उभरते स्वर
अपना ही नाम आज
अपना ही नाम आज, गुम कुछ किताबों में मिला
तन्हा सफर, खोये सितारों में मिला
भटकता रहा उजालों में, उजालों की तलाश में
आज खोया अपना ख्याल, तन्हा चौखट पे मिला
अपना ही नाम आज …
एक लम्बा सफर, यादों से किनारा कर दूर ले आया था
वो भी बनके तन्हा सफर, दूर किनारों पे मिला
हर रात से सुबह तक, था चंद पलों का फासला
पर इस सुबह का साथ भी, अरसा उम्र तमाम मिला
अपना ही नाम आज …
अब देखता हूँ, वक़्त की दूरियाँ, तन्हा सफर, मजबूरियाँ
है रास्ता, मंजिल भी है पर दूर लाया है सफर
कोई कहता रात थी, कोई कहता दिन इसे
वो सोच थी, ये सोच है और बीच में तन्हा सफर
उस शाम का सूरज भी, डूबा चौखट पे आज मिला
गुम हुआ इक नाम था, आज मुझसे आन मिला
अपना ही नाम मुझे …
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शिकायत
बड़ी शिकायत है उनको , के अब हम बात नहीं करते
धडकना दिल ने छोडा है, मगर हम याद नहीं करते
कभी मिल जाते थे उनसे हम, हो जाती थी कुछ बातें
कहाँ गई वो बातें अब तो, याद उनको नहीं करते
बड़ी शिकायत है उनको …
कभी बहते थे आँखों से, झुकी पलकों के साये से
नज़र अब भी कहाँ खाली, वहाँ हालात रहते हैं
कभी एक वो भी आलम था , बसा मंदिर था इस दिल में
खुदा के साथ रहते थे, खुदा से बात होती थी
खुदा तो अब भी है लेकिन इबादत हम नहीं करते
बड़ी शिकायत है उनको …
कैसे कहे ये उनसे हम, के अब तो रात रोती है
तन्हा उम्र है चौखट पे, ये कैसे रात होती है
खुदा का घर भी भुले हैं, कहाँ अब शाम होती है
हमें अब याद नहीं यादें, कि अब तो रात रोती है
हमें तुम माफ कर देना, के खुद में हम यों उलझे हैं
कभी कहते थे खुदसे हम, अब साँसों से ये कहते हैं
के मिले फुर्सत तो तू आना, अभी बस काम करने दे
कहाँ फुर्सत है मरने की, हमें बस काम करने दे
शिकायत सबको है लेकिन शिकायत साफ कर देना
हमें तुम माफ कर देना, अभी तुम माफ कर देना
के मेरी एक शाम भी होगी, कभी एक नाम भी होगा
दफन होंगे जहाँ पे हम , वहीं आराम भी होगा
खुदा के साथ भी होंगें, खुदा का नाम भी होगा
तुझे भी याद कर लेंगे, अभी बस काम करने दे
हमें बस काम करने दे, अभी बस काम करने दे ….
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इक ज़रा सी बात
साथ थी सबके मगर, कितनी तन्हा रात थी
जो कर गई थी फासले, वो इक ज़रा सी बात थी
जो कर गई थी फासले, वो इक ज़रा सी बात थी….
वो दूर थी या पास थी, नज़र मगर उदास थी
तन्हा हुई थी सोच भी, तन्हा अब तो याद थी
जो कर गई थी फासले, वो इक ज़रा सी बात थी
धडकनों का साथ भी, कब दूर दिल से हो गया
धडक रहा है तन्हा अब, खफा जो खुदसे हो गया
बेवफा हुआ है ये, या बेवफा वो रात थी
जो कर गई थी फासले, वो इक ज़रा सी बात थी
बोझ जिंदा लाश का, याद कफ़न सी साथ थी
उम्र तमाम कर गई, स्याह कैसी रात थी
अश्क़ तन्हा रह गए, तन्हा उम्र साथ थी
जो कर गई थी फासले, वो इक ज़रा सी बात थी
– प्रीति दवे