एक समय था जब तमाम समस्याओं के होते हुए भी सबकी अपनी एक ख़ूबसूरत दुनिया थी। वो दुनिया जिसमें असहमत होना, क्रोध को भले ही उपजाता था लेकिन उसे अपराध की श्रेणी में क़तई नहीं रखा जाता था। लेकिन इन दिनों रिश्तों की मृदुलता, स्थिरता और सुन्दरता जैसे चुनाव ने लील ली है। रोज गुट बनते जा रहे हैं। परस्पर नीचा दिखाने का एक भी अवसर कोई चूकना नहीं चाहता!
क्या चुनाव हम सबसे इतना ऊपर हैं कि जिस संस्कृति, धर्मनिरपेक्षता और एकता की हम दुहाई देते हैं, सबसे पहले उसे ही ताक पर रख दिया जाए! ज़रा ठहरकर सोचिये कि किसी का घोर विरोधी या समर्थक बनने की धुन में हमारे बीच कितना कुछ टूट रहा है! नेता किसी के नहीं होते। अरे, ये तो ख़ुद अपने दल के ही नहीं रह पाते। हम ....