आओ उनकी मदद करे
पात्र परिचय- अंकुर, मुरली, झुमरी व असलम
सभी बच्चों की उम्र करीब 12 से 14 साल के आसपास।
पर्दा खुलता है।
मंच पर ज्यादा रौशनी नहीं है।अभी बिलकुल सन्नाटा है।कही से कोई भी आवाज़ सुनाई नहीं पड़ रही है।
तभी मंच पर प्रवेश करते हुए बच्चे पर रंग बिरंगा प्रकाश पड़ता हैं।देखते ही देखते सारा मंच प्रकाशमय हो जाता है।
अंकुर (इधर उधर देखकर)-मुरली, झुमरी असलम कहाँ हो सब के सब।
(मंच एक खेल का मैदान नज़र आ रहा है। मैदान में कही कही पर थोड़ी घास उगी है।बाकी सारी जगह मिट्टी ही मिट्टी है। मैदान के एक छोर पर नीम का पेड़ लगा हुआ है।
मंच के दूसरी तरफ से एक साथ चार बच्चों का प्रवेश होता है।
अंकुर- तुम सब कहाँ थे ?
सब बच्चे (एक साथ) – तालाब के पास।हम सब खेल रहे थे।कहो क्या बात है ?
असलम(चौककर) -क्या हुआ ?
मुरली- हाँ हाँ, क्या हुआ अंकुर ?
अंकुर- अरे कुछ लोग आए है दूर गांव से।
झुमरी- कहाँ से ?
असलम- कौन से गॉव से ? क्या करने?
(सभी बच्चे अंकुर को चारो तरफ से घेर लेते है।)
अंकुर- मेरी बात सुनो।
झुमरी- हाँ हाँ, कहो तो क्या बात है ?
अंकुर- जो लोग आए है।वे किसी एन.जी. ओ. से जुड़े है।पास के ही गाँव से आए हुए है।
मुरली – एन. जी. ओ. क्या होता है ?
झुमरी(सबको बताते हुए)- अरे ये समाज के हित में काम करने वाली संस्था होती है।आगे बताओ अंकुर।
असलम- अंकुर अच्छा खासा हम खेल रहे थे।तुम बेफिजूल की बाते लेकर आ गए।मैं चला।
अंकुर- सुनो सुनो असलम।जो लोग आए है वे अनाथ बच्चों की देख रेख करते है।उनके लिए शिक्षा की व्यवस्था कराते है।
झुमरी- ये तो बहुत अच्छी बात है।
मुरली- हाँ हाँ, सच में।
असलम-इसमें क्या अच्छी बात है।इससे हमारा क्या मतलब?
अंकुर- क्यों मतलब नहीं ? वे बच्चे भी तो हम जैसे ही है।
असलम- तो वे लोग यहाँ क्या करने आये है?
अंकुर- अरे मदद मांगने।
असलम- हम क्या मदद कर सकते है।कुछ नहीं।हम तो खुद अभी बच्चे है।
मुरली- असलम सही कह रहा है।हम तो मदद नहीं कर सकते।
अंकुर- क्यों नहीं कर सकते मदद।बताओ भला।
झुमरी- कोई रास्ता सुझाव अंकुर।
अंकुर- क्या हम उन्हें अपनी पुरानी किताबें कपड़े नहीं दे सकते जो अब हमारे इस्तेमाल में नहीं है।
झुमरी- हा हा क्यों नहीं ?अरे ये तो अच्छा है।
असलम- मैं नहीं दूंगा,अपनी किताबें।
मुरली- असलम, पुरानी किताबें क्या करोगे ? अगर हम उन्हें दे देंगे तो उनके पढ़ने के काम आएगी ना।
अंकुर- मुरली सही कह रहा है।मैं तो अपना गुल्लक भी दे रहा हूँ।
झुमरी- खाली गुल्लक उनके क्या काम आएगा ?
अंकुर- खाली नहीं पगली, भरा हुआ।
असलम (चौककर)- पूरा भरा हुआ?
अंकुर- हाँ हाँ।
मुरली- कितने पैसे होंगे उसमे?
अंकुर-पता नहीं।गिने ही नहीं।
असलम- मगर क्यों दे रहे हो?
अंकुर- अनाथ बच्चों के काम आएंगे न।
असलम- तू इतना सब किसके लिए कर रहा है।और तुझे तो कोई भी फायदा नहीं होने वाला।
अंकुर- देश के लिए कर रहा हूँ।सब पढ़ेंगे लिखेंगे तो देश आगे बढ़ेगा।फायदा ही फायदा है।आगे आओ, दोस्तों उनकी मदद करे।
झुमरी- वाह अंकुर।तुम कितना अच्छा सोचते हो।मैं भी अपना गुल्लक दे दूंगी।वो भी पूरा भरा हुआ।
मुरली- मैं भी।
असलम- तुम सब पागल हो गए हो।भला कोई अपना जमा किया हुआ पैसा किसी को देता है।
अंकुर- जमा किये हुए पैसे अगर अपने जैसे बच्चो के काम जाए तो कितनी अच्छी बात है।असलम आज हमारे तुम्हारे माता पिता है इस दुनिया में।उन बच्चों का क्या जिनका इस दुनिया में कोई नहीं है।क्या उन्हें शिक्षा का अधिकार नहीं ?
असलम- तुम बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हो।
(फिर अंकुर के समझाने पर असलम भी उसकी बात मान जाता है।)
झुमरी- अंकुर सही रहा है।
मुरली- बिलकुल सही।
अंकुर- चलो चलो फिर जल्दी से गांव की तरफ चलते है। उनके लिए और चंदे इकट्ठे करते है।
झुमरी, मुरली और असलम, अंकुर के पीछे-पीछे हो लेते है।
अंकुर आगे गाते-गाते चलता है-
‘हम सब जब कोशिश करेंगे,
सब बच्चे फिर लिखे पढ़ेंगे ।।’
पीछे से सभी बच्चे दोहराते है।मंच से रौशनी कम होती जाती है।
पर्दा पुनः धीरे-धीरे आपस में मिलने लगता है।
– सिराज अहमद