मूल्याँकन
अंतहीन तलाश
– डॉ. नितिन सेठी
करुणा पाण्डे वर्तमान समय की लेखिकाओ में एक सुपरिचित नाम है। अपने प्रथम उपन्यास ‘यथार्थ की चादर’ में उन्होंने बुजुर्गो के जीवन के यथार्थ को जिस प्रकार पाठकों के सामने लाकर रखा, कई अर्थो में यह महत्वपूर्ण है। अपना दूसरा प्रकाशित उपन्यास ‘अंतहीन तलाश’ उन्होंने नारी मन के मनोविज्ञान पर केन्द्रित किया है। भूमंडलीकरण और उदारीकरण के इस तेज़ी से बदलते हुए दौर में स्त्रियों को पहले से अधिक स्वतंत्रता मिली है। अब वे अपनी ज़िन्दगी ख़ुद ही जीना चाहती हैं। आज स्त्री अपनी राहें ख़ुद चुनना जानती है। आत्मनिर्भरता को सामने रखकर अपने कोमल कंधों पर बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ स्त्री ने उठायी हैं। प्रबल और अदम्य साहस ने उन्हें सफलताओं और सम्मान का अधिकारी बना दिया है। नेम फेम के इस गेम में आईडेंटिटी पाने का प्रयास और अपनी शक्ति पर विश्वास करते हुए स्त्री आज भी अपने अस्तित्व की तलाश में है। कैसी तलाश है ये जो आज भी ‘अंतहीन तलाश’ ही बनी हुई है!
शेक्सपियर का कथन है- ‘प्रेम आँखों से नही वरन् मन से देखता है’। उपन्यास ‘अन्तहीन–तलाश’ के पात्र भी कहीं इस कसौटी पर टकराते हैं। दो मुख्य नारी पात्र दीप्ति और नीना प्रेम की तलाश में चलते दिखाई देते हैं। अंतर बस इतना-सा है कि दीप्ति की तलाश सार्थकथा में बदल जाती है। जबकि नीना की तलाश अंतहीन ही बनकर रह जाती है। नीना के जीवन में समीर, रोहन, विक्रम, अमर जैसे पात्र आते रहे, नीना के निष्काम प्रेम को छलते रहे, अकेलेपन की शिकार नीना प्रेम के पर्दों में ख़ुद को पागल बनाती रही। मगर फिर नीना को अपने ऑफिस में साथ काम करने वाले सिद्धार्थ की दोस्ती भाने लगी है। दीप्ति, जिसके जीवन में भी कभी प्रेम के दीपक अपने उजाले फैला चुके हैं। आज अपनी गृहस्थी में ख़ुशहाल है। मगर प्रेम के पतंगे उसे अपने अतीत की राहों पर मंडराते महसूस होते रहे हैं। नीना सिद्धार्थ से शादी करने की सूचना दीप्ति को देती है। नीना सिद्धार्थ से दस वर्ष बड़ी है। लेकिन सच है- प्यार अंधा होता है। प्रेम में नीना जीवन के किन अंधेरे रास्तो पर बढ़ रही है। ख़ुद उसे भी नहीं पता। कहानी आगे बढती है। दीप्ति के पुराने प्रेम दीपक का पुनः आगमन दीप्ति के जीवन में होता है। आज दीपक के घर सभी लोग खाने के बहाने एक साथ बैठे हैं। पुराने गुज़ारे पलों की स्मृतियाँ बातों–बातो में सामने आ रही हैं। मगर वक्त प्यार का बहुत बड़ा इम्तिहान लेता है। स्त्री बाहर से चाहे जितनी भी मजबूत दिखाई दे, करुणा का अजस्र प्रवाह उसके भीतर सदैव ही रहता है। नीना जैसी तुनकमिज़ाज लड़की सिद्धार्थ से भी रिश्ता निभा पाने में असमर्थ रहती है। अंतहीन प्रेम की अंतहीन तलाश करते–करते वह आज मौत के आगोश में सो चुकी है। नीना का आखिरी पत्र पढकर सबकी आँखें नम हो जाती हैं। यहाँ महसूस होता है कि नीना को कोई समझ ही नहीं सका।
सामान्य रूप से देखने पर उपन्यास की कथावस्तु कहीं न कहीं हमें अपने आसपास की ही महसूस होता है। अधूरा प्रेम किस तरह पूरे जीवन को कचोटता है, यहाँ दृष्टव्य है। नीना जिसने ज़िन्दगी का एक–एक क्षण भरपूर कशिश से जीना चाहा है, आज प्रेम की तलाश में जीवन से ही हाथ धो बैठी है। प्रेम के कतरे निचुड़–निचुड़कर सभी पात्रो के जीवन को भिगोते हैं। परन्तु लेखिका ने यहाँ सबकी पिपासा का प्रस्तुतीकरण अलग–अलग ढंग से किया है। और यहीं पर करुणा पाण्डे की क़लम अपने पात्रों के अस्तित्वबोध की विशिष्ट पहचान करवाती है। प्रेम के लिये विश्वास की अनिवार्यता है। विश्वास के अभाव में सम्बन्ध मुर्दा हो जाते हैं। नीना का स्वाभिमान उसे अंतिम साँस तक अपराधबोध से ग्रसित रखता है। एक ऐसा अपराधबोध, जो ‘अंतहीन तलाश’ शीर्षक को सार्थक कर जाता है। लेखिका ने प्रेम सम्बन्धो को, प्रेम के अन्तर्द्वद्वों को और प्रेम नगर के बाशिंदों को अपनी ही नज़र से देखा है और उपन्यास के रूप में इसकी प्रस्तुति की है। पुरुष पात्र दीपक के विचार इस संदर्भ में महत्वपूर्ण हैं- “प्यार एक अहसास है, लक्ष्य नहीं। मार्ग हैं, गंतव्य नहीं। प्रेम और श्रद्धा जीवन को सार्थक बनाते हैं।”
प्रस्तुत उपन्यास इस अर्थ में भी महत्वपूर्ण है कि यहाँ प्रेम का रूप सात्विक है। यहाँ विश्वासघात नहीं है, वरन् विश्वास की पराकाष्ठा है। द्वेष-घृणा नही है, वरन् सर्मपण की सरिता है। नीना के पात्रों में ये विचार इस बात को प्रमाणित करते हैं। एक उदाहरण देखिये-
“तुम्हें छोड़ना मेरे लिए बहुत मुश्किल है। अगर तुम मुझसे सख्ती करते तो तुम्हें छोड़ना आसान हो जाता। तुम्हारा असहनीय व्यवहार होता तो तुमसे घृणा हो जाती। पर जब कोई सज्जन हो, प्यार का व्यवहार करे, हर ग़लती को स्वीकार करके हँसता रहे तो उसका दिल दुखाने में कठिनाई होती है।” दीप्ति भी अपने अस्तित्व में प्रेम का निरूपण करती है। यह प्रेम जितना सात्विक और स्पष्ट है, उतना ही ठहरा और छिपा-छिपा भी है। अपनी गृहस्थी में व्यस्त दीप्ति की सोच और समझ पाठकों को बरबस ही अपनी ओर खींच लेती है।
लेखिका ने इस पात्र का चयन बहुत ही सोच समझकर किया है। आदर्शवादी चरित्र के रूप में दीप्ति का आगमन बहुत सारी समस्याएँ सुलझाता है। मनोवैज्ञानिकता की कसौटी पर जहाँ दीप्ति त्याग, समर्पण, सहानुभूति, सहयोग जैसे गुणों का मूल्य समझती है, वहीं नीना इन सब बातों को केवल एक विचार समझकर इनको महत्वहीन कर देती है। पुरुष पात्रों में दीप्ति के पति राजेश अभिजात्य गुणों से संपन्न हैं। समझदारी के साथ सहृदयता उनके व्यक्तित्व में चार चाँद लगा देती है। लेखिका ने अन्य पात्रों को भी यथास्थान रखा है। सिद्धार्थ के भावुक रूप को कई स्थानों पर देखा जा सकता है। कहीं न कहीं ये सभी पात्र हमें अपने आसपास के परिवेश के ही लगते हैं। मानवीय संवेदनाएँ हर एक पात्र की विशेषता है।
प्रस्तुत उपन्यास में अनेक स्थानों में बड़े ही सांकेतिक और अर्थपूर्ण कथनों को पिरोया गया है। लेखिका का जीवन के प्रति दर्शन और दृष्टिकोण यहाँ जीवन्तता के साथ उभरा है। कथनों के द्वारा पात्र का सम्पूर्ण जीवन खुल-सा गया है। वर्तमान समय में सामान्य बोलचाल में हिन्दी –अंग्रेजी-उर्दू के शब्द घुल-मिल से गये हैं। इस उपन्यास में भी प्रवाहमयता की दृष्टि से ऐसा ही है। नीना के शब्द देखिये–
“देख, अब मुझे लगता है कि मेरा एक मधुरतम भविष्य होगा। एक बार सैटिलमेंट हो गया तो सब तरफ सुख व संतुष्टि ही फैलेगी। मैं ठीक कह रही हूँ न यार?” दीप्ति की आत्मीयता और दार्शनिकता, नीना का एकाकीपन और बिंदासपन, सिद्धार्थ की भावुकता और असहायपन, दीपक की विद्वता और संस्कार, संवादों के माध्यम से ही प्रकट होते हैं। पात्रों के व्यक्तित्व का सजीव चित्रण कर पात्रों में करुणा जी पूर्णतया सफल रही हैं। लेखिका ने प्रकृति के अनुराग अंचल का अनेक स्थानों पर मनोरम वर्णन किया है। यहाँ प्रकृति मानो सहचरी बनकर पात्रों के साथ चली है। दीप्ति का प्रकृति से तादात्म्य कितना रोमांचक बन पड़ा है, “आधी रात बीत गयी। मैं बाहर छत पर खड़ी हूँ। आकाश का हर तारा मेरे से अनंत प्रश्न कर रहा है।” इस तरह का वर्णन और प्रकृति से संवाद और प्राकृतिक मुखर परिवेश उपन्यास का प्राणतत्व है। महानगरीय सभ्यता को दर्शाता वातावरण उपन्यास की कथावस्तु के पूर्णतया अनुकूल है। मानवीय संवेदना का साहचर्य वातावरण के सौन्दर्य में अभिवृद्धि करता है।
मुहावरेदार भाषा भी ‘अंतहीन तलाश’ का एक सबल पक्ष है। अनेक वाक्य सूक्तियों की तरह संयोजित किये गये हैं। “अतीत कैसा भी हो पर वह अनुभवों की खान होता है”, “व्यक्ति को आदर्श शब्दों से नहीं वरन् आचरण से सिखाना चाहिए” जैसे वाक्य प्रेरक बन गये हैं। लेखिका का विशद् जीवन अनुभव यहाँ दर्शनीय है। अनेक स्थानों पर प्रसंगों के लिए पूर्व घटनाक्रम बताने के लिए दीप्ति के द्वारा ‘फ्लैश बैक’ शैली का प्रयोग भी उल्लेखनीय है। उपन्यास का आरम्भ भी लेखिका बाईस वर्ष पुराने घटनाक्रम से करती हैं, जो उपन्यास के अंत तक सार्थकता से चलता है। वैसे समग्रत: पूरा उपन्यास मनोविश्लेषणात्मक शैली में लिखा गया है। प्रेम की उदात्त प्रकृति और समर्पण की सच्ची शक्ति प्रस्तुत उपन्यास का केन्द्रीय भाव है। प्रेम त्याग और समर्पण माँगता है। समाज के अतीत वर्तमान, भविष्य; प्रेम पर ही टिके हैं। प्रेम समस्या भले ही दिखाई दे, परन्तु वास्तविक अर्थों में प्रेम एक समाधान ही होता है। और सच भी है, प्रेम की तलाश, तलाश ही रहती है; एक ‘अंतहीन तलाश’।
– डाॅ. नितिन सेठी