पत्र-पत्रिकाएँ
‘अनुगुंजन’ अपने ‘साहित्य-कला-संस्कृति’ के उपक्रम होने को सिद्ध करती है
– के. पी. अनमोल
इस श्रृंखला की अगली कड़ी में प्रस्तुत है, अनुकृति प्रकाशन, बरेली (उ.प्र.) से डॉ. लवलेश दत्त के सम्पादन में आने वाली साहित्य-कला-संस्कृति की त्रैमासिक पत्रिका ‘अनुगुंजन’। यह एक ऐसी लघु पत्रिका है, जिसमें साहित्य की कई विधाओं में स्तरीय व पठनीय सामग्री प्रकाशित होती है।
दरअस्ल इस पत्रिका के सम्पादक डॉ. लवलेश, स्वयं एक बहुत अच्छे कथाकार, गीतकार, कवि, ग़ज़लकार, प्रकाशक एवं फ़ोटोग्राफ़र हैं। इसीलिए इन्हें साहित्य और कला की बहुत बारीक समझ है। इसकी स्पष्ट झलक पत्रिका के प्रत्येक अंक में देखी जा सकती है। साथ ही इन्होंने विभिन्न विधाओं से जुड़े कुछ प्रतिष्ठित नामों को पत्रिका से जोड़ रखा है, जिनके अनुभव का लाभ भी पत्रिका को मिल रहा है।
‘अनुगुंजन’ ने 2018 में अपने तीसरे वर्ष में प्रवेश कर लिया है और इसके इस वर्ष के दो अंक भी प्रकाशित हो चुके हैं। इस बीच पत्रिका दो विशेषांक भी प्रकाशित कर चुकी है। इसका जुलाई-सितम्बर 2016 अंक ‘नवगीत अंक’ था तथा जुलाई-सितम्बर 2017 अंक महिला रचनाकारों पर केन्द्रित ‘नारी-शक्ति अंक’ था, ये दोनों ही विशेषांक संग्रहणीय रहे। अब जुलाई-सितम्बर 2018 का अंक ‘लघुकथा अंक’ रखे जाने की योजना है।
जन-मार्च 2018 अंक की बात की जाए तो इसमें ‘बाबू गुलाबराय के पत्र, शिवपूजन सहाय के नाम’ हैं, जो महत्वपूर्ण सामग्री कही जा सकती है। इसके अलावा डॉ. कमलेश उपन्या का शोधपरक आलेख ‘कवि जयशंकर प्रसाद और उनकी कविता’ भी प्रभावी है। अपने सम्पादकीय में डॉ. लवलेश ने साहित्य में कोरा यथार्थ चित्रण न कर, उसके साथ-साथ समस्याओं के समाधान भी प्रस्तुत करने का सार्थक सुझाव दिया है। ‘ग़ज़ल गुंजन’ में डॉ. दरवेश भारती, विज्ञान व्रत, मधुर नज़्मी जैसे स्थापित व नामवर ग़ज़लकारों के साथ युवा ग़ज़लकारों का अच्छा सामंजस्य दिखा। ‘काव्य-गुंजन’ में डॉ. विनय मिश्र, ओमप्रकाश अडिग एवं रमेश गौतम के गीतों ने प्रभावित किया।
अलवर (राजस्थान) की समर्थ रचनाकार मंजु अरुण, जिन्हें काल ने असमय अपना ग्रास बना लिया, की रचनाओं को समय-समय पर पत्रिका में प्रकाशित कर पाठकों तक पहुँचाने का सम्पादक का नेक विचार बहुत पसन्द आया। इस अंक में उन्होंने स्व. मंजु अरुण की एक कविता ‘खेत’ प्रकाशित की है, जो उनकी प्रतिभा तथा क्षमता से हमें अवगत कराती है। अन्त में बरेली के सुविख्यात चित्रकार श्याम दत्त ‘पवन’ जी को उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बारे में जानकारी देते संक्षिप्त आलेख के ज़रिये श्रद्धांजलि दी गयी है। यह आलेख संक्षिप्त होते हुए भी स्व. श्याम दत्त के बारे में विस्तार से जानकारी देता है। ‘नव गुंजन’ में प्रकाशित युवा रचनाकारों की रचनाओं में विशेष मिश्रा की कविता की लयात्मकता और कहन ने प्रभावित किया, उन्हें शुभकामनाएँ।
‘कथा गुंजन’ में प्रकाशित कथाएँ तथा ‘पैनी दृष्टि’ में शामिल समीक्षाएँ भी पठनीय हैं। पत्रिका में ‘अभी-अभी’ स्तम्भ में कई पत्रिकाओं की विस्तृत जानकारी के साथ उनके पते और मेल आई डी भी दी गयी हैं, यह स्तम्भ रचनाकारों के लिए बहुत उपयोगी है। साथ ही ‘गतिविधि’ स्तम्भ में साहित्यिक आयोजनों की सूचनाएँ भी दी गयी हैं। एक और ख़ास बात, यह कि इस अंक के आवरण में छायाकार अमित अग्रवाल जी का सुन्दर चित्र इस्तेमाल किया गया है और आवरण के पिछले पृष्ठ पर उनका विस्तृत परिचय दिया गया है।
स्तरीय साहित्य के साथ-साथ एक चित्रकार को श्रद्धांजलि, ‘कला, आध्यात्मिकता एवं समाज’ पर लेख तथा एक छायाकार से परिचय करवाता आवरण, यह स्पष्ट करते हैं कि पत्रिका ‘अनुगुंजन’ अपने ‘साहित्य-कला-संस्कृति’ के उपक्रम होने को सिद्ध करती है।
पत्रिका- अनुगुंजन
सम्पादक- डॉ. लवलेश दत्त
आवृति- त्रैमासिक
कार्यालयी पता-
‘शिवछाँह’ 165-ब, बुखारपुरा,
पुरानाशहर, बरेली (उ.प्र.)- 243005
मेल: sampadakanugunjan@gmail.com
मो.- 9412345679
– के. पी. अनमोल