देशावर
अंतस का पर्यावरण
है प्रदूषण आचरण में
दोष दें पर्यावरण को
प्रीति का गिरता जलस्तर
कामना के कुएं सूखे
शुष्क शोणित उष्ण मरु सम
आँख में हैं भाव रूखे
मलिनता मस्तिष्क में रख
इत्र से धोएं चरण को
है प्रदूषण आचरण में
दोष दें पर्यावरण को
घुला नीयत मे धुआं
निष्ठा नियम में धुंध छाए
मैल है मन में, निकासी
द्वार सारे बंद पाए
दाग दामन के छुपाते
ओढ़ झूठे आवरण को
है प्रदूषण आचरण में
दोष दें पर्यावरण को
वृक्ष व्यवहारों के काटें
खेत रिश्तों के जलाए
पराबैंगनी किरण छल की
ग्रहण शुचिता को लगाए
दृष्टि दूषित, उग्रता उन्मुख है
उर के अधिग्रहण को
है प्रदूषण आचरण में
दोष दें पर्यावरण को
बीज संस्कारों के डालें
सत्य की क्यारी बनाकर
सभ्यता को करें उर्वर
ज्ञान की गंगा बहाकर
प्रेम की पावन पवन तब
पोषेगी अंतःकरण को
आचरण मनु का करेगा
शुद्धतम पर्यावरण को
– राजीव रत्न पाराशर