मूल्यांकन
‘आत्माएँ बोल सकती हैं’ की कहानियॉं समाज का आईना दिखाती हैं
– डेल्सी एलिजाबेथ
कविता संग्रह प्रकाशित होने के बाद डॉ. ललित सिंह की दूसरी पुस्तक का नाम है ‘आत्माएँ बोल सकती हैं’। यह एक कहानी संग्रह है, पुस्तक के नाम से ऐसा लगता है जैसे भूतिया दुनिया में ले जाने वाली कोई किताब होगी मगर, ऐसा नहीं है। इस पुस्तेक में 14 कहानियों को समेटा गया है। कहानियॉं, जो हमारे आसपास के संसार को बुनती हैं। मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियों के चर्चित होने का मुख्य कारण था उनकी कहानियॉं तत्कालीन सामाजिक परिवेश से जुड़ी होती थीं और कहानियों के पात्र भी समाज के प्रतिबिंब होते थे। ‘आत्माएँ बोल सकती हैं’ पुस्तक की सभी कहानियॉं आज के समय में समाज का आईना दिखाती हैं। इन कहानियों के पात्र वे लोग हैं, जो हमारे आस-पास रहते हैं। पाठक, कहानियों के साथ अपना तादात्मय पाते हैं।
पुस्तक हाथ में आते ही सबसे पहले दिमाग में प्रश्न आया कि पुस्तक का नाम ‘आत्माएँ बोल सकती हैं’ क्यों रखा गया है? शायद पाठकों को आकर्षित करने लिए..! लेकिन सभी कहानियों को पढ़ने के बाद पता चलता है कि लेखक अपने पात्रों को एक आत्मा मानकर चलता है, जो प्रत्येक कहानी में अपने अनुभवों को पाठकों के साथ साझा करती दिखायी पड़ती है। इसलिए पुस्तक का नाम ‘आत्माएँ बोल सकती हैं’ सार्थक प्रतीत होता है।
हिंदी कहानी संग्रह ‘आत्मााएँ बोल सकती हैं’ की टैग लाइन बाहर की दुनिया देख, मन के भीतर उपजती नई कहानियाँ सौ फीसदी सटीक है। समाज और आस-पास घटने वाली घटनाओं को केंद्र में रखकर रची गई कहानियों की विशेष बात यह है इनकी भाषा शैली सरल है, जो सीधे पाठक के मन में उतरती है। लेखन में नई शैली का प्रयोग है। यह पाठक के स्वाद पर निर्भर करता है कि वे इस विधा को रुचिकर लेते हैं या अरुचिकर। ये कहानियाँ किसी एक पाठकवर्ग के लिए नहीं बल्कि हर उम्र के पाठकवर्ग के लिए रची गई हैं, जो पाठक नई कहानियाँ पढ़ना चाहते हैं और नई कहानियों की तलाश में हैं, उनके लिए यह पुस्तक उपयुक्त और बजट में भी है।
समीक्ष्य पुस्तक: आत्माएँ बोल सकती हैं
लेखक: डॉ. ललित सिंह राजपुरोहित
प्रकाशन: ब्लूरोज पब्लिशर्स, नई दिल्ली
कीमत: 149 रूपये
पृष्ठ सं.- 154
– डेल्सी एलिज़ाबेथ