क्या खोया, क्या पाया!
------विदा 2019
समय बहुत ही बलवान है। यह निरंतर ही चलता रहता है। समय कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता। हम रुपयों को तो तिजोरी में बंद करके रख सकते हैं,पर समय को बंद करके नहीं रख सकते। इसलिए हमें हमेशा सावधानी बरतनी चाहिए। कोई भी क्षण व्यर्थ नही जाने देना चाहिए।
मेसन का यह कहना कितना सत्य है कि 'जैसे सोने का प्रत्येक धागा मूल्यवान होता है, उसी तरह समय का प्रत्येक क्षण भी मूल्यवान होता है?' समय निरंतर गतिमान है। न तो वह कभी रुकता है और न ही कभी लौटकर वापस आता है। मिनट, घंटे, सप्ताह, महीने और वर्ष बीत जाते हैं।
इतना समय व्यर्थ जाने के बाद हमें यह समझ में आता है कि हमने केवल अपना कीमती समय ही बर्बाद किया है। प्रसिद्ध विचारक फ्रेंकलिन ने कहा है- 'सोने से पहले अपने सारे क्रिया-कलापों को एक डायरी में लिखो। सुबह उठकर उसे पढ़ो और मनन करो कि बीते कल का तुमने कितना सदुपयोग किया? कल तुमने क्या खोया, क्या पाया? तुम्हारे कल के कर्म भावी जीवन पर क्या प्रभाव डाल सकते हैं? तब तुम्हें अपने वर्तमान और भविष्य की सच्ची तस्वीर दिखाई देगी। तुमको पता चल पाएगा कि तुम अपना कितना समय अकारण गंवा रहे हो? यह भी आप जान पाओगे कि क्यों तुम्हारे सपने पूरे नहीं हो रहे?' पिछले समय का लेखा-जोखा करके हम अपने जीवन से बहुत कुछ सीख सकते हैं।
वर्ष 2019 कई मायने में देश के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण वर्ष साबित हुआ। यह वर्ष बहुत मायने में सुखद अहसासों के साथ समाप्ति की तरफ बढ़ रहा है पर विडम्बना ये कि इन सारी खुशियों के बावजूद भी देश की आधी आबादी अपने साथ हो रहे कुकृत्यों से मर्माहत हुई है।
जहाँ एक तरफ देश में 17 वीं लोकसभा के गठन के साथ ही देश में लोकतंत्र मजबूत हुई है, वहीँ दूसरी ओर देश लगभग एक गंभीर आर्थिक मंदी की तरफ अपना पैर पसार रही है। लगातार प्रति व्यक्ति आय में गिरावट के संकेत निश्चित ही देश के लिए शुभ नहीं है। बेरोजगारी, महंगाई, औद्योगिक उत्पाद में लगातार गिरावट का सीधा -सीधा प्रभाव देश की जनता पर दिखने लगी है।
इन सबों के वावजूद भी वर्तमान सरकार की दृढ-इच्छा शक्ति का ही परिणाम है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के 73 वर्षों के पश्चात कश्मीर प्रान्त से अनुच्छेद 370 को निरस्त कर जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा हटा दिया एवं जम्मू-कश्मीर और लद्धाख को केद्र शासित प्रदेश बनाया गया।
लम्बी अवधी से चली आ रही अयोध्या स्थित रामलला मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद को विराम देकर देश की सर्वोच्च न्यायलय ने एक बहुत ही सराहनीय कार्य को अंजाम दिया। अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र मे भी देश की सर्वोच्च वैज्ञानिक संस्था इसरो ने भी बहुत ही सराहनीय ऊंचाई को छूने में सफल रही।
इन सब के बावजूद भी देश अपनी मुलभुत समस्याओं से निजात पाने में बिल्कुल ही असफल दिखती प्रतीत हुई। विश्व की सक्षम संस्थाओं के द्वारा जुटाए गए आंकड़े एवं शोध कार्यों के आधार पर विश्व के सर्वाधिक वायु प्रदूषित 15 शहरों में भारत के 12 शहर उस सूचि में शामिल हो गए। विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित पेय जल वाले 122 देशों में भारत का स्थान 120 वां निर्धारित किया गया अर्थात विश्व के तीन सबसे प्रदूषित पेय जल के मामले में भारत प्रथम 3 देशों में शामिल किया गया वहीँ भुखमरी के इंडेक्स में विश्व के 117 देशों में भारत का स्थान 102 पर निर्धारित किया गया। विडम्बना यह है कि वैसे राष्ट्र जो बहुत कुछ मामलों में भारत के सहयोग पर निर्भर हैं, वे राष्ट्र भी इस भुखमरी इंडेक्स में हमसे काफी बेहतर स्थिति में हैं जो निश्चित ही भारत की शाशन-प्रणाली पर एक गहरा धब्बा है।
वर्ष 2019 किसी भी स्थिति में देश की आधी आबादी के लिए सुकून भरा नहीं रहा। 2016 के बाद 2019 में सबसे ज्यादा अपराधिक मामले महिलाओं के साथ घटित हुए।
भारत में नारी का बहुत ऊँचा आदर है; उसे हमारे यहाँ 'महिला' कहते हैं। महिलाओं की सामाजिक स्थिति को समझने के लिए मैंने अपने प्राचीन ग्रन्थों समेत दुनिया की कई भाषाओं के साहित्य का अध्ययन किया है, परंतु नारी के लिये इतना उन्नत शब्द और स्थान किसी भी भाषा में नहीं मिला। इससे ही व्यक्त होता है कि नारी के बारे में भारत के क्या विचार हैं और उससे क्या अपेक्षाएँ हैं।
परंतु नारी का इतना गौरव होते हुए भी आज नारी की तरफ लोग देखते हैं 'कामिनी' के तौर पर। वह काम पूर्ति का साधन मानी जाती है। यह मातृशक्ति का सबसे ज्यादा अपमान है। इसलिये नारी-शक्ति को यदि बढ़ाना है तो काम-वासना- प्रेरक जो-जो चीजें हैं, उनपर प्रथम प्रहार करना होगा। इस समय भारत में चरित्र-भ्रंश का भयंकर आयोजन हो रहा है। उसका विरोध और प्रतीकार यदि खुद स्त्रियाँ नहीं करेंगी तो फिर भगवान ही भारत को बचाये, यही कहने की नौबत आयेगी। आज शहरों की दशा बड़ी खतरनाक है।
हमें यह समझना ही होगा कि अगर देश का आधार शील पर नहीं रहा तो देश टिक नहीं सकता। शिवाजी महाराज की सुप्रसिद्ध कहानी है कि उनके एक सरदार ने लड़ाई जीती और वे एक यवन-स्त्री को शिवाजी महाराज के पास ले आये। शिवाजी महाराज ने उसकी तरफ देखकर वे कहा - ' माँ ! अगर मेरी माता तुझ- जैसी सुन्दर होती तो मैं भी सुन्दर बनता। - ऐसा कह कर उन्होंने उसे आदरपूर्वक बिदा किया।
ऐसी संस्कृति जिस देश की रही हो, उस देश में इतना चारित्र्य-भ्रंश हो और सारे लोग उसे देखते रहें, यह कैसे हो सकता है।
एक नयी उम्मीदों के आश में ......एक नए भारत की तलाश में, नव वर्ष की प्रतीक्षा के साथ ही साथ हस्ताक्षर वेब पत्रिका के समस्त पाठकों, रचनाकारों एवं संपादन-मंडल को नए वर्ष की हार्दिक बधाई।
- नीरज कृष्ण