मूल्याँकन
अमेरिका और 45 दिन: गुलों से भरी गलियों की गरिमा का गायन
– डाॅ. नितिन सेठी
मानव का जीवन एक यात्रा है। जन्म से लेकर अंत तक न जाने उसे कितनी यात्राएँ किन-किन रूपों में करनी पड़ती हैं। ये यात्राएँ सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक किसी भी रूप में हो सकती हैं। अलग-अलग परिवेश की सभ्यताएँ–सोच और समझ; आपस में मिलकर एक नया रंग पैदा करती हैं। यादों के खाँचों में जब ये रंग बिखरते हैं, कोई नया चेहरा-सा हमारे सामने बना जाते हैं और ज़रा सोचिये, जब यह यात्रा साहित्य के काम को लेकर की गई हो यानी कि किसी कवि सम्मलेन से सम्बंधित हो तब तो सोने पर सुहागा है। सोनरूपा विशाल हिन्दी पट्टी की प्रखर और प्रसिद्ध कवयित्रियों में से एक हैं। अपनी फूल जैसी नाज़ुक अहसास की ग़ज़लों और बहते निर्झर के निनाद जैसे गुनगुनाते गीतों के माध्यम से आपका नाम देश-विदेश की धरती तक फैला है। अनेक बड़े-बड़े कवि सम्मेलनों का आप एक जाना–माना चेहरा रही हैं। अपनी इस आभा की प्रदीप्ति आपने वर्ष 2018 में अमेरिका जाकर भी फैलाई। अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति, अमेरिका पिछले तीस वर्षों से वहाँ साहित्यिक आयोजन करवाती रही है। ‘अमेरिका और 45 दिन’ आपकी इसी सुन्दर साहित्यिक यात्रा के संस्मरणों का संग्रह है।
क़रीब 45 दिनों की यह यात्रा कवि सर्वेश अस्थाना, गौरव शर्मा और स्वयं सोनरूपा विशाल के कुल 24 कार्यक्रमों में सम्पन्न होती है। लेखिका ने अपना संस्मरण अमेरिका के टेक्सास राज्य के डेलस शहर से आरम्भ किया है। इसी क्रम में ह्यूसटन, डेटन, शिकागो, नियाग्रा, कोलंबस, वाशिगटन, पिट्सबर्ग, फिल्लडेलाफिया, फिनिक्स, न्यूयॉर्क जैसे स्थानों को अपनी यादों में संजोते हुए उन्हें लिपिबद्ध भी किया है। यहाँ उल्लेखनीय यह है कि केवल स्थानों का विवरण मात्र ही नहीं है बल्कि उस स्थान विशेष की सम्पूर्ण संस्कृति, रहन–सहन, लोगों की उदार सोच का भी वर्णन है। अमेरिका में बसे भारतवंशी भारत को ख़ूब ‘मिस’ करते हैं। प्रवासी जीवन जीते हुए भी वे अपनी जड़ों से जुड़े रहे हैं। अपने दैनिक रहन–सहन में वे अपनी ही रचाव–बसाव की दिनचर्या को अपनाये हुए हैं। अनेक कवि सम्मेलनों का विवरण प्रस्तुत पुस्तक देती है। हिन्दी भाषा और साहित्य को प्रवासी भारतीय तो पढ़ते–गुनते–सुनते हैं ही, साथ ही साथ अमेरिकावासी भी अपनी पूरी दिलचस्पी इसमें दर्शाते हैं। शिकागो जहाँ बहुमंजिला इमारतों का नगर है, वहीँ दिलवालों का भी नगर है। निःस्वार्थ–निश्चल-निष्पक्ष प्रकृति की सुंदर कृति नियाग्रा फॉल अपनी बूंदों की वेणु से एक नया काव्य संगीत पैदा कर देता है। मकानों से झाँकते हुए चेहरे सोनरूपा की इस साहित्यिक यात्रा को और सजीला बना देते हैं। ये चेहरे अपनेपन, प्रेम, समर्पण, देशभक्ति, अनुशासन के साथ-साथ अपनी सौजन्यता भी दर्शाते हैं।
सोनरूपा इस यात्रा वृतान्त को अपनी भावात्मकता की क़लम से लिखती हैं। अमेरिका के साथ–साथ कनाडा के टोरंटो और ओटावा के कवि सम्मेलनों का भी विवरण पुस्तक में है। लेखिका सामाजिक चेतना का वर्णन अनेक स्थानों पर करती हैं। प्राकृतिक सुषमा का सिलसिलेवार विवरण तो पुस्तक के प्रत्येक पृष्ठ पर ही मानो रंग-बिरंगे फूल खिला देता है। अमेरिका अनुशासन–समर्पण–फैशन का देश है लेकिन साथ ही साथ आन–बान–शान की धरती भी है। अपने घर आये अतिथियों का आदर सत्कार कैसे किया जाता है, सोनरूपा अनेक स्थानों पर इसे शब्दाचित करती हैं। क्षेत्रीय रूप में विभिन्न अमेरिकावासियों के व्यवहारों और रहन–सहन की सार्थक नब्ज़ लेखिका ने पकड़ी हैं। वरिष्ठ लेखिका सुधा ओम ढींगरा से हुई बातचीत वाला चैप्टर ख़ासा प्रभावित करता है। इसे पढ़कर अमेरिका को लेकर कई भ्रांतियाँ दूर होती हैं।
आप इस यात्रा संस्मरण को पढ़ते जाइये। ऐसा महसूस होगा कि सारा दृश्य हम अपनी आँखों से लाइव देख रहे हैं। शब्दों का चयन, उनकी अर्थवता, भाषा का प्रवाह, भावगत अभिव्यंजना और उस पर सुंदर अमेरिका के दृश्य– ये सब मिलकर साहित्य और यात्रा का एक ऐसा ‘कॉकटेल’ तैयार कर देते हैं कि फिर इसके मदमाते प्रभाव से बच पाना सम्भव नहीं होता। प्रत्येक पृष्ठ पर अपनी बात को सोनरूपा शेरों के माध्यम से कहती हैं। इससे भी इन वृतांतों का शैलीगत सौन्दर्य बढ़–सा गया है। ‘अमेरिका और 45 दिन’ अपनी साहित्यिक यात्राओं के सुन्दर–सजीले रास्तों में पाठक को भटकने नहीं देती बल्कि अमेरिका के लोगों का प्यार–सत्कार, इसकी प्राकृतिक सुन्दरता, इसकी भारत के प्रति रुचिता के साथ–साथ हिन्दी भाषा की सार्वभौमिक विश्वसमरसता की पावन भावना के भी दर्शन करवाती है। विशाल देश अमेरिका के सौन्दर्य का रूपांकन सोनरूपा विशाल ने सोने जैसे चमकते शब्दों में किया है। आगे उनके और भी ऐसे ही सुन्दर यात्रा वृतांत पढ़ने को मिलेगें, ऐसी आशा है। अपने भौतिक कलेवर की साज-सज्जा और चित्रांकन में भी पुस्तक प्रभावित करती है।
समीक्ष्य पुस्तक- अमेरिका और 45 दिन
विधा- यात्रा वृतान्त
लेखिका- सोनरूपा विशाल
प्रकाशक- हिन्दयुग्म, दिल्ली
मूल्य- 100/-
पृष्ठ- 120
– डाॅ. नितिन सेठी