अच्छा भी होता है
हम गोपाचल को बुंदेलखंड का प्रवेश द्वार बनाना चाहते हैं। – अजीत बरैया
ग्वालियर, भारत के हृदयप्रदेश, मध्यप्रदेश का एक प्रमुख नगर है। इसी ग्वालियर के किले के अंचल में स्थित गोपाचल पर्वत न केवल ऐतिहासिक एवं धार्मिक दृष्टिकोण से श्रेष्ठतम स्थल है बल्कि पुरातत्त्व की दृष्टि से भी अनमोल धरोहर है जिसका संरक्षण नितांत आवश्यक है।
गोपाचल का अद्वितीय शिल्प-सौंदर्य हमारी सांस्कृतिक विरासत और ज्ञान की उत्कृष्ट गाथा कहता है। यही कारण है कि इस रमणीक स्थल पर क़दम रखते ही ह्रदय भाव-विभोर हो उठता है तथा एक असीम शांति और परम सुख का गहन आभास होता है।
कहते हैं पर्वत को तराशकर बनी इन अप्रतिम मूर्तियों का निर्माण तोमर वंश के कार्यकाल में हुआ था। यहाँ स्थित भगवान पार्श्वनाथ की बयालीस फुट ऊँची एवं तीस फुट चौड़ी पद्मासन प्रतिमा विश्व भर में अनूठी है। यद्यपि मुग़ल आततायियों के निर्दयतापूर्ण आक्रमण ने इस अमूल्य विरासत को क्षति पहुँचाने और मूर्तियों को खंडित करने में कोई क़सर नहीं छोड़ी परन्तु फ़िर भी वे इसकी महत्ता और श्रेष्ठता को कम करने में सफ़ल नहीं हो सके। किले की दीवारों पर उत्कीर्ण मूर्तियों की भव्यता तथा कलात्मकता देखते ही बनती है। प्राचीन एवं समृद्ध कला वैभव की प्रतिमान इन अनूठी मूर्तियों की संख्या पंद्रह सौ के आसपास है। इस अमूल्य धरोहर के संरक्षण और रखरखाव के लिए पुरातत्त्व विभाग और सरकार का ध्यान अपेक्षित है जिससे कि भारतीय संस्कृति और शिल्पकारी की इस अनूठी कला और अद्वितीय स्थली की जानकारी जन-जन को हो, साथ ही पर्यटन को भी बढ़ावा मिले। दुर्भाग्य से यह हिस्सा अब तक उपेक्षित ही रहा है।
बीते दशकों में इस अत्यन्त प्राचीन एवं पावन दर्शनीय अतिशय क्षेत्र का सौंदर्यीकरण करने, इसे व्यवस्थित एवं पर्यटकों के लिए सुविधायुक्त बनाने में श्री दिगंबर जैन गोपाचल पर्वत न्यास का कार्य अत्यधिक सराहनीय एवं प्रशंसा योग्य रहा है। यहाँ के मुख्य ट्रस्टी श्री अजीत बरैया जी ने 1986 से अपना जीवन गोपाचल एवं उसके विकास को ही समर्पित कर दिया है। उनकी कर्मठता, लगन और अथक परिश्रम देखते ही बनता है। गोपाचल उनके हृदय के इतना निकट है कि इसके बारे में चर्चा करते हुए वे भाव-विह्वल हो उठते हैं। उन्होंने न केवल इस अतिशय क्षेत्र के संरक्षण में बल्कि आसपास के पर्यावरण को सुंदर बनाने में भी अभूतपूर्व योगदान दिया है। तीन दशकों से उनके इस अनवरत एवं निस्वार्थ सेवाभाव को देख हाथ स्वत: ही नमन को उठ जाते हैं। हमारे समाज के लिए यह बेहद आवश्यक है कि ऐसे आशावादी, परिवर्तन के लिए स्वयं को झोंकने को तैयार, हर मुश्किल से पार पाने को संघर्षरत, सकारात्मक व्यक्तित्त्व के बारे में जाना जाए एवं उनसे प्रेरणा, मार्गदर्शन प्राप्त किया जाए। कुछ समय पूर्व मुझे श्री अजीत बरैया जी से बातचीत का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उनसे इस मिशन, इससे जुड़ी बाधाएँ, लोगों का सहयोग एवं भविष्य की योजनाओं के बारे में विस्तृत चर्चा भी हुई। स्वभाव से बेहद शांत, विनम्र एवं मृदुभाषी बरैया जी के साथ हुई बातचीत के कुछ अंश, आप पाठकों के लिए –
प्रीति ‘अज्ञात’ – प्रणाम, बरैया जी। सर्वप्रथम तो आपको बधाई देने के साथ-साथ मैं गोपाचल से आपके जुड़ने की कहानी जानना चाहूँगी।
अजीत बरैया – मेरी कहानी सामान्य से थोड़ी अलग है। मेरा जन्म 1957 में ग्वालियर में हुआ। ग्रेजुएशन अधूरा ही रहा और फ़िर इमर्जेन्सी के समय थोड़ी पारिवारिक उलझनें रहीं। सामाजिक क्षेत्र में मेरी रूचि प्रारम्भ से ही थी। कुछ समय अख़बार के हॉकर के रूप में भी नौकरी की। गोपाचल की तरफ़ भी आना-जाना हुआ करता था एवं मैं वहाँ के कार्यों को भी पूर्ण रूचि के साथ करता था। रुझान और प्रतिभा देखकर लोगों ने गोपाचल ट्रस्ट का ट्रस्टी बना दिया।
एक दिन सेक्रेटरी ने इस्तीफ़ा दे दिया। मीटिंग में तय नहीं हो पा रहा था कि अगला सेक्रेटरी किसे चुना जाए। संयोगवश मैं वहाँ से निकल रहा था और उन्होंने मुझे बना दिया। मैं एकदम से तैयार नहीं था। मुझे अपनी संस्था से अनुमति भी लेनी थी। अगले दिन ज्ञानचंद जी (अध्यक्ष) ने मेरी बात नारायण कृष्ण शेजवलकर जी (जो उस समय के सांसद थे) से की।
अगले दिन जब कार्यालय पहुंचा, तो मेरे बॉस ने “आइये, सेक्रेटरी साब” कहकर मेरा स्वागत किया। बाद में भी उन्होंने मदद की।
प्रीति ‘अज्ञात’ – परिवार? क्या वे इस निर्णय से संतुष्ट थे?
अजीत बरैया – जब १०वीं में था तब रुझान न होने के बाद भी मेरी शादी करवा दी गई। ये 72 की बात थी. परिवार वालों की नज़र में, मैं हमेशा निकम्मा रहा। पापा ने एक मिल में नौकरी लगवा दी थी, उससे वे संतुष्ट थे।
प्रीति ‘अज्ञात’ – गोपाचल क्षेत्र के विकास कार्य में किन- किन लोगों का उल्लेखनीय सहयोग था? सरकार, सामाजिक संस्थाओं ने कितनी सहायता की?
अजीत बरैया – मुझे याद है कि प्रारंभ में मेरे गोपाचल से जुड़ने पर, अन्य धार्मिक, सामाजिक क्षेत्र में काम करने वालों को मेरे काम से बहुत पीड़ा हुई। जबकि तब गोपाचल उपेक्षित था। मेरा मज़ाक भी बनता था। उस समय पटवा जी मुख्यमंत्री थे, उनका स्नेह था मुझ पर। जब वे मेरे साथ आये, तब यहाँ पैर रखने की भी जगह नहीं थी, वो बिगड़े कि “कहाँ ले आया मुझे।” लेकिन बाद में उन्होंने बहुत मदद की। कुशाभाऊ ठाकरे जी ने उद्घाटन किया था। 92-93 में जर्मनी से राजदूत जॉर्ज विश, राजमाता जी से मिलने आये थे। वे 10 बजे आये थे और 2.30 बजे तक यहाँ रहे। यशोधरा जी भी इस पर्वत के दर्शन कर चुकीं। आडवाणी जी, सुषमा जी भी आ चुके हैं।
इस समय संस्था में 21 लोग हैं। अध्यक्ष श्री श्यामलाल जी विजयवर्गीय का पूर्ण सहयोग है। समाज के लोगों ने भी समय-समय पर उचित मार्गदर्शन दिया है।
प्रीति ‘अज्ञात’ – जी, बहुत बढ़िया। पर जब भी कहीं कुछ अच्छा कार्य होता है तो अड़चनें भी साथ आती हैं। इस सन्दर्भ में कोई संस्मरण, अगर साझा करना चाहें!
अजीत बरैया – शुरू-शुरू में पास की बस्ती वाले परेशान करते थे। वे शायद समझ नहीं पा रहे थे। फिर लोकल NGO ने बस्ती में सर्वे किया। हमने 2 करोड़ का सरकारी योजना का काम कराया, पक्की रोड, पानी की लाइन, बिजली के खम्बे लगवाए। बस्ती वालों का विश्वास जीता। अव्यवस्थित बस्ती को व्यवस्थित किया। पर उनका अतिक्रमण बढ़ता जा रहा था। सरकार से 5 लाख की मदद मिली, फिर कलेक्टर से बात करके, तीन फुट ऊँची बाउंड्री वॉल बनवाई। ग्वालियर विकास प्राधिकरण की मदद से पीने का पानी आया। विमल जी की मदद से बिजली आई। आसिफ इब्राहीम जी एस.पी.थे उस समय। उन्होंने बहुत मदद की।
एक किस्सा मुझे याद आ रहा है। प्रारंभिक दिनों में इन छब्बीस गुफाओं में गुंडे, असामाजिक तत्त्व रहते थे जो अपराध कर यहाँ छुपते थे। यह स्थान उनकी शरणस्थली थी। आसिफ जी रात १२ से २ के बीच विजिट करके इन्हें पकड़ते थे। यहाँ ताश के पत्ते, शराब की बोतलें मिलती थीं। आम नागरिकों के साथ लूटपाट भी होती थी। एक रात देखा कि कोई वहां मूर्तियों के स्थान को टॉयलेट की तरह इस्तेमाल कर रहा था। उससे हाथापाई हुई और उस दिन पैंतीस लोग हिरासत में लिए गए। इस घटना के बाद से अपराधी वहाँ से हटने लगे।
प्रीति ‘अज्ञात’ – गोपाचल में आपकी रुचि का कारण धार्मिक आस्था है या कुछ और? यहाँ आपको सबसे अधिक क्या आकर्षित करता है?
अजीत बरैया – मेरा जुड़ाव धार्मिकता, राष्ट्रवाद के कारण हुआ। हर जगह मदद को जाता रहा। जैन तीर्थंकरों की ऐसी प्रतिमाएं मैंने कहीं नहीं देखीं। यहाँ भगवान् पार्श्वनाथ की पद्मासन प्रतिमा जो किले की प्राचीर को काटकर बनाई गई,अद्वितीय है। ऐसा बारीक और सुंदर काम कहीं देखने को नहीं मिलता। बाबर ने इन प्रतिमाओं को खंडित करने का आदेश दिया था। इसका उल्लेख बाबरनामा में भी मिलता था। इन प्रतिमाओं की बहुत अनदेखी की गई थी और अब संरक्षण का समय आ चुका था।
प्रीति ‘अज्ञात’ – यहाँ के संरक्षण हेतु आपके द्वारा किये गए अभूतपूर्व प्रयास निश्चित ही प्रशंसनीय हैं। क्या आप विस्तारपूर्वक उनकी जानकारी देंगे?
अजीत बरैया – जी, अवश्य। यहाँ दो -ढाई किलोमीटर के इलाके में वाटर लेवल कम था तो ड्रेनेज बनाए। वाटर हार्वेस्टिंग भी की।
पहले पर्वत पर कच्चे, मुश्किल भरे रास्ते से जाना हो पाता था, अब आरामदेह सीढ़ियाँ और सुरक्षा हेतु रेलिंग भी लगे हुए हैं।
मूर्तियों के सामने की जगह को पक्का कर दिया गया है , जिससे गुफा के दर्शन में असुविधा न हो।
प्रकाश एवं पेयजल की समुचित व्यवस्था है।
भूमि क्षरण को रोकने के लिए विभिन्न प्रयास किये गए हैं
कार्यालय एवं स्वागत कक्ष है। पर्यटकों के ठहरने का इंतज़ाम तो नहीं पर विश्राम- स्थल उपलब्ध है।
तीन गेट और एक बड़ी बाउंड्री वॉल है। मुख्य द्वार डी.डी. मॉल की तरफ से है।
500 कारों की पार्किंग की भी व्यवस्था है।
प्रीति ‘अज्ञात’ – यहाँ मैंने कई तरह की वनस्पति तथा पक्षी भी देखे हैं। आप उनकी सूची क्यों नहीं लगाते? इससे पर्यटकों का और भी ध्यान आकृष्ट होगा।
अजीत बरैया – ऐसा जान-बूझकर ही किया गया है। यहाँ आम, अनार, शहतूत, बेर, अमरुद और भी कई फलदार वृक्ष हैं, जिनकी संख्या पाँच सौ के आसपास होगी। औषधीय पौधे भी हैं। नाम बताने पर ये सब गायब होने लगेंगे। फल हमारे पक्षियों के लिए हैं। माली, सफाई एवं अन्य व्यवस्था के लिए स्टाफ 35 लोगों का है जो कि पूरी लगन और निष्ठा से इन सबका ध्यान रखते हैं।
प्रीति ‘अज्ञात’ – गोपाचल ‘नेशनल हेरिटेज’ की सूची में है? ,यदि नहीं तो इस दिशा में क्या प्रयास चल रहे हैं?
अजीत बरैया – नहीं, अब भी किले के चारों और अतिक्रमण के कारण यह नेशनल हेरिटेज में न आ सका। लेकिन मैं इस स्थान को स्वयं या हम सब भारतीयों के द्वारा संरक्षित करके बतायेंगे।
प्रीति ‘अज्ञात’ – क्या यह सिर्फ़ जैन धर्म के अनुयायियों के लिए है या सभी धर्मों के लोगों का समान रूप से स्वागत होता है?
अजीत बरैया – सबका स्वागत है। हर रविवार यहाँ हर धर्म के 5000 से अधिक लोग आते हैं, कुछ विजिट, कुछ दर्शन हेतु। यह भारत की सांस्कृतिक धरोहर है अत: धूम्रपान वर्जित है। असामाजिक गतिविधियां नहीं हो सकतीं।
प्रीति ‘अज्ञात’ – 1986 का गोपाचल तब और अब 2017 में कितना फ़र्क़ है? क्या आप अपने प्रयासों से संतुष्ट हैं या कहीं कोई मलाल भी शेष रह गया है?
अजीत बरैया – काम तो बहुत हुआ है पर अभी भी मंशा के अनुरूप नहीं। वृद्ध सहज चल सकें, उनके लिए व्यवस्था चाहिए। लिफ्ट या अन्य कोई उपाय। देखा जाए तो अभी केवल ग्राउंड बना है। उससे आशाएं जुड़ गई हैं। यात्रियों के ठहरने हेतु कमरे बन जाएँ तो बेहतर हो! कुछ प्रतिमाओं का जीर्णोद्धार किया जाना है।
हम लोग यहाँ के वातावरण को गुलाब, रजनीगंधा, मोगरा इत्यादि सुगन्धित पौधों से इतना सुगन्धित करना चाहते हैं कि जब कोई यहाँ से गुजरे तो पता चले कि गोपाचल आ गया!
हम इसे बुंदेलखंड का प्रवेश द्वार बनाना चाहते हैं। लोग आएँ और महकती यादें लेकर जाएँ। संसाधन बढ़ें और पर्यटन को बढ़ावा मिले।
प्रीति ‘अज्ञात’ – आपके इस नेक काम में मेरी शुभकामनाएँ एवं सहयोग सदैव रहेगा। आशा है, इस चर्चा को पढ़कर कई लोग समाज एवं पर्यावरण के लिए सकारात्मक कार्य करने को प्रेरित होंगे। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!
अजीत बरैया – जी, अगर इस सब को पढ़कर एक-दो इंसान की सोच में भी बदलाव आए, तो मैं स्वयं को धन्य मानूंगा। आपका हार्दिक धन्यवाद!
– प्रीति अज्ञात