अपनी परम्पराओं को सम्मान देते हुए समकालीन सृजन पर चर्चा करता विशेषांक
(हरियाणा साहित्य अकादमी की पत्रिका हरिगंधा का ग़ज़ल अंक)
– के. पी. अनमोल
हरियाणा साहित्य अकादमी की चर्चित पत्रिका ‘हरिगंधा’ का दिसंबर 2020 अंक, ग़ज़ल विधा पर केंद्रित है। इसका संपादन हमारे समय के वरिष्ठ ग़ज़लकार, कथाकार एवं आलोचक ज्ञानप्रकाश विवेक जी ने किया है। इस अंक में अपने छोटे-से संपादकीय में ज्ञानप्रकाश विवेक कुछ बड़े बिन्दुओं पर चर्चा करते हैं। वे नई सदी के नए समय को, शोर का समय कहते हुए इस समय में आत्मकेन्द्रित व संवेदनशील होते समाज में रचनाकारों के अधिक सचेत होने की बात कहते हैं। साथ ही वे नज़्म और ग़ज़ल में एक महत्वपूर्ण अंतर बताते हैं।
आगे अपने लेख में ज्ञानप्रकाश विवेक जी ग़ज़ल की परिभाषा कुछ इस तरह देते हैं-
“गूढ़ तथा सूक्ष्म विषयों को कम से कम तथा सादा शब्दों में काव्यात्मकता तथा शिल्पगत शर्तों को पूरा करती हुई रचना को ग़ज़ल कहा जा सकता है”।
अपने लेख में वे विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गयी ग़ज़ल की परिभाषाओं पर भी चिंतन करते हैं।
इस अंक का रोचक हिस्सा हिंदी के कुछ नामचीन साहित्यकारों के लेख हैं, जो ग़ज़ल के क्षेत्र से नहीं हैं। कमलेश्वर, धर्मवीर भारती और रवीन्द्र कालिया के ये लेख कौतुहल पैदा करते हैं। कमलेश्वर जहाँ अपने मित्र (दुष्यंत) को याद भर करते हैं, वहीं धर्मवीर भारती उस युग के साहित्यिक छद्म को सामने रखते हुए यह बताते हैं कि किस तरह दुष्यंत की ग़ज़लें ‘झूठे शब्दजाल के विराट आडंबर को पल भर में नक़ली और जाली साबित कर अपने को प्रतिष्ठित कर लेती हैं’। रवीन्द कालिया का लेख ‘उर्दू की बेहतरीन ग़ज़लें’ पुस्तक का उनका वक्तव्य है। इस लेख में वे एक महत्वपूर्ण बात कहते हैं- “बड़ा शायर उसी को माना गया है, जो बह्र, क़ाफ़िये और रदीफ़ के अनुशासन के भीतर रहकर सिर्फ भाषा के चमत्कार दिखाने में ही नहीं रम जाता बल्कि आम आदमी के संघर्षों, उम्मीदों, निराशाओं, सपनों को वाणी देता है।”
विमर्श किसी भी विधा के रचनाकारों तथा पाठकों के लिए बेहद ज़रूरी है। ये लेख अपने समय की महत्वपूर्ण रचनाओं तथा रचनाकारों की चर्चा तो करते हैं
उस समय में सृजनशील रचनाकारों को एक दिशा भी देते हैं, यह मेरा पिछले कुछ वर्षों का निजी अनुभव है।
इस अंक में ग़ज़ल और ख़ासकर हिंदी ग़ज़ल पर विमर्श करते हुए माधव कौशिक, हरेराम समीप, देवेन्द्र आर्य, डॉ. नितिन सेठी तथा विजय शर्मा के उल्लेखनीय लेख हैं। इनमें माधव कौशिक ‘हिंदी ग़ज़ल की जय यात्रा’ का वर्णन करते हैं तो हरेराम समीप ‘हिंदी ग़ज़ल की परंपरा’ को हमारे सामने रखते हैं। डॉ. नितिन सेठी का लेख ‘समकालीन हिंदी ग़ज़ल में समाज’ की उपस्थिति दर्ज करता है। तो देवेन्द्र आर्य अपने बेबाक अंदाज़ में बताते हैं कि हिदी ग़ज़ल ने अपनी पूर्ववर्ती भाषा की ग़ज़लों से ‘शिल्प लिया है, सोच नहीं’। ये सभी लेख निश्चित रूप से पाठक को समृद्ध करते हैं और हिंदी ग़ज़ल के विभिन्न पहलुओं को सामने रखते हैं।
अंक में ग़ज़लें दो खण्डों में दी गयी हैं। हिंदी ग़ज़ल खण्ड पर्याप्त विस्तृत है तो उर्दू ग़ज़ल खण्ड ‘अपनी जड़ों को सम्मान देता हुआ एक कोना’ कहा जा सकता है। हिंदी ग़ज़ल खण्ड में दुष्यंत कुमार, सूर्यभानु गुप्त, नार्वी, दरवेश भारती, विज्ञान व्रत, अनिरुद्ध सिन्हा, कमलेश भट्ट कमल, हस्तीमल हस्ती, हरेराम समीप जैसे प्रतिष्ठित नाम हैं, जिन्होंने हिंदी ग़ज़ल परिसर को अपनी उपस्थिति से समृद्ध कर उसे एक निश्चित स्वरूप और स्वभाव प्रदान किया है। साथ ही नयी पीढ़ी के कुछ ज़रूरी नाम भी द्विजेन्द्र द्विज, डॉ. भावना, गौतम राजऋषि, ए. एफ. नज़र, डॉ. राकेश जोशी, विवेक भटनागर आदि के नामों से शोभायमान हैं। कुछ युवा हिंदी ग़ज़लकार भी इस अंक में दिखाई देते हैं, जो अपनी तरह से हिंदी ग़ज़ल को नवीनता प्रदान करने में सृजनरत हैं। सरगम अग्रवाल, अनुज अब्र, सौरभ शेखर, प्रबुद्ध सौरभ, ख़ुर्शीद खैराड़ी, कालीचरण सिंह तथा नज़्म सुभाष इनमें उल्लेखनीय नाम हैं। युवा ग़ज़लकारों को अपने आलोचनात्मक कार्यों तथा संपादन में प्रकाशमान करना ज्ञानप्रकाश विवेक जी की एक विशेषता बनकर उभरता है।
उर्दू ग़ज़ल खण्ड में बशीर बद्र, फैज़ अहमद फैज़, निदा फ़ाज़ली, शहरयार, अहमद फ़राज़, नासिर काज़मी जैसे ज़रूरी नाम शामिल हैं।
यह अंक ‘हिंदी ग़ज़ल विशेषांक’ की कोई घोषणा न करते हुए भी हिंदी ग़ज़ल अंक बनकर उभरता है। इसका संयोजन, रचनाओं का चयन, ग़ज़ल के विस्तृत संसार के विभिन्न पहलुओं पर विमर्श; इसे एक उल्लेखनीय, संग्रहणीय तथा महत्वपूर्ण अंक बनाते हैं, इसके लिए अंक के अतिथि संपादक ज्ञानप्रकाश विवेक जी प्रशंसा और बधाई के हक़दार हैं। पत्रिका के मुख्य संपादक डॉ. चन्द्र त्रिखा इसलिए साधुवाद के पात्र हैं क्यूँकि एक प्रतिष्ठित पत्रिका द्वारा हिंदी ग़ज़ल को केंद्र में रखते हुए ग़ज़ल पर इस तरह का आयोजन करना; ग़ज़ल विधा और उसके चाहने वालों के लिए उपलब्धि है।
अंक मँगवाने के लिए ये नंबर हैं, जिन पर दिनेश जी अथवा लता जी से संपर्क किया जा सकता है-
0172-2565521 एवं 0172-2581807
– के. पी. अनमोल