इतिहास गवाह है, धार्मिकता की आड़ में सबसे ज़्यादा पाप और अत्याचार होते आए हैं।
अब 'प्रतिबंध' की राजनीति को लेकर सब कटिबद्ध हैं। सोशल-साइट्स पर बैन, फिल्मों पर बैन, पुस्तकों पर बैन और कुछ न बचा तो नौबत खाने-पीने तक आ गई है। वैसे ये शुरुआत 'मैगी' से हो चुकी है, पर तब कारण जायज़ था। इन दिनों शाकाहार बनाम माँसाहार का द्वंद्व, भारत/पाकिस्तान क्रिकेट मैच से भी ज्यादा टी.आर.पी. बटोर रहा है।
देखा जाए तो इससे अधिक मूर्खतापूर्ण और कोई घटना हो ही नहीं सकती! जहाँ आपके पड़ोसी या राजनीतिक दलों को आपकी थाली में ....