उभरते स्वर
अंतर्मन का तूफान
कभी तो वो तूफान उठेगा
मेरे अंतर्मन में,
जो बहा ले जायेगा अपने साथ
हर विरोधाभास
और बचेगा सिर्फ विश्वास
खत्म हो जाएगा हर दोहराव
और सिर्फ रह जायेगा एक ही पड़ाव
फिर ये हर राह की भटकन न होगी
सिर्फ एक राह ही मंजिल तक होगी
कभी तो वो शीतल चाँदनी फैलेगी
मेरे अंदर के गगन में,
जो भर देगी मन को असीम आनन्द में
फिर न कोई उन्माद होगा
बस अनाहत का नाद होगा
अब बस इंतजार है मुझे
उस तूफान का
जो हर लहर के साथ एक उम्मीद
दे जाता है
और दे जाता है इंतज़ार, इंतज़ार और इंतजार
– रुचिता नीमा
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