बाल-वाटिका
अंतर्ध्वनि
मै इन्सान हूँ
कितना तुच्छ प्राणी हूँ मैं
ये जान कर भी कि एक न एक दिन भस्म हो जाऊंगा,
ईर्ष्या की आग में जलता रहता हूँ
यह जान कर भी कि एक न एक दिन
किनारे पर खुद को धूल में लिपटा पाऊंगा,
अभिमान के सागर में बहता चला जाता हूँ
यह जान कर भी कि एक न एक दिन मारा जाऊंगा,
घमंड के रथ पर सवार ,
दिखावे की रण भूमि में युद्ध करने चला जाता हूँ
अभिमान,ईर्ष्या, अपेक्षा आदि के पहाड पर चढ़ता रहता हूँ,
परंतु सत्य और साधना,अहिंसा और अच्छाई के शिखर पर
पहुँचने के प्रयास ही नहीं करता हूँ
अपने अंदर के परमतत्व को पहचान ही नहीं पाता
जबकि रोम- रोम में,कण- कण में
वह ही समाहित है
लेकिन में हार नहीं मानूँगा
चलता रहूंगा अच्छाई की राह पर
कभी न कभी तो पहुंच ही जाऊँगा उस परम आनंद के शिखर पर,
पा ही लूंगा में अपने अंतर में बसे उस परमात्मा को।
– सिया पटेल