहाँ जायें? क्या खायें?7
पंडित श्याम नारायण पाण्डेय:
पंडित श्याम नारायण पाण्डेय जी राष्ट्रीयता अतीतोन्मुखी है। वीर शिरोमणि महाराजा प्रताप और अमर वीरांगना के चरित्र पाण्डेय जी के लिए अमोध प्रेरणा के स्त्रोत हैं, जिनका यशोगान क्रमशः ‘हल्दीघाटी‘ और ‘जौहर’ महाकाव्यों और आरती की स्फुट कविताओं में किया गया। गुरु गोविन्द सिंह जी के दोनों पुत्र जोरावर सिंह और फतेह सिंह के बलिदान पर कवि को गर्व है। वे अपनी संस्कृति के प्रति आस्थावान है। उनके काव्यों में भारतीय जागरण का पावन संदेश है-
जागो, तुम्हारी जन्मभूमि को रौंद लुटेरे लूट रहे।
उठो, तुम्हारी मातृभूमि के, जीवन के स्वर टूट रहे।।8
जयशंकर प्रसाद:
राष्ट्र के दैवीकरण की यह प्रवृत्ति प्रसाद जी के काव्य में परिलक्षित नहीं होती तथापि हिमालय की महानता और भव्यता का वर्णन उन्होंने भी किया है। उन्हें प्रातःकालीन सूर्य की रश्मियों से सुशोभित और हिममणि से मंडित हिमालय राष्ट्र के गौरव के रूप में दिखाई पड़ता है-
हिमगिरि का उत्तुंग शृंग है सामने
खड़ बताता है भारत के गर्व को
पड़ती इस पर जब माला रवि-रश्मि की
मणिमय हो जाता है नवल प्रभात में।9
प्रसाद जी के काव्य में स्वदेश-चिंतन की पंक्तियाँ दृष्टिगोचर होती है, उनका प्राण प्रिय राष्ट्र, जीवन की प्रफुल्लता और मधुरता का कोष तथा सबका आश्रय स्थल है। उसकी प्राकृतिक सुषमा अनुपम है-
अरूण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजाल क्षितिज को मिलता एक सहारा।
सरस तामरस गर्म विभा पर, नाच रही तरूशिखा मनोहर।
छिटका जीवन-हरियाली पर, मंगल कुंकुम सारा।।10
सारांश रूप में कहा जाता है कि उन कवियों के हृदय में राष्ट्र प्रेम की भावना, लोकमंगल की कामना, चिंतन एवं अपने वीरों के प्रति आदर और उनके बलिदान पर गर्व कर समाज में युवा पीढ़ी को राष्ट्रभक्ति के प्रति सचेत रहना का सफल प्रयास किया है।
संदर्भ-सूची
1. श्रीधर पाठक, भारतगीत, पृष्ठ 75
2. वही, पृष्ठ 160
3. मैथिलीशरण गुप्त, भारत-भारती, पृष्ठ 16
4. वही, सिद्धराज, पृष्ठ 136
5. सियारामशरण गुप्त, मौर्यविजय, पृष्ठ 81
6. आधुनिक कवि, पृष्ठ 35
7. वही, पृष्ठ 36
8. श्यामनारायण पाण्डेय, जौहर, पृष्ठ 210
9. प्रसाद, कानन कुसुम, पृष्ठ 110
10. वही, पृष्ठ 1001
– रीत चौधरी