मार्च 2015
अंक - 1 | कुल अंक - 67
प्रज्ञा प्रकाशन, सांचोर द्वारा प्रकाशित
प्रधान संपादक : के.पी. 'अनमोल'
संस्थापक एवं संपादक: प्रीति 'अज्ञात'
तकनीकी संपादक : मोहम्मद इमरान खान
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अप्रैल माह के लिये आमंत्रण
अप्रैल माह के लिये परिचर्चा का विषय-
'अप्रैल फूल' भारतीय संस्कृति में कितना प्रासंगिक?
आप अपने विचार 20 मार्च तक पत्रिका की मेल आई डी
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पर संक्षिप्त परिचय व तस्वीर के साथ भेज सकते हैं
।
- प्रीति अज्ञात
रचनाकार परिचय
प्रीति अज्ञात
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हस्ताक्षर (67)
समय की दहलीज़ पर... दस्तक !
'समय' की कमी, कहीं भावनाओं का अवरोहण तो नहीं ?
उम्मीद की लौ
दोपहर की धूप में........!
'मृत्यु'अब एक समाचार भर है!
स्वतंत्रता.....महसूस क्यों नही होती?
हड़ताल, हिंसा और हिन्दुस्तान के दुरूह वातावरण में खुद को खोजती हिन्दी
आह.…मेरे सपनों का भारत!
कुछ तो लोग कहेंगे..!
जो जितना झुकता गया, उतना टूटता गया!
मोहब्बत की क़ीमत गर है, तो मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं!
मैं सोचती रही, क्या कहूँ उसे
सफ़र जारी है अभी
किताबें, विमोचन और फेसबुक
शिक्षा और व्यवस्था
संपादकीय
संपादकीय
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हिन्दी का कृष्ण भक्ति काव्य और आधुनिकता की अवधारणा
संपादकीय
बारिश, बच्चे और स्वतंत्रता
संपादकीय
संपादकीय
संपादकीय
संपादकीय
संपादकीय
संपादकीय
जय जवान जय किसान की जयकार के साथ, मार्च में मार्च
बंद, दंगे और मानवता का आर्तनाद
'साहित्यकार' बनना अब दो मिनिट मैगी जैसा है।
ये सूची कब ख़त्म होगी?
मृत्यु तो नूतन जनम है, हम तुम्हें मरने न देंगे!
प्रकृति, विभाजन में विश्वास नहीं रखती!
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्तां हमारा: भाषा, क्लिष्टता और ककहरा
सर्वे भवन्तु सुखिनः
जब मन रोशन तो जग रोशन!
इक बार तो मेरे सामने, मेरा ऐसा हिन्दुस्तान हो!
कारवाँ गुज़र गया....गुबार देखते रहे
देश सर्वोपरि है
मनुष्यता की डगर
इसके सिवा जाना कहाँ
प्रकृति, पर्यावरण और पृथ्वी
भागती हुई लडकियाँ
स्वतंत्रता की नई सुबह
बापू और शास्त्री जी बार-बार जन्म नहीं लेते!
कर्म, धर्म और शर्म के बदलते मर्म
दुर्योधन और दुःशासन का बोलबाला मगर कृष्ण नदारद!
नया वर्ष...नई उम्मीदें
हर प्रेम को सिद्ध नहीं करना होता है!
कोरोना और वसुधैव: कुटुम्बकम् की प्रासंगिकता
लॉकडाउन से उभरते प्रश्न
कब लौटेंगे बीते हुए दिन!
यह समय, जैसे कोई बुरा स्वप्न चल रहा है
अब हमें आँखों की भाषा सीखनी होगी!
हिन्दी, हमारा घर है!
यदि हमारे जीवन से पर्वों को निकाल दिया जाए तो बचेगा क्या?
कोरोनो-युक्त समाज के लिए कैसा हो 2021
संपादकीय
प्रकृति नहीं बल्कि आपदा तो हम, प्रेम से विमुख मनुष्य ही हैं
कविता-कानन (2)
कविताएँ
कविता-कानन
ख़ास-मुलाक़ात (13)
"साहित्य अब संकरी घाटी नहीं, एक विस्तृत मैदान है" - आशा पाण्डे ओझा
"साहित्य अब संकरी घाटी नहीं, एक विस्तृत मैदान है" - आशा पाण्डे ओझा (भाग-2)
नाम की सार्थकता सकारात्मक जीवन के मनोबल से होती है: रश्मि प्रभा
“...आदमी के भीतर पल रहे आदमी का यही सच है!..... आदमी होने का सुख भी यही है।” (भाग -1)
“...आदमी के भीतर पल रहे आदमी का यही सच है!..... आदमी होने का सुख भी यही है।” (भाग -2)
चर्चित कवयित्री एवं कथाकार सुमन केशरी से संपादक प्रीति अज्ञात की ख़ास मुलाक़ात
सुप्रसिद्ध लेखिका मधु अरोड़ा जी से प्रीति अज्ञात की ख़ास-मुलाक़ात
लेखिका भावना शेखर से प्रीति अज्ञात की ख़ास मुलाक़ात
अब न साहित्य की कोई कद्र है और न साहित्यकार की ही कोई मर्यादा: डॉ. अशोक गुलशन
"मुझे लेखक के रूप में जानते सब हैं, मानता कोई नहीं।" - सूरज प्रकाश
लेखन हमें चुनता है, न कि हम लेखन को- नीलम कुलश्रेष्ठ
"लघुकथा में, लघु आकार हो सकता है लेकिन चिंतन नहीं।" - मुरलीधर वैष्णव
थिएटर आज भी जिंदा है..तमाम मध्यवर्गीय लोगों के समान! - उमा झुनझुनवाला
मूल्यांकन (2)
मूल्यांकन
मूल्यांकन
ग़ज़ल पर बात (1)
अप्रैल माह के लिये आमंत्रण
ख़बरनामा (12)
अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेला, दिल्ली में हमिंग बर्ड का विमोचन
विश्व पुस्तक मेला - 2015 में नवगीत पर चर्चा
स्पंदन के तत्वाधान में सफल काव्य-गोष्ठी का आयोजन
त्रिसुगंधि शिवचंद ओझा ओसियां स्मृति सम्मान समारोह एवं दो दिवसीय राष्ट्रीय साहित्यकार सम्मलेन
आई आई टी, रूड़की में काव्य-संध्या का आयोजन
साहित्यिक समाचार
ख़बरनामा
ख़बरनामा
ख़बरनामा
ख़बरनामा
ख़बरनामा
ख़बरनामा
व्यंग्य (1)
व्यंग्य
संदेश-पत्र (1)
संदेश-पत्र
आधी आबादी: पूरा इतिहास (2)
आत्म-रक्षा इतनी कठिन नहीं, जानिये दीप्ति शंकर से
सलाम, इमरान!
'अच्छा' भी होता है! (2)
व्यस्तता मन की होती है
अच्छा भी होता है
फ़िल्म समीक्षा (2)
फिल्म समीक्षा
फ़िल्म समीक्षा