स्मृतियाँ
अलविदा निदा फ़ाज़ली साहब!
घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो यूँ कर लें।
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए॥
इस पर अपना विरोध प्रकट करते हुए जब कुछ कट्टरपंथियों ने निदा फ़ाज़ली से पूछा कि क्या आप किसी बच्चे को अल्लाह से बड़ा समझते हैं? निदा जी का जवाब था कि मैं केवल इतना जानता हूँ कि मस्जिद इंसान के हाथ बनाते हैं जबकि बच्चे को अल्लाह अपने हाथों से बनाता है।
इतनी शानदार शख़्सियत और उर्दू , हिंदी के प्रख्यात साहित्यकार और बॉलीवुड के नामचीन गीतकार निदा फ़ाज़ली ने 8 फरवरी 2016 को मुंबई में दिन के 11:30 बजे आखिरी सांस ली।12 अक्टूबर 1938 को दिल्ली में जन्में फ़ाज़ली का मूल नाम मुक्तदा हसन निजा था। बाद में उन्होंने अपना नाम निदा फ़ाज़ली रख लिया। निदा का मतलब है आवाज और फाजल कश्मीर का एक इलाका है, जहां उनके पुरखे रहते थे।
भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय उनका परिवार पाकिस्तान चला गया, लेकिन उन्होंने भारत में ही रहने का फैसला किया। निदा ने स्कूल से लेकर कॉलेज तक की पढ़ाई ग्वालियर में की। वर्ष 1957 में उन्होंने स्नातक की डिग्री हासिल की। वर्ष 1964 में रोजगार की तलाश में वह मुंबई आए और यहीं के होकर रह गए।
निदा फाजली ने कई बेहतरीन नज़्में और ग़ज़लें लिखी हैं। उनका नाम उर्दू और हिंदी दुनिया के अज़ीम शायरों और गीतकारों में शुमार था। उन्होंने गज़ल और गीतों के अलावा दोहा और नज़्में भी लिखी हैं, जिसे लोगों ने जमकर सराहा है। फारसी शब्दों के बजाय देशी शब्दों और जुबान का इस्तेमाल उनकी शायरी की खास खूबी थी।
‘हस्ताक्षर’ परिवार की ओर से निदा फ़ाज़ली साहब को अश्रुपूरित नमन एवं श्रद्धांजलि!
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निदा फ़ाज़ली जी की कुछ रचनाएँ :
दोहे
1.
सब कि पूजा एक सी, अलग अलग है रीत।
मस्जिद जाये मौलवी, कोयल गाए गीत।।
2.
सातों दिन भगवान के, क्या मंगल क्या पीर।
जिस दिन सोये देर तक, भूखा रहे फकीर।।
3.
सपना झरना नींद का, जागी आँखें प्यास ।
पाना, खोना, खोजना साँसों का इतिहास।।
4.
लेके तन के नाप को, घूमे बस्ती गाँव।
हर चादर के घेर से, बाहर निकले पाँव।।
5.
ऊपर से गुड़िया हँसे, अंदर पोलमपोल।
गुड़िया से है प्यार तो, टाँकों को मत खोल।।
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शे’र
1.
अब खुशी है न कोई दर्द रुलाने वाला
हम ने अपना लिया हर रंग जमाने वाला
2.
इस अंधेरे में तो ठोकर ही उजाला देगी
रात जंगल में कोई शम्अ जलाने से रही
3.
कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता
4.
कोई हिंदू कोई मुस्लिम कोई ईसाई है
सब ने इंसान न बनने की कसम खाई है
5.
तुम से छूट कर भी तुम्हें भूलना आसान न था
तुम को ही याद किया तुम को भुलाने के लिए
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ग़ज़ल
1.
फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी…
हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी,
फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी,
सुबह से शाम तक बोझ ढ़ोता हुआ,
अपनी लाश का खुद मज़ार आदमी,
हर तरफ भागते दौड़ते रास्ते,
हर तरफ आदमी का शिकार आदमी,
रोज़ जीता हुआ रोज़ मरता हुआ,
हर नए दिन नया इंतज़ार आदमी,
जिन्दगी का मुक्कदर सफ़र दर सफ़र,
आखिरी सांस तक बेकरार आदमी
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2.
अजनबी शहर है ये दोस्त बनाते रहिए…
बात कम कीजे ज़ेहानत को छुपाए रहिए
अजनबी शहर है ये, दोस्त बनाए रहिए
दुश्मनी लाख सही, ख़त्म न कीजे रिश्ता
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाए रहिए
ये तो चेहरे की शबाहत हुई तक़दीर नहीं
इस पे कुछ रंग अभी और चढ़ाए रहिए
ग़म है आवारा अकेले में भटक जाता है
जिस जगह रहिए वहाँ मिलते मिलाते रहिए
कोई आवाज़ तो जंगल में दिखाए रस्ता
अपने घर के दर-ओ-दीवार सजाए रहिए
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साहित्यिक यात्रा :
काव्य संग्रह –
लफ़्ज़ों के फूल (पहला प्रकाशित संकलन)
मोर नाच
आँख और ख़्वाब के दरमियाँ
खोया हुआ सा कुछ
आँखों भर आकाश
सफ़र में धूप तो होगी
आत्मकथा –
दीवारों के बीच
दीवारों के बाहर
निदा फ़ाज़ली
संस्मरण –
मुलाक़ातें
सफ़र में धूप तो होगी
तमाशा मेरे आगे
संपादित पुस्तकें –
बशीर बद्र : नयी ग़ज़ल का एक नाम
जाँनिसार अख़्तर : एक जवान मौत
दाग़ देहलवी : ग़ज़ल का एक स्कूल
मुहम्मद अलवी : शब्दों का चित्रकार
जिगर मुरादाबादी : मुहब्बतों का शायर
प्रमुख पुरस्कार और सम्मान –
1998 साहित्य अकादमी पुरस्कार – काव्य संग्रह, ‘खोया हुआ सा कुछ’ के लिए
National Harmony Award for writing on communal harmony
2003 स्टार स्क्रीन पुरस्कार – श्रेष्टतम गीतकार – फ़िल्म ‘सुर के लिए
2003 बॉलीवुड मूवी पुरस्कार – श्रेष्टतम गीतकार – फ़िल्म सुर के गीत आ भी जा’ के लिए
मध्यप्रदेश सरकार का मीर तकी मीर पुरस्कार -आत्मकथा रुपी उपन्यास ‘दीवारों के बीच’ के लिए
मध्यप्रदेश सरकार का खुसरो पुरस्कार – उर्दू और हिन्दी साहित्य के लिए
महाराष्ट्र उर्दू अकादमी का श्रेष्ठतम कविता पुरस्कार – उर्दू साहित्य के लिए
बिहार उर्दू अकादमी पुरस्कार
उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी का पुरस्कार
हिन्दी उर्दू संगम पुरस्कार (लखनऊ) – उर्दू और हिन्दी साहित्य के लिए
पद्मश्री 2013
साभार: गूगल
– टीम हस्ताक्षर